Kavita Ki Samkaleen Samvedana

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
व्यास मणि त्रिपाठी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
व्यास मणि त्रिपाठी
Language:
Hindi
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Hardback

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150

कविता की समकालीन संवेदना –

घर में घुस आये बाज़ार से मानवीय सम्बन्धों की रागात्मकता में जहाँ एक ओर शुष्कता और संवेदनहीनता की स्थिति पैदा हुई है तो दूसरी ओर व्यवस्था की ख़ामियों ने जीना दूभर कर दिया है। कहीं बचपन बाज़ार में नीलाम होने के लिए अभिशप्त है तो कहीं जवान जिस्म पर गिद्ध दृष्टि है। कहीं खेल-कूद की उम्र में बुधिया लुगदी गादी बीनती है तो कहीं काग़ज़ -क़लम पकड़ने वाले कोमल करों में फावड़ा-कुदाल है। कहीं बचपन सिसकता है तो कहीं जवानी में बुढ़ापा दिखता है। अभाव और असमंजस, दुविधा और दुश्चिन्ता ने आम आदमी को जहाँ सतत संकट-ग्रस्त किया है तो वहीं अहम्मन्यता और अभिमान में डूबे धनपशुओं की चाँदी ही चाँदी है। लोभ, लालच, स्वार्थ और ईर्ष्या-द्वेष ने वातावरण को अराजक और अमानवीय बनाया है तो हिंसा और आतंक मनुष्यता के लिए ख़तरा है। कविता का यही समकाल है। अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाकर भी अगर कविता ने इस समकालीनता को अपनी संवेदना का विषय बनाया है तो इसलिए कि बेहतर मनुष्य और बेहतर समाज की संकल्पना की साकारता उसका ध्येय है।

जिजीविषा और आस्था का उत्सव रचने की प्रयत्नशीलता ने उसके सरोकारों की दुनिया का विस्तार किया है। विसंगतियों और विडम्बनाओं से मुक्ति की आकांक्षा ने उसे विद्रोही और व्यंग्यपूर्ण बनाया है। इन्हीं का व्यापक और सघन विश्लेषण तथा मूल्यांकन किया है डॉ. त्रिपाठी ने

इस पुस्तक में।

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कविता की समकालीन संवेदना –

घर में घुस आये बाज़ार से मानवीय सम्बन्धों की रागात्मकता में जहाँ एक ओर शुष्कता और संवेदनहीनता की स्थिति पैदा हुई है तो दूसरी ओर व्यवस्था की ख़ामियों ने जीना दूभर कर दिया है। कहीं बचपन बाज़ार में नीलाम होने के लिए अभिशप्त है तो कहीं जवान जिस्म पर गिद्ध दृष्टि है। कहीं खेल-कूद की उम्र में बुधिया लुगदी गादी बीनती है तो कहीं काग़ज़ -क़लम पकड़ने वाले कोमल करों में फावड़ा-कुदाल है। कहीं बचपन सिसकता है तो कहीं जवानी में बुढ़ापा दिखता है। अभाव और असमंजस, दुविधा और दुश्चिन्ता ने आम आदमी को जहाँ सतत संकट-ग्रस्त किया है तो वहीं अहम्मन्यता और अभिमान में डूबे धनपशुओं की चाँदी ही चाँदी है। लोभ, लालच, स्वार्थ और ईर्ष्या-द्वेष ने वातावरण को अराजक और अमानवीय बनाया है तो हिंसा और आतंक मनुष्यता के लिए ख़तरा है। कविता का यही समकाल है। अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाकर भी अगर कविता ने इस समकालीनता को अपनी संवेदना का विषय बनाया है तो इसलिए कि बेहतर मनुष्य और बेहतर समाज की संकल्पना की साकारता उसका ध्येय है।

जिजीविषा और आस्था का उत्सव रचने की प्रयत्नशीलता ने उसके सरोकारों की दुनिया का विस्तार किया है। विसंगतियों और विडम्बनाओं से मुक्ति की आकांक्षा ने उसे विद्रोही और व्यंग्यपूर्ण बनाया है। इन्हीं का व्यापक और सघन विश्लेषण तथा मूल्यांकन किया है डॉ. त्रिपाठी ने

इस पुस्तक में।

About Author

व्यास मणि त्रिपाठी जन्म : 1 अक्तूबर 1959 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिलान्तर्गत बढ़वलिया नामक गाँव में। शिक्षा : गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर से हिन्दी में एम.ए. और पीएच.डी. । प्रकाशित पुस्तकें : कविता, कहानी, निवन्ध, आलोचना, लोक-कथा आदि की 34 पुस्तकें प्रकाशित । जिनमें साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित जगन्नाथ दास 'रत्नाकर', नन्ददास, अण्डमान का हिन्दी साहित्य और अण्डमान तथा निकोबार की लोक कथाएँ तथा प्रकाशन विभाग, नयी दिल्ली से भारतीय स्वाधीनता संग्राम और अण्डमान पुस्तकें शामिल हैं। प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों शोध लेख, समीक्षा, कविताएँ, कहानियाँ, संस्मरण प्रकाशित । भारतीय साहित्य कोश, भारतीय लोक-साहित्य कोश, भारतीय बाल साहित्य कोश सहित 36 पुस्तकों में सहलेखन । सम्मान : दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में 'विश्व हिन्दी सम्मान'। मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी का 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचना' पुरस्कार। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का " रामविलास शर्मा सर्जना' पुरस्कार। हिन्दुस्तानी एकेडेमी, उत्तर प्रदेश, प्रयागराज का 'महावीर प्रसाद द्विवेदी आलोचना' पुरस्कार। विद्या वाचस्पति और विद्यावारिधि की मानद उपाधियों सहित अन्य दर्जनों पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त । वाणी प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तकें : भवानी प्रसाद मिश्र : अनुभव वैविध्य के अप्रतिम सर्जक, समकालीन संवेदना की परख, कविता की नयी संवेदना। सम्प्रति : अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, जवाहरलाल नेहरू राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर । मो. : 9431286189

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