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Lokleela

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
राजेन्द्र लहरिया
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
राजेन्द्र लहरिया
Language:
Hindi
Format:
Hardback

210

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In stock

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1-4 Days

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SKU 9789326355537 Category
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160

लोकलीला
राजेन्द्र लहरिया का यह उपन्यास ‘लोकलीला’ ग्राम्य-जन-जीवन का आख्यान है, पर यह आख्यान ग्रामीण जन-जीवन की सतह पर दिखाई देनेवाली गतिविधियों का ही नहीं, बल्कि उनकी तहों में मौजूद सामन्ती एवं मनुष्यविरोधी प्रवृत्तियों की शिनाख़्त का भी है।
‘लोकलीला’ उपन्यास ज़मींदारी काल के सरेआम खुले क्रूर सामन्ती चेहरे से लेकर भारत को आज़ादी मिलने के बाद के लगभग सत्तर साल गुज़रने तक के समय के दौरान मौजूद रहे आये लोकतन्त्रीय मुखावरण के पीछे छिपे जनविरोधी और अमानवीय नवसामन्ती चेहरे की पहचान को अपने कथा-कलेवर में समेटता है।
‘लोकलीला’ उपन्यास लोकतन्त्र के उस ‘अँधेरे’ की आख्या-कथा है, जो देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था विधान के रहे आने के बावजूद, लोकतन्त्र को एक छद्म साबित करता हुआ अभी तक लगातार जारी है।
सक्षम भाषा-शिल्प में रचित एक मर्मस्पर्शी औपन्यासिक कृति!

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Description

लोकलीला
राजेन्द्र लहरिया का यह उपन्यास ‘लोकलीला’ ग्राम्य-जन-जीवन का आख्यान है, पर यह आख्यान ग्रामीण जन-जीवन की सतह पर दिखाई देनेवाली गतिविधियों का ही नहीं, बल्कि उनकी तहों में मौजूद सामन्ती एवं मनुष्यविरोधी प्रवृत्तियों की शिनाख़्त का भी है।
‘लोकलीला’ उपन्यास ज़मींदारी काल के सरेआम खुले क्रूर सामन्ती चेहरे से लेकर भारत को आज़ादी मिलने के बाद के लगभग सत्तर साल गुज़रने तक के समय के दौरान मौजूद रहे आये लोकतन्त्रीय मुखावरण के पीछे छिपे जनविरोधी और अमानवीय नवसामन्ती चेहरे की पहचान को अपने कथा-कलेवर में समेटता है।
‘लोकलीला’ उपन्यास लोकतन्त्र के उस ‘अँधेरे’ की आख्या-कथा है, जो देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था विधान के रहे आने के बावजूद, लोकतन्त्र को एक छद्म साबित करता हुआ अभी तक लगातार जारी है।
सक्षम भाषा-शिल्प में रचित एक मर्मस्पर्शी औपन्यासिक कृति!

About Author

राजेन्द्र लहरिया - जन्म : 18 सितम्बर, 1955 ई. को, मध्य प्रदेश के ग्वालियर ज़िले के सुपावली गाँव में। शिक्षा: स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य)। सन् 1979-1980 ई. के आसपास से कथा लेखन की शुरूआत, एवं बीसवीं शताब्दी के नौवें दशक के कथाकार के तौर पर पहचाने जानेवाले प्रमुख कथाकारों में शुमार। तब से अद्यावधि निरन्तर रचनारत। हिन्दी साहित्य की प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित। अनेक कहानियाँ महत्त्वपूर्ण कहानी-संकलनों में संकलित। कई कथा-रचनाओं का मलयालम, उर्दू, ओड़िया, मराठी आदि भारतीय भाषाओं एवं अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद। प्रकाशित कृतियाँ: 'आदमीबाज़ार', 'यहाँ कुछ लोग थे', 'बरअक्स', 'युद्धकाल' (कहानी-संग्रह); 'राक्षसगाथा', 'जगदीपजी की उत्तरकथा', 'आलाप-विलाप', 'यातनाघर', 'यक्षप्रश्न त्रासान्त' (उपन्यास) और आत्म-आख्यान: 'मेरी लेखकीय अन्तर्यात्रा'।

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