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Jammu-Kashmir Ka Vishmrit Adhyay
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. Kuldeep Chand Agnihotri
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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1-4 Days
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Book Type |
---|
ISBN:
Categories: Hindi, Politics/Government
Page Extent:
28
जम्मू-कश्मीर में पिछले सात दशकों से जो राजनैतिक संघर्ष हुए, उनमें सबसे बड़ा संघर्ष राज्य को संघीय सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा बनाए रखने को लेकर ही था। विदेशी ताकतों की सहायता व रणनीति से कश्मीर घाटी का एक छोटा समूह इस व्यवस्था से अलग होने के लिए हिंसक आंदोलन चलाता रहा है। उसका सामना करनेवालों में लद्दाख के कुशोक बकुला रिंपोछे का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। ये रिंपोछे ही थे, जिन्होंने 1947-48 में ही स्पष्ट कर दिया था कि तथाकथित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के वेश में जनमत संग्रह के परिणाम जो भी हों, लद्दाख उससे बँधा नहीं रहेगा। वह हर हालत में भारत का अविभाज्य अंग रहेगा। इसकी जरूरत शायद इसलिए पड़ी थी, क्योंकि भारत में ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहना शुरू कर दिया था कि राज्य का भविष्य जनमत संग्रह पर टिका है। ऐसे समय में नेहरू व शेख अब्दुल्ला के साथ रहते हुए भी देश की अंता के मामले में बकुला रिंपोछे चट्टान की तरह अडिग रहे। हिंदी में कुशोक बकुