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Meena Bazar (Manto Ab Tak-15)
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सआदत हसन मण्टो
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सआदत हसन मण्टो
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹125 ₹124
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In stock
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ISBN:
SKU
9789350722770
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
138
वह अपने अनुभवों और उनकी अभिव्यक्ति के सिलसिले में किसी तरह का दबाव कबूल करने के लिए तैयार नहीं है। वह ‘पार्टी लाइन’ के नुक्ते-नजर से नहीं, वरन सहज मानवीय दृष्टि से हालात को परखता है और इसीलिए वह पूरी अजादी के साथ ‘अपना बयान’ लिपिबद्ध कर सकता है। उसे पार्टी लाइन की कोई फ़िक्र नहीं है क्योंकि वह जानता है कि आम आदमी के दुख-दर्द को ‘पार्टी लाइनें’ कई बार नज़र अन्दाज़ कर देती हैं, पार्टी की राह न तो ज़िन्दगी की राह है, न आम आदमी के एहसासात की। उसे मालूम है कि पार्टी को राजनीतिक स्तर पर बहुत से समझौते भी करने पड़ते हैं और अक्सर पार्टी का नज़रिया डाग्मैटिक हो जाता है। इसीलिए मण्टो आश्वस्त हैं कि जब तक वह आम आदमी की तकलीफ़ों का सहभागी बन कर उनका सच्चा और खरा चित्रण कर रहा है, और जनता के दुश्मनों की ओर इशारा कर रहा है। तब तक उसे प्रगतिशील कहलाने के लिए किसी बिल्ले या तमगे की ज़रूरत नहीं है।
मण्टो अपने चारों ओर फैले झूठ, फ़रेब और भ्रष्टाचार पर से पर्दा उठा कर, समाज के उस हिस्से को पेश करता है, जिसे लोग या तो स्वीकार करने से कतराते हैं या फिर ऐसा तो होता ही है के-से अन्दाज़ ही कर सकता है। वह इस सारे भ्रष्टाचार के रू-ब-रू हो कर, उसकी भर्त्सना करता है। लेकिन वह कोरा सुधारक नहीं है, वरन एक अत्यन्त भावप्रवण संवेदनशील व्यक्ति हैं, इसीलिए वह समाज के इस ‘गर्हित’ पक्ष-रंडियों, भड़वों, दलालों, शराबियों में दबी-छिपी मानवीयता की तलाश करता है। वह समाज के निचले तबके के लोगों की ओर मुड़ता है और ‘आहत अनस्तित्व’ को छूने के लिए अपने ‘प्राणदायी हाथ’ बढ़ाता है।
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Description
वह अपने अनुभवों और उनकी अभिव्यक्ति के सिलसिले में किसी तरह का दबाव कबूल करने के लिए तैयार नहीं है। वह ‘पार्टी लाइन’ के नुक्ते-नजर से नहीं, वरन सहज मानवीय दृष्टि से हालात को परखता है और इसीलिए वह पूरी अजादी के साथ ‘अपना बयान’ लिपिबद्ध कर सकता है। उसे पार्टी लाइन की कोई फ़िक्र नहीं है क्योंकि वह जानता है कि आम आदमी के दुख-दर्द को ‘पार्टी लाइनें’ कई बार नज़र अन्दाज़ कर देती हैं, पार्टी की राह न तो ज़िन्दगी की राह है, न आम आदमी के एहसासात की। उसे मालूम है कि पार्टी को राजनीतिक स्तर पर बहुत से समझौते भी करने पड़ते हैं और अक्सर पार्टी का नज़रिया डाग्मैटिक हो जाता है। इसीलिए मण्टो आश्वस्त हैं कि जब तक वह आम आदमी की तकलीफ़ों का सहभागी बन कर उनका सच्चा और खरा चित्रण कर रहा है, और जनता के दुश्मनों की ओर इशारा कर रहा है। तब तक उसे प्रगतिशील कहलाने के लिए किसी बिल्ले या तमगे की ज़रूरत नहीं है।
मण्टो अपने चारों ओर फैले झूठ, फ़रेब और भ्रष्टाचार पर से पर्दा उठा कर, समाज के उस हिस्से को पेश करता है, जिसे लोग या तो स्वीकार करने से कतराते हैं या फिर ऐसा तो होता ही है के-से अन्दाज़ ही कर सकता है। वह इस सारे भ्रष्टाचार के रू-ब-रू हो कर, उसकी भर्त्सना करता है। लेकिन वह कोरा सुधारक नहीं है, वरन एक अत्यन्त भावप्रवण संवेदनशील व्यक्ति हैं, इसीलिए वह समाज के इस ‘गर्हित’ पक्ष-रंडियों, भड़वों, दलालों, शराबियों में दबी-छिपी मानवीयता की तलाश करता है। वह समाज के निचले तबके के लोगों की ओर मुड़ता है और ‘आहत अनस्तित्व’ को छूने के लिए अपने ‘प्राणदायी हाथ’ बढ़ाता है।
About Author
सआदत हसन मंटो कहानीकार और लेखक थे। मंटो फ़िल्म और रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। मंटो फ़िल्म और रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। प्रसिद्ध कहानीकार मंटो का जन्म 11 मई 1912 को पुश्तैनी बैरिस्टरों के परिवार में हुआ था। उनके पिता ग़ुलाम हसन नामी बैरिस्टर और सेशन जज थे। उनकी माता का नाम सरदार बेगम था, और मंटो उन्हें बीबीजान कहते थे। सआदत हसन मंटो की गिनती ऐसे साहित्यकारों में की जाती है जिनकी कलम ने अपने वक़्त से आगे की ऐसी रचनाएँ लिख डालीं जिनकी गहराई को समझने की दुनिया आज भी कोशिश कर रही है। मंटो की कहानियों की बीते दशक में जितनी चर्चा हुई है उतनी शायद उर्दू और हिन्दी और शायद दुनिया के दूसरी भाषाओं के कहानीकारों की कम ही हुई है। आंतोन चेखव के बाद मंटो ही थे जिन्होंने अपनी कहानियों के दम पर अपनी जगह बना ली। मंटो साहित्य जगत के ऐसे लेखक थे जो अपनी लघु कहानियों के काफी चर्चित हुए। वाणी प्रकाशन से मंटो के पच्चीस कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं – ‘रोज़ एक कहानी’, ‘एक प्रेम कहानी’, ‘शरीर और आत्मा’, ‘मेरठ की कैंची’, ‘दौ कौमें’, ‘टेटवाल का कुत्ता’, ‘सन 1919 की एक बात’, ‘मिस टीन वाला’, ‘गर्भ बीज’, ‘गुनहगार मंटो’, ‘शरीफन’, ‘सरकाण्डों के पीछे’, ‘राजो और मिस फ़रिया ‘, ‘फ़ोजा हराम दा’, ‘नया कानून’, ‘मीना बाज़ार’, ‘मैडम डिकॉस्टा’, ‘ख़ुदा की क़सम’, ‘जान मुहम्मद’, ‘गंजे फरिश्ते’, ‘बर्मी लड़की’, ‘बँटवारे के रेखाचित्र’, ‘बादशाह का खात्मा’, ‘तीन मोती औरतें’, ‘तीन गोले’। सआदत हसन मंटो उर्दू-हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण कथाकार माने जाते हैं। उनकी लिखी हुई उर्दू-हिन्दी की कहानियाँ आज एक दस्तावेज बन गयी हैं।
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