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Katha Patkatha
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भण्डारी की यह पुस्तक – कथा-पटकथा कई कारणों मन्नू से अत्यन्त महत्त्व की है, और सँजोकर रखने वाली है। हम सभी जानते हैं कि मन्नू जी हिन्दी की एक प्रतिष्ठित और चर्चित कथाकार हैं, पर उनकी रचनात्मक दुनिया का एक और महत्त्वपूर्ण पक्ष रहा है-पटकथा लेखन का, जो अगर ओझल या विस्मृत नहीं हुआ है तो, अब तक इस रूप में संकलित तो नहीं ही हुआ था। यह पुस्तक इस ओर भी हमारा ध्यान खींचती है, भले प्रकारान्तर से, कि साहित्यिक कृतियों की पटकथाएँ संकलित और प्रकाशित भी होनी चाहिए क्योंकि जिन कथाओं-उपन्यासों पर वे आधारित होती हैं, या किसी रचनाकार द्वारा नये सिरे से लिखी जाती हैं, उनका पटकथा रूप हमें उनके एक नये प्रकार के पाठ का अवसर देता है। और उसका आनन्द भी हम नयी तरह से उठा सकते हैं। विश्व सिनेमा की पटकथाओं को, (टी.वी. नाटकों आदि को भी) संकलित-प्रकाशित करने की पश्चिम में एक सुदीर्घ परम्परा रही है। साहित्यिक कृतियों के नाट्य रूपान्तर, या उनके टी.वी. धारावाहिकों की पटकथाएँ एक और कारण से भी महत्त्व की हैं। टी.वी. धारावाहिक कभी-कभी रिपीट तो होते हैं, पर, ज़रा कम, और अगली पीढ़ियों तक चर्चित धारावाहिकों या टी.वी. फ़िल्मों की ख़बर उनकी पटकथाएँ ही पहुँचाती हैं। मन्नू जी लिखित, और अपने समय में अत्यन्त चर्चित धारावाहिक रजनी (जिसमें प्रिया तेंडुलकर मुख्य भूमिका में रहती थीं, और घर-घर लोकप्रिय हो गयी थीं) तथा भारत की विभिन्न भाषाओं की कहानियों पर आधारित दर्पण हो, या प्रेमचन्द के उपन्यास पर आधारित निर्मला-मन्नू जी के ऐसे कामकाज हैं, जिनकी ख़बर वर्तमान की, और भविष्य की पीढ़ियों को होनी ही चाहिए। और जो पीढ़ियाँ इन्हें छोटे परदे पर देख चुकी हैं, उनके लिए भी तो इन्हें पढ़ना, फिर से एक नये अनुभव से गुज़रना ही साबित होगा। इस पुस्तक की पटकथा की कथा शीर्षक भूमिका में मन्नू जी ने अपने पटकथा लेखन की शुरुआत को, और उसकी प्रक्रिया (ओं) को भी बहुत अच्छी तरह याद किया है, और सोदाहरण भी यह बताया है कि मूलकथा (या मर्म) को
सुरक्षित रखते हुए कुछ नये दृश्य-प्रसंग भी क्यों पटकथा में शामिल करने पड़ते हैं, और क्यों महादेवी जी के घीसा जैसे विशिष्ट शैली में लिखे हुए संस्मरण को कथा के रूप में ढालना होता है। मन्नू जी ने नाट्य रूपान्तर (महाभोज) और फ़िल्म की पटकथा (स्वामी) से लेकर टी. वी. धारावाहिकों की विधा तक और जैसा काम किया है, वह यह याद दिलाने के लिए पर्याप्त है कि इन सभी विधाओं के लिए किया गया लेखन न केवल अग्रणी और पायनियरिंग की कोटि में रखा जायेगा, वह बराबर इस रूप में भी याद किया जायेगा कि जब एक रचनाकार किसी काम को शिद्दत से हाथ में लेता, और उसे पूरा करता है, तो किसी माध्यम विशेष की अपनी शर्तों और नियमों में कुछ इजाफ़ा ही करता है। यह ध्यान देने की बात है कि जब हिन्दी में मन्नू जी ने पटकथा लेखन का काम शुरू किया था तब तक पटकथा लेखन के लिए दिशा-निर्देश देने वाली कोई पुस्तक भी हिन्दी में प्रकाशित नहीं हुई थी।
खोज-ढूँढ़कर इकट्ठा की गयीं मन्नू जी की इन कुछ पटकथाओं को प्रकाशित करने का काम, निश्चय ही दस्तावेज़ी महत्त्व का भी बन गया है। मन्नू जी की कथा – भाषा में सादगी के साथ जैसी गहराई और रचनाशीलता हमें मिलती है, वैसी ही इन पटकथाओं में भी हम पायेंगे, लक्ष्य यह भी करेंगे कि पटकथा के रूप में ढालकर उन्होंने कई साहित्यिक कृतियों को, किस प्रकार एक नये मर्म (और अर्थ ) से भी भर दिया है। दूसरे शब्दों में, उन्होंने पटकथा की विधा में अपने रचनाकार को भी एक नयी तरह से ढूँढ़ा और खोजा है। आख़िरकार विभिन्न और एक-दूसरे से भिन्न, विधाओं का जन्म ही इसीलिए हुआ है कि अभिव्यक्ति को भाषा को नये रूप और अर्थ मिल सकें। इस तथ्य को भी कथा-पटकथा रेखांकित करती है।
