Lokrang : Chhattisgarh (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Niranjan Mahawar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Radhakrishna Prakashan
Author:
Niranjan Mahawar
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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यह ग्रन्थ छत्तीसगढ़ की प्रदर्शनकारी कलाओं पर केन्द्रित है, जिसमें छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख लोकनृत्य, गीत एवं लोकनाट्यों का प्रलेखन किया गया है।
छत्तीसगढ़ की लोककलाएँ अत्यन्त समृद्ध हैं। वे एक सामुदायिक जीवन की धन्यता का उत्सव और उसका मंगलगान हैं।
पुस्तक में लेखक ने छत्तीसगढ़ की ग्रामीण लोककलाओं के साथ इस क्षेत्र में प्रचलित जनजातीय समुदायों की नृत्य-नाट्य परम्पराओं पर भी विचार किया है। एक सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में छत्तीसगढ़ का यह कला-अध्ययन व्यापक रूप में इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक परिवेश और पर्यावरण तथा प्राचीन भारतीय इतिहास में अपनी सांस्कृतिक पहचान की स्मृतियों को सँजोता है।
जिन प्रमुख कला-रूपों को पुस्तक में अभिलेखित किया गया है, उनमें सेला नृत्य, भोजली, ददरिया, डंडा नाच, भतरा नाच और पंडवानी सहित सभी लोक-शैलियों को शामिल किया गया है।
लोक भाषाओं के साथ जनजातीय बोलियों में भी विविध नृत्यों और सम्बद्ध गीत-परम्परा के कुछ सुन्दर उदाहरण महावर जी ने इस ग्रन्थ में शामिल किए हैं।
यह किताब छत्तीसगढ़ की लोकधर्मी नृत्य-नाट्य तथा गायन-परम्पराओं के विभिन्न कला-रूपों को विस्तार से समझने के साथ उसका विश्लेषणपरक अध्ययन भी प्रस्तुत करती है।
हमें आशा है कि पाठकों को यह ग्रन्थ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा से अवगत कराने में सफल होगा।

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Description

यह ग्रन्थ छत्तीसगढ़ की प्रदर्शनकारी कलाओं पर केन्द्रित है, जिसमें छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख लोकनृत्य, गीत एवं लोकनाट्यों का प्रलेखन किया गया है।
छत्तीसगढ़ की लोककलाएँ अत्यन्त समृद्ध हैं। वे एक सामुदायिक जीवन की धन्यता का उत्सव और उसका मंगलगान हैं।
पुस्तक में लेखक ने छत्तीसगढ़ की ग्रामीण लोककलाओं के साथ इस क्षेत्र में प्रचलित जनजातीय समुदायों की नृत्य-नाट्य परम्पराओं पर भी विचार किया है। एक सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में छत्तीसगढ़ का यह कला-अध्ययन व्यापक रूप में इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक परिवेश और पर्यावरण तथा प्राचीन भारतीय इतिहास में अपनी सांस्कृतिक पहचान की स्मृतियों को सँजोता है।
जिन प्रमुख कला-रूपों को पुस्तक में अभिलेखित किया गया है, उनमें सेला नृत्य, भोजली, ददरिया, डंडा नाच, भतरा नाच और पंडवानी सहित सभी लोक-शैलियों को शामिल किया गया है।
लोक भाषाओं के साथ जनजातीय बोलियों में भी विविध नृत्यों और सम्बद्ध गीत-परम्परा के कुछ सुन्दर उदाहरण महावर जी ने इस ग्रन्थ में शामिल किए हैं।
यह किताब छत्तीसगढ़ की लोकधर्मी नृत्य-नाट्य तथा गायन-परम्पराओं के विभिन्न कला-रूपों को विस्तार से समझने के साथ उसका विश्लेषणपरक अध्ययन भी प्रस्तुत करती है।
हमें आशा है कि पाठकों को यह ग्रन्थ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा से अवगत कराने में सफल होगा।

About Author

निरंजन महावर

निरंजन महावर ने वर्ष 1960 में सागर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि अर्जित की और 1962 में अपने पारिवारिक व्यवसाय राइस मिल की देखरेख के लिए बस्तर चले गए। बस्तर में आप आदिवासियों की जीवन-शैली से आकर्षित हुए और आदिवासी कला और संस्कृति के विविध पक्षों पर प्रलेखन आरम्भ किया। इसके साथ ही जनजातीय मिथक, लोक साहित्य तथा विविध जीवन-पद्धतियों पर भी कार्य करना आरम्भ किया। पिछले चार दशक से भी अधिक अवधि के अपने कार्यों के आधार पर आपने जनजातीय और लोक-कलाओं पर पाँच, लोकनाट्य पर आठ, जनजातीय अध्ययन पर चार मोनोग्राफ और लोकगीत, लोककथा आदि पर चार पुस्तकों की रचना की है जो क्रमश: प्रकाशनाधीन हैं।

श्री महावर के पास बस्तर के जनजातीय धातु-शिल्प के अलावा उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल से संकलित कलाकृतियों का एक अनुपम संकलन विद्यमान है।

इन्होंने भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के बस्तर स्थित संग्रहालय को मध्य भारत से संकलित लगभग 600 टेराकोटा वस्तुएँ उपहारस्वरूप प्रदान की हैं।

गतिविधियाँ : मध्य प्रदेश आदिवासी लोककला परिषद् की कार्यकारिणी में बतौर जनजाति विशेषज्ञ आठ वर्षों तक सदस्य रहे। परिषद् द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘चौमासा’ के सलाहकार मंडल में 20 वर्षों तक कार्य तथा दक्षिण-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के लोक जनजातीय संस्कृति के विशेषज्ञ के रूप में भी आठ वर्षों तक सेवाएँ दे चुके हैं।

प्रकाशित कृतियाँ : बस्तर ब्रांजेस : ट्रायबल रिलिजन एंड आर्ट; पंडवानी : ए फोक थियेटर बेस्ड ऑन इपिक महाभारत; ट्रायबल मिथ्स ऑफ़ उड़ीसा (हिन्दी में अनूदित); कल्चरल प्रोफ़ाइल ऑफ़ साउथ कोसला।

सम्प्रति : उत्तर भारतीय भाषाओं के लोक साहित्य पर एक विश्वकोश को अन्तिम रूप देने में व्यस्त हैं।

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