Ki Yaad Jo Karen Sabhi

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
रजनी गुप्त
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
रजनी गुप्त
Language:
Hindi
Format:
Paperback

319

Save: 20%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788194939863 Category
Category:
Page Extent:
352

हिन्दी में जीवनी साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं है। आत्मकथा साहित्य तो और भी कम है। ब्रजरत्न दास की भारतेन्द की जीवनी ज़रूर उचित समय में ही लिख ली गयी थी। इधर हाल ही में चन्द्रशेखर शुक्ल द्वारा लिखित आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की, विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित शरतचन्द्र की, डॉ. रामविलास शर्मा द्वारा लिखित निराला की जीवनियों ने इस विधा में प्राण संचार किया। इन पंक्तियों के लेखक ने भी आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की जीवनी को लिखने का प्रयास किया है। यह हिन्दी समाज के लिए गौरव और सम्मान का विषय है कि हिन्दी की सुपरिचित कथा-लेखिका और सम्पादक रजनी गुप्त ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी लिखी है। यह वस्तुतः बहुत बड़े अभाव की पूर्ति है। दद्दा का जीवन सामान्य दिखलाई पड़ता था किन्तु वह संघर्षपूर्ण था। वह भौतिक और मानसिक उठापटक से परिपूर्ण था। इस जीवनी की ख़ास बात यह है कि वह लिखी तो गयी है पूरी आत्मीयता और तन्मयता के साथ किन्तु तटस्थता भी काफ़ी बरती गयी है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हुई कि रजनी गुप्त ने जीवन के ब्यौरों का लेखा-जोखा वस्तुगत दृष्टि से किया है और उन्होंने रचना में खलनायक, विदूषक और वीरोचित नायक नहीं निर्मित किये हैं इसमें मैथिलीशरण जी की साहित्यिक उपलब्धियों, उनके यश और चर्चाओं का मनोरंजक विवरण है। उनके मध्यवर्गीय जीवन की पारिवारिक समस्याओं एवं उलझनों का, दद्दा के समकालीन साहित्यकारों, समकालीन महत्त्वपूर्ण और आनुषंगिक घटनाओं का यथोचित वर्णन कृति को महत्त्वपूर्ण बनाता है। दद्दा के इस जीवनीपरक उपन्यास में जीवन के साथ औपन्यासिकता का निर्वहन भी इस कृति को पठनीय बनाता है। राष्ट्रकवि की जीवनी प्रस्तुत करने के लिए कथाकार रजनी गुप्त हिन्दी पाठकों की कृतज्ञता की अधिकारिणी हैं। शुभमस्तु। -विश्वनाथ त्रिपाठी

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Ki Yaad Jo Karen Sabhi”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

हिन्दी में जीवनी साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं है। आत्मकथा साहित्य तो और भी कम है। ब्रजरत्न दास की भारतेन्द की जीवनी ज़रूर उचित समय में ही लिख ली गयी थी। इधर हाल ही में चन्द्रशेखर शुक्ल द्वारा लिखित आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की, विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित शरतचन्द्र की, डॉ. रामविलास शर्मा द्वारा लिखित निराला की जीवनियों ने इस विधा में प्राण संचार किया। इन पंक्तियों के लेखक ने भी आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की जीवनी को लिखने का प्रयास किया है। यह हिन्दी समाज के लिए गौरव और सम्मान का विषय है कि हिन्दी की सुपरिचित कथा-लेखिका और सम्पादक रजनी गुप्त ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी लिखी है। यह वस्तुतः बहुत बड़े अभाव की पूर्ति है। दद्दा का जीवन सामान्य दिखलाई पड़ता था किन्तु वह संघर्षपूर्ण था। वह भौतिक और मानसिक उठापटक से परिपूर्ण था। इस जीवनी की ख़ास बात यह है कि वह लिखी तो गयी है पूरी आत्मीयता और तन्मयता के साथ किन्तु तटस्थता भी काफ़ी बरती गयी है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हुई कि रजनी गुप्त ने जीवन के ब्यौरों का लेखा-जोखा वस्तुगत दृष्टि से किया है और उन्होंने रचना में खलनायक, विदूषक और वीरोचित नायक नहीं निर्मित किये हैं इसमें मैथिलीशरण जी की साहित्यिक उपलब्धियों, उनके यश और चर्चाओं का मनोरंजक विवरण है। उनके मध्यवर्गीय जीवन की पारिवारिक समस्याओं एवं उलझनों का, दद्दा के समकालीन साहित्यकारों, समकालीन महत्त्वपूर्ण और आनुषंगिक घटनाओं का यथोचित वर्णन कृति को महत्त्वपूर्ण बनाता है। दद्दा के इस जीवनीपरक उपन्यास में जीवन के साथ औपन्यासिकता का निर्वहन भी इस कृति को पठनीय बनाता है। राष्ट्रकवि की जीवनी प्रस्तुत करने के लिए कथाकार रजनी गुप्त हिन्दी पाठकों की कृतज्ञता की अधिकारिणी हैं। शुभमस्तु। -विश्वनाथ त्रिपाठी

About Author

रजनी गुप्त का जन्म 2 अप्रैल, 1963, चिरगाँव, झाँसी (उ.प्र.) में हुआ। जे.एन.यू., नयी दिल्ली से उन्होंने एम.फिल., पीएच. डी. की शिक्षा प्राप्त की। इनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं - कहीं कुछ और, किशोरी का आसमाँ, एक न एक दिन, कुल जमा बीस (उपन्यास); एक नयी सुबह, हाट बाजार, दो कहानी संग्रह शीघ्र प्रकाश्य (कहानी संग्रह); आजाद औरत कितनी आजाद, मुस्कराती औरतें, आखिर क्यों व कैसे लिखती हैं स्त्रियाँ (सम्पादन); सुनो तो सही (स्त्री विमर्श)। रजनी गुप्त ‘कहीं कुछ और’ उपन्यास राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ओपन यूनिवर्सिटी (उ.प्र.) के स्त्री विमर्श के पाठ्यक्रम एवं ‘सुनो तो सही’ हिन्दी साहित्य के इतिहास में शामिल रही हैं। पिछले 13 सालों से ‘कथाक्रम’ साहित्यिक पत्रिका में सम्पादकीय सहयोग दिया है। रजनी गुप्त को ‘एक नयी सुबह’ पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सर्जना पुरस्कार एवं युवा लेखन पुरस्कार, किताब घर प्रकाशन द्वारा आर्यस्मृति साहित्य सम्मान 2006, ‘किशोरी का आसमां’ उपन्यास पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा अमृतलाल नागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। रजनी गुप्त राष्ट्रीयकृत बैंक में प्रबन्धक के पद पर हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Ki Yaad Jo Karen Sabhi”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED