Madhya Prant Aur Barar Mein Adivasi Samsyayen (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
W.V. Grigson
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
W.V. Grigson
Language:
Hindi
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Hardback

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जनजातीय समाज की अवहेलना सदियों से की जाती रही है और मौजूदा समय में भी बरकरार है, जिनकी अनगिनत समस्याओं को दरकिनार कर उनकी ज़मीनों के मालिकाना हक़ों को उनसे सरकारी या ग़ैर-सरकारी तरीक़ों से हड़पा जाता रहा है। उनकी कठिनाइयों और समस्याओं का सूक्ष्म दृष्टि से आकलन करता यह दस्तावेज़ हमारे सम्मुख उस जीवन-दृश्य को प्रस्तुत करता है, जो नारकीय है।
प्रस्तुत पुस्तक मध्यप्रान्त और बरार में रहनेवाले जनजातीय समाज की उन विषम समस्याओं से हमें अवगत कराती है कि कैसे समय-समय पर उनकी ज़मीनों, परम्पराओं, भाषाओं से अलग-थलग करके उन्हें ‘निम्न’ जाँचा गया है और कैसे उन्हें साहूकारी के पंजों में फँसाकर बँधुआ मज़दूरी के लिए बाध्य किया गया है।
यहाँ उनकी समस्याओं का एक गम्भीर विश्लेषण है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पशु-चिकित्सा आदि के नाम पर उन पर जबरन एक ‘सिस्टम’ थोपा गया जिससे उनकी समस्याएँ कम होने के बजाय और बढ़ी हैं।
डब्ल्यू.वी. ग्रिग्सन की अंग्रेज़ी पुस्तक से अनूदित यह पुस्तक जहाँ एक तरफ़ जनजातीय समस्याओं पर केन्द्रित हिन्दी पुस्तकों के अभाव को दूर करती है, वहीं दूसरी ओर शोधकर्ताओं और समाज के उत्थान में जुटे कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन भी करती है।

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Description

जनजातीय समाज की अवहेलना सदियों से की जाती रही है और मौजूदा समय में भी बरकरार है, जिनकी अनगिनत समस्याओं को दरकिनार कर उनकी ज़मीनों के मालिकाना हक़ों को उनसे सरकारी या ग़ैर-सरकारी तरीक़ों से हड़पा जाता रहा है। उनकी कठिनाइयों और समस्याओं का सूक्ष्म दृष्टि से आकलन करता यह दस्तावेज़ हमारे सम्मुख उस जीवन-दृश्य को प्रस्तुत करता है, जो नारकीय है।
प्रस्तुत पुस्तक मध्यप्रान्त और बरार में रहनेवाले जनजातीय समाज की उन विषम समस्याओं से हमें अवगत कराती है कि कैसे समय-समय पर उनकी ज़मीनों, परम्पराओं, भाषाओं से अलग-थलग करके उन्हें ‘निम्न’ जाँचा गया है और कैसे उन्हें साहूकारी के पंजों में फँसाकर बँधुआ मज़दूरी के लिए बाध्य किया गया है।
यहाँ उनकी समस्याओं का एक गम्भीर विश्लेषण है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पशु-चिकित्सा आदि के नाम पर उन पर जबरन एक ‘सिस्टम’ थोपा गया जिससे उनकी समस्याएँ कम होने के बजाय और बढ़ी हैं।
डब्ल्यू.वी. ग्रिग्सन की अंग्रेज़ी पुस्तक से अनूदित यह पुस्तक जहाँ एक तरफ़ जनजातीय समस्याओं पर केन्द्रित हिन्दी पुस्तकों के अभाव को दूर करती है, वहीं दूसरी ओर शोधकर्ताओं और समाज के उत्थान में जुटे कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन भी करती है।

About Author

डब्ल्यू. वी. ग्रिग्सन

डब्ल्यू.वी. ग्रिग्सन एक आई.सी.एस. अधिकारी थे। वे सेंट्रल प्राविंसेज और बरार (अविभाजित मध्य प्रदेश का तत्कालीन नाम) में एबोरीजनल ट्राइब्स इंक्वायरी ऑफ़िसर बनाए गए थे और सन् 1940 से 42 तक इस पद पर रहे। उन्हें आदिम जातियों के बारे में जो कार्य-सूची दी गई थी, वह बहुत लम्बी थी जिसमें इन आदिम जातियों के संरक्षण, उनकी आर्थिक, शैक्षणिक, भौतिक और राजनीतिक कमियों का आकलन और उनका उपचार, भूमि धारण के उनके अधिकार, बन्धक प्रथा, रसद, बेगार और मामूल जैसे शोषण, इन जनजातियों पर इंडियन पीनल कोड (भारतीय दंड संहिता) द क्रिमिनल एंड सिविल प्रोसीजर आदि का प्रभाव और उनके हितों के संरक्षण जैसे सन्दर्भ शामिल थे।

ग्रिग्सन की छपी हुई रिपोर्ट के पृष्ठ पर सेसिल रोड्स का छोटा-सा उद्घोष वाक्य है, “कितना कम किया है, कितना अधिक बाक़ी है।” यह वाक्य अभी भी आदिवासियों के सन्दर्भ में उसी तीव्रता से लागू होता है।

डब्ल्यू.वी. ग्रिग्सन उन लोगों में से एक थे जिन्होंने अपनी रिपोर्टों को सन्दर्भ-ग्रन्थ के रूप में स्थापित किया। इसकी उपयोगिता और प्रामाणिकता आज तक बरकरार है।

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