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Jansangharsh

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
घनश्याम पांडेय
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
घनश्याम पांडेय
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9789387919389 Category
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758

जनसंघर्ष –
यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें देवानांप्रिय प्रियदर्शी सम्राट अशोक के परवर्ती काल में यवन आक्रान्ताओं के विरुद्ध विविध रूपों में भारतीय जनता के संघर्षों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। अशोक के काल में मौर्य साम्राज्य की सीमाएँ एवं सीरिया के यूनानी महाक्षत्रप, अन्तियोक, की सीमाएँ परस्पर स्पर्श करती थीं। भारतीय इतिहास के विशालतम मौर्य साम्राज्य का अन्त अपेक्षाकृत द्रुत गति एवं नाटकीय ढंग से हुआ। अशोक की मृत्यु के तीस वर्ष के अन्दर यूनानी सेनाएँ हिन्दूकुश पर्वत को पार करने लगी थीं। डॉ. हेमचन्द्र रामचौधरी के अनुसार ‘अब वह शक्ति कहाँ चली गयी, जिसने सिकन्दर के प्रतिनिधियों को खदेड़ दिया था और सेल्यूकस की फ़ौजों के दाँत खट्टे कर दिए थे?’ यह उपन्यास इस प्रश्न का उत्तर खोजने का एक प्रयास है, जिसमें भारतीय साहस, शौर्य, देशभक्ति एवं उदारता के अनेक दृश्य प्रस्तुत किये गये हैं।
बहुत ही पठनीय व संग्रहणीय उपन्यास।

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Description

जनसंघर्ष –
यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें देवानांप्रिय प्रियदर्शी सम्राट अशोक के परवर्ती काल में यवन आक्रान्ताओं के विरुद्ध विविध रूपों में भारतीय जनता के संघर्षों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। अशोक के काल में मौर्य साम्राज्य की सीमाएँ एवं सीरिया के यूनानी महाक्षत्रप, अन्तियोक, की सीमाएँ परस्पर स्पर्श करती थीं। भारतीय इतिहास के विशालतम मौर्य साम्राज्य का अन्त अपेक्षाकृत द्रुत गति एवं नाटकीय ढंग से हुआ। अशोक की मृत्यु के तीस वर्ष के अन्दर यूनानी सेनाएँ हिन्दूकुश पर्वत को पार करने लगी थीं। डॉ. हेमचन्द्र रामचौधरी के अनुसार ‘अब वह शक्ति कहाँ चली गयी, जिसने सिकन्दर के प्रतिनिधियों को खदेड़ दिया था और सेल्यूकस की फ़ौजों के दाँत खट्टे कर दिए थे?’ यह उपन्यास इस प्रश्न का उत्तर खोजने का एक प्रयास है, जिसमें भारतीय साहस, शौर्य, देशभक्ति एवं उदारता के अनेक दृश्य प्रस्तुत किये गये हैं।
बहुत ही पठनीय व संग्रहणीय उपन्यास।

About Author

डॉ. घनश्याम पाण्डेय - प्रारम्भ से ही गणित में गहन अभिरुचि। सन् 1960 में सागर विश्वविद्यालय से एम.एससी. (गणित) तथा 1963 में जेकोबी श्रेणी की अभिसारिता एवं संकलनीयता पर गहन शोध करके विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएच.डी. एवं 1968 में डी.एससी. की उपाधि प्राप्त की। हंगेरियन विज्ञान अकादमी, बुडापेस्ट में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर, फुलब्राइट फ़ेलो (नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी, शिकागो, यू.एस.ए.) तथा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (राष्ट्रपति निवास, शिमला) के फ़ेलो रहे हैं। 15 वर्ष गणित विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में आचार्य एवं अध्यक्ष तथा 6 वर्ष तक भारतीय गणित इतिहास परिषद के अध्यक्ष रहे। गणित की प्रसिद्ध जर्मन पत्रिका 'Zentralblatt fur Mathematik' (Berlin) में शोध-पत्रों के समीक्षक तथा 10 वर्ष तक 'Vikram Mathematical Journal' के सम्पादक रहे हैं। देश-विदेश की लब्धप्रतिष्ठ शोध-पत्रिकाओं में लगभग 64 शोध-पत्र तथा उच्च गणित पर 5 पुस्तकें प्रकाशित। एक अन्य पुस्तक Acharya Varahmihira & Development of Mathematics' भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा प्रकाशनाधीन। 'वर:मिहिर' (उपन्यास) हिन्दी साहित्य में लेखक की प्रथम कृति ।

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