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Khoon Ke Chhinte Itihas Ke Pannon Par

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
भगवत शरण उपाध्याय
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
भगवत शरण उपाध्याय
Language:
Hindi
Format:
Hardback

221

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1-4 Days

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Availiblity

ISBN:
SKU 9788181431257 Category
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Page Extent:
144

आज जो मुझे गाँवों में दीन-हीन अवस्था में देखता है, उसे गुमान भी नहीं हो सकता कि सदियों की कूच में मैंने साम्राज्यों का संचालना किया है और अवरिल जनसंख्या मेरे संकेतों पर नाचती रही है। ना, मैं अब-सा दीन कभी न था। यह मेरे चरम उत्कर्ष का वैषम्य है। गाँवों में वस्तुतः मेरे प्रेत की छाया डोल रही है। मैं ब्राह्मण हूँ, मेरी कहानी ब्राह्मण की है-दृप्त, उद्दंड, ज्ञानपर। मैं केवल भारत का ही नहीं हूँ। सारे संसार की प्राचीन सभ्यताओं का मैं संचालक समर्थ अंग रहा हूँ। मिस्री राजाओं का मैं विशेष सुहृद् था। उस अदुत अनुलेप का आविष्कार मैंने की किया था।

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Description

आज जो मुझे गाँवों में दीन-हीन अवस्था में देखता है, उसे गुमान भी नहीं हो सकता कि सदियों की कूच में मैंने साम्राज्यों का संचालना किया है और अवरिल जनसंख्या मेरे संकेतों पर नाचती रही है। ना, मैं अब-सा दीन कभी न था। यह मेरे चरम उत्कर्ष का वैषम्य है। गाँवों में वस्तुतः मेरे प्रेत की छाया डोल रही है। मैं ब्राह्मण हूँ, मेरी कहानी ब्राह्मण की है-दृप्त, उद्दंड, ज्ञानपर। मैं केवल भारत का ही नहीं हूँ। सारे संसार की प्राचीन सभ्यताओं का मैं संचालक समर्थ अंग रहा हूँ। मिस्री राजाओं का मैं विशेष सुहृद् था। उस अदुत अनुलेप का आविष्कार मैंने की किया था।

About Author

इतिहासकार, पुराविद, कला-समीक्षक और साहित्यकार भगवत शरण उपाध्याय के शोध-कार्यों एवं रचनाओं से हिन्दी के पाठक भली भाँति परिचित हैं। 63 वर्ष की आयु में भी आप में तरुणों जैसी स्फूर्ति, ओज और उल्लास है। संसार का भ्रमण तो आप लगभग आधे दर्जन बार कर ही चुके हैं, मध्य पूर्व तथा पश्चिमी एशिया के प्राचीन स्थलों-त्राय, निनेवे, बाबुल आदि-में पुरातात्विक अध्ययन के लिए आपने विशेष रूप से प्रवास किया। पुरातत्व संग्रहालय, लखनऊ के 1940 से 1944 तक क्यूरेटर रह चुकने के बाद 1953 से 1956 तक आप इस्टिट्यूट ऑफ़ एशियन स्टडीज, हैदराबाद के डाइरेक्टर रहे। 1957 से 1964 की अवधि में आपने भारत सरकार के हिन्दी विश्वकोश का सम्पादन किया। योरप के विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर' तो आप हैं ही, अनेक बार अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में, विदेशों में, भारत के शिष्टमंडल के सदस्य के रूप में भी आपने काम किया है। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के निमंत्रण पर गत कई वर्षों से आप वहाँ प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष हैं। विश्व साहित्य की रूपरेखा, समीक्षा के संदर्भ पुरातत्व का रोमांस गुप्तकाल का सांस्कृतिक इतिहास इंडिया इन कालिदास, विमेन इन ऋग्वेद, दि एन्शियेंट वर्ल्ड आदि हिन्दी और अंग्रेजी में लगभग 100 ग्रंथों के आप रचयिता हैं। प्राच्य विद्या सम्मेलन, उज्जैन के कालिदास विभाग के आप मनोनीत अध्यक्ष हैं।

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