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Lebar Chauraha

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
मंजू देवी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
मंजू देवी
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9789326354929 Category
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Page Extent:
124

लेबर चौराहा –
प्रस्तुत पुस्तक ‘लेबर चौराहा’ वर्तमान समय की ज्वलन्त समस्याओं पर लिखी गयी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। पुस्तक लिखने के पहले मैं बनारस शहर में चौराहों पर लगने वाली लेबर मण्डी के मज़दूरों से आत्मीयता के साथ मिली। यह मिलना एक बार नहीं, कई-कई बार हुआ। उनके जीवन के दुख-दर्द, बेरोज़गारी, संघर्ष, असुरक्षा, आत्म-सम्मान, ख़ुशी सबको मिल-जुलकर बाँटा गया। लेबर मण्डी के मज़दूरों से मैं तीन वर्षों तक लगातार मिलती रही।
आज यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि मज़दूरों द्वारा मेहनत करने के बाद भी लोगों का व्यवहार उनके प्रति अच्छा नहीं होता है। लोग मज़दूरों को बात-बात पर भद्दी-भद्दी गालियाँ देते हैं, झोटा (बाल) नोच-नोचकर मारते हैं, काम कराने के बाद पैसा नहीं देते हैं। मज़दूर जब ठेकेदार के साथ काम करता है तो वह उसे पूरा पैसा नहीं देता है, और कई-कई दिनों तक टरकाता है।
कोई बिहार के किसी गाँव से तो कोई चकिया, चन्दौली, गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, कुशीनगर, आज़मगढ़, मुर्शिदाबाद आदि न जाने किन-किन शहरों से आकर यहाँ मज़दूरी करने के लिए बाध्य हैं। आज के आधुनिक और वैश्वीकरण के युग में लेबर मण्डियों की बढ़ती हुई संख्या ने बहुत सारे प्रश्नों को जन्म दिया है। एक ओर बड़े-बड़े मकान हैं, तो दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिनके पास न घर है, न भोजन है, न शौचालय है, और न ही नहाने और पीने के लिए पानी है। तन ढकने के लिए कपड़े भी नहीं हैं।

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Description

लेबर चौराहा –
प्रस्तुत पुस्तक ‘लेबर चौराहा’ वर्तमान समय की ज्वलन्त समस्याओं पर लिखी गयी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। पुस्तक लिखने के पहले मैं बनारस शहर में चौराहों पर लगने वाली लेबर मण्डी के मज़दूरों से आत्मीयता के साथ मिली। यह मिलना एक बार नहीं, कई-कई बार हुआ। उनके जीवन के दुख-दर्द, बेरोज़गारी, संघर्ष, असुरक्षा, आत्म-सम्मान, ख़ुशी सबको मिल-जुलकर बाँटा गया। लेबर मण्डी के मज़दूरों से मैं तीन वर्षों तक लगातार मिलती रही।
आज यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि मज़दूरों द्वारा मेहनत करने के बाद भी लोगों का व्यवहार उनके प्रति अच्छा नहीं होता है। लोग मज़दूरों को बात-बात पर भद्दी-भद्दी गालियाँ देते हैं, झोटा (बाल) नोच-नोचकर मारते हैं, काम कराने के बाद पैसा नहीं देते हैं। मज़दूर जब ठेकेदार के साथ काम करता है तो वह उसे पूरा पैसा नहीं देता है, और कई-कई दिनों तक टरकाता है।
कोई बिहार के किसी गाँव से तो कोई चकिया, चन्दौली, गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, कुशीनगर, आज़मगढ़, मुर्शिदाबाद आदि न जाने किन-किन शहरों से आकर यहाँ मज़दूरी करने के लिए बाध्य हैं। आज के आधुनिक और वैश्वीकरण के युग में लेबर मण्डियों की बढ़ती हुई संख्या ने बहुत सारे प्रश्नों को जन्म दिया है। एक ओर बड़े-बड़े मकान हैं, तो दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिनके पास न घर है, न भोजन है, न शौचालय है, और न ही नहाने और पीने के लिए पानी है। तन ढकने के लिए कपड़े भी नहीं हैं।

About Author

नाम: मंजू देवी - शिक्षा: एम.ए., पीएच.डी.। काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ज्ञानपुर, सन्त रविदास नगर, भदोही, उत्तर प्रदेश। कृतियाँ: सोशिएलाइजेशन ऑफ़ वीमेन इन इंडिया (2004), आज़ादी पर उठते सवाल: नाली पर मोची (2009), असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं पर हिंसा एवं उनका स्वास्थ्य (2005), शोधकार्य अनुभव: रिसर्च इन्वेस्टिगेटर, गाँधी विद्या संस्थान, वाराणसी, विषय “Employment Conditions in the Unorganized Sector: A Study of Women Workers in the Readymade Textiles Garment Industry." पुरस्कार: भारत सरकार, पुलिस अनुसन्धान एवं विकास ब्यूरो, गृह मन्त्रालय, नयी दिल्ली द्वारा वर्ष 2014 में ‘अपेक्षित परिवर्तन में महिलाओं की भूमिका और प्रत्येक राज्य में महिला थानों की आवश्यकता’ विषय पर उत्कृष्ट पुस्तक लिखने पर पं. गोविन्द वल्लभ पन्त पुरस्कार प्राप्त हुआ।

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