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Jane Pahchane Log

Publisher:
RajKamal
| Author:
Harishankar Parsai
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
RajKamal
Author:
Harishankar Parsai
Language:
Hindi
Format:
Paperback

149

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3-5 days

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Weight 140 g
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SKU 9789388183536 Categories , Tag
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Page Extent:
128

सुविख्यात व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई के इन संस्मरणात्मक शब्दचित्रों को पढ़ना एक नई अनुभव-यात्रा के समान है। इस अनुभव-यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि लेखक ने यहाँ अपने समकालीनों के रूप में कुछ साहित्यिक व्यक्तियों की ही चर्चा नहीं की है, बल्कि कुछ ग़ैर-साहित्यिक व्यक्तियों को भी गहरी आत्मीयता से उकेरा है। संग्रह के इस वैशिष्ट्य को परसाई जी ने स्वयं अपने ख़ास अन्दाज़ में इस प्रकार रेखांकित किया है—‘मेरे समकालीन’ जो यह लेख और चरित्रमाला लिखने की योजना है, तो सवाल है, मेरे समकालीन कौन? क्या सिर्फ़ लेखक? डॉक्टर के समकालीन डॉक्टर और चमार के समकालीन चमार? इसी तरह लेखक के समकालीन क्या सिर्फ़ लेखक? नहीं।…लेखकों, बुद्धिजीवी मित्रों के सिवा ये ‘छोटे’ कहलानेवाले लोग भी मेरे समकालीन हैं। मैं इन पर भी लिखूँगा।

फिर भी जिन जाने-अनजाने साहित्यिकों का उन्होंने यहाँ स्मरण किया है, वे हैं—श्रीकान्त वर्मा, केशव पाठक, प्रभात कुमार त्रिपाठी ‘प्रभात’, ब्रजकिशोर चतुर्वेदी, रामविलास शर्मा, शमशेर बहादुर सिंह, नामवर सिंह, माखनलाल चतुर्वेदी और सोमदत्त। इनके अतिरिक्त ‘मेरे समकालीन’ शीर्षक लेख में परसाई जी ने कुछ और साहित्यिकों को भी प्रसंगत: याद किया है।

वस्तुत: यह कृति परसाई सरीखे रचनाकार के गम्भीर रचनात्मक सरोकारों के साथ-साथ उनकी आत्मीय और सजग सामाजिकता का भी मूल्यवान साक्ष्य पेश करती है।

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Description

सुविख्यात व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई के इन संस्मरणात्मक शब्दचित्रों को पढ़ना एक नई अनुभव-यात्रा के समान है। इस अनुभव-यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि लेखक ने यहाँ अपने समकालीनों के रूप में कुछ साहित्यिक व्यक्तियों की ही चर्चा नहीं की है, बल्कि कुछ ग़ैर-साहित्यिक व्यक्तियों को भी गहरी आत्मीयता से उकेरा है। संग्रह के इस वैशिष्ट्य को परसाई जी ने स्वयं अपने ख़ास अन्दाज़ में इस प्रकार रेखांकित किया है—‘मेरे समकालीन’ जो यह लेख और चरित्रमाला लिखने की योजना है, तो सवाल है, मेरे समकालीन कौन? क्या सिर्फ़ लेखक? डॉक्टर के समकालीन डॉक्टर और चमार के समकालीन चमार? इसी तरह लेखक के समकालीन क्या सिर्फ़ लेखक? नहीं।…लेखकों, बुद्धिजीवी मित्रों के सिवा ये ‘छोटे’ कहलानेवाले लोग भी मेरे समकालीन हैं। मैं इन पर भी लिखूँगा।

फिर भी जिन जाने-अनजाने साहित्यिकों का उन्होंने यहाँ स्मरण किया है, वे हैं—श्रीकान्त वर्मा, केशव पाठक, प्रभात कुमार त्रिपाठी ‘प्रभात’, ब्रजकिशोर चतुर्वेदी, रामविलास शर्मा, शमशेर बहादुर सिंह, नामवर सिंह, माखनलाल चतुर्वेदी और सोमदत्त। इनके अतिरिक्त ‘मेरे समकालीन’ शीर्षक लेख में परसाई जी ने कुछ और साहित्यिकों को भी प्रसंगत: याद किया है।

वस्तुत: यह कृति परसाई सरीखे रचनाकार के गम्भीर रचनात्मक सरोकारों के साथ-साथ उनकी आत्मीय और सजग सामाजिकता का भी मूल्यवान साक्ष्य पेश करती है।

About Author

हरिशंकर परसाई

22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में जन्मे हरिशंकर पारसाई का आरंभिक जीवन कठिन संघर्ष का रहा । पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया और फिर 'डिप्लोमा इन टीचिंग' का कोर्स भी ।

आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं -- हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी-संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास); तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडंडियों का ज़माना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम इक उम्र से वाकिफ  हैं, जाने -पहचाने लोग, कहत कबीर, ठिठुरता हुआ गणतंत्र (व्यंग्य निबंध-संग्रह); पूछो परसाई से (साक्षात्कार)।

‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में आपकी सभी रचनाएँ संकलित हैं ।

आपकी रचनाओं के अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओँ और अंग्रेजी में हुए हैं ।

आपको केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार, मध्य प्रदेश के शिखर सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।

निधन : 10 अगस्त, 1995

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