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Madhushala
Publisher:
Rajpal and Sons
| Author:
Harivansh Rai Bachchan
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
₹195 ₹194
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1-4 Days
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ISBN:
SKU 9788170283447 Categories Literature & Translations, PIRecommends
Categories: Literature & Translations, PIRecommends
Page Extent:
80
हरिवंशराय ‘बच्चन’ की अमर काव्य-रचना ‘मधुशाला’ 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता की हर रुबाई का अंत ‘मधुशाला’ शब्द से होता है। पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है, जिसमें हमारे आस-पास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता हमधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे, यह ‘कविता का प्याला’ कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा है – भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।
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Description
हरिवंशराय ‘बच्चन’ की अमर काव्य-रचना ‘मधुशाला’ 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता की हर रुबाई का अंत ‘मधुशाला’ शब्द से होता है। पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है, जिसमें हमारे आस-पास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता हमधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे, यह ‘कविता का प्याला’ कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा है – भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।
About Author
हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवंबर, 1907 को प्रयाग में हुआ था। उनकी शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल, कायस्थ पाठशाला, गवर्नमेंट कालेज, इलाहाबाद युनिवर्सिटी और काशी विश्वविद्यालय में हुई। 1941 से 1952 तक वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी के लेक्चरर रहे। 1952 से 1954 तक इंग्लैण्ड में रहकर उन्होंने एक वर्ष अपने पूर्व पद पर तथा कुछ मास आकाशवाणी, इलाहाबाद में काम किया। फिर सोलह वर्ष दिल्ली में रहे-दस वर्ष विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के पद पर और छह वर्ष राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में। 18 जनवरी, 2003 को उनका स्वर्गवास हो गया। बच्चनजी को उनकी आत्मकथा के लिए भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार 'सरस्वती सम्मान-1991' से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो-एशियन राइटर्स कान्फ्रेंस का 'लोटस पुरस्कार' भी मिल चुका है। राष्ट्रपति ने भी उन्हें 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें 'साहित्य वाचस्पति' की उपाधि प्रदान की।
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