– देवेन्द्र राज अंकुर
भण्डारी की यह पुस्तक – कथा-पटकथा कई कारणों मन्नू से अत्यन्त महत्त्व की है, और सँजोकर रखने वाली है। हम सभी जानते हैं कि मन्नू जी हिन्दी की एक प्रतिष्ठित और चर्चित कथाकार हैं, पर उनकी रचनात्मक दुनिया का एक और महत्त्वपूर्ण पक्ष रहा है-पटकथा लेखन का, जो अगर ओझल या विस्मृत नहीं हुआ है तो, अब तक इस रूप में संकलित तो नहीं ही हुआ था। यह पुस्तक इस ओर भी हमारा ध्यान खींचती है, भले प्रकारान्तर से, कि साहित्यिक कृतियों की पटकथाएँ संकलित और प्रकाशित भी होनी चाहिए क्योंकि जिन कथाओं-उपन्यासों पर वे आधारित होती हैं, या किसी रचनाकार द्वारा नये सिरे से लिखी जाती हैं, उनका पटकथा रूप हमें उनके एक नये प्रकार के पाठ का अवसर देता है। और उसका आनन्द भी हम नयी तरह से उठा सकते हैं। विश्व सिनेमा की पटकथाओं को, (टी.वी. नाटकों आदि को भी) संकलित-प्रकाशित करने की पश्चिम में एक सुदीर्घ परम्परा रही है। साहित्यिक कृतियों के नाट्य रूपान्तर, या उनके टी.वी. धारावाहिकों की पटकथाएँ एक और कारण से भी महत्त्व की हैं। टी.वी. धारावाहिक कभी-कभी रिपीट तो होते हैं, पर, ज़रा कम, और अगली पीढ़ियों तक चर्चित धारावाहिकों या टी.वी. फ़िल्मों की ख़बर उनकी पटकथाएँ ही पहुँचाती हैं। मन्नू जी लिखित, और अपने समय में अत्यन्त चर्चित धारावाहिक रजनी (जिसमें प्रिया तेंडुलकर मुख्य भूमिका में रहती थीं, और घर-घर लोकप्रिय हो गयी थीं) तथा भारत की विभिन्न भाषाओं की कहानियों पर आधारित दर्पण हो, या प्रेमचन्द के उपन्यास पर आधारित निर्मला-मन्नू जी के ऐसे कामकाज हैं, जिनकी ख़बर वर्तमान की, और भविष्य की पीढ़ियों को होनी ही चाहिए। और जो पीढ़ियाँ इन्हें छोटे परदे पर देख चुकी हैं, उनके लिए भी तो इन्हें पढ़ना, फिर से एक नये अनुभव से गुज़रना ही साबित होगा। इस पुस्तक की पटकथा की कथा शीर्षक भूमिका में मन्नू जी ने अपने पटकथा लेखन की शुरुआत को, और उसकी प्रक्रिया (ओं) को भी बहुत अच्छी तरह याद किया है, और सोदाहरण भी यह बताया है कि मूलकथा (या मर्म) को
सुरक्षित रखते हुए कुछ नये दृश्य-प्रसंग भी क्यों पटकथा में शामिल करने पड़ते हैं, और क्यों महादेवी जी के घीसा जैसे विशिष्ट शैली में लिखे हुए संस्मरण को कथा के रूप में ढालना होता है। मन्नू जी ने नाट्य रूपान्तर (महाभोज) और फ़िल्म की पटकथा (स्वामी) से लेकर टी. वी. धारावाहिकों की विधा तक और जैसा काम किया है, वह यह याद दिलाने के लिए पर्याप्त है कि इन सभी विधाओं के लिए किया गया लेखन न केवल अग्रणी और पायनियरिंग की कोटि में रखा जायेगा, वह बराबर इस रूप में भी याद किया जायेगा कि जब एक रचनाकार किसी काम को शिद्दत से हाथ में लेता, और उसे पूरा करता है, तो किसी माध्यम विशेष की अपनी शर्तों और नियमों में कुछ इजाफ़ा ही करता है। यह ध्यान देने की बात है कि जब हिन्दी में मन्नू जी ने पटकथा लेखन का काम शुरू किया था तब तक पटकथा लेखन के लिए दिशा-निर्देश देने वाली कोई पुस्तक भी हिन्दी में प्रकाशित नहीं हुई थी।
खोज-ढूँढ़कर इकट्ठा की गयीं मन्नू जी की इन कुछ पटकथाओं को प्रकाशित करने का काम, निश्चय ही दस्तावेज़ी महत्त्व का भी बन गया है। मन्नू जी की कथा – भाषा में सादगी के साथ जैसी गहराई और रचनाशीलता हमें मिलती है, वैसी ही इन पटकथाओं में भी हम पायेंगे, लक्ष्य यह भी करेंगे कि पटकथा के रूप में ढालकर उन्होंने कई साहित्यिक कृतियों को, किस प्रकार एक नये मर्म (और अर्थ ) से भी भर दिया है। दूसरे शब्दों में, उन्होंने पटकथा की विधा में अपने रचनाकार को भी एक नयी तरह से ढूँढ़ा और खोजा है। आख़िरकार विभिन्न और एक-दूसरे से भिन्न, विधाओं का जन्म ही इसीलिए हुआ है कि अभिव्यक्ति को भाषा को नये रूप और अर्थ मिल सकें। इस तथ्य को भी कथा-पटकथा रेखांकित करती है।
– देवेन्द्र राज अंकुर
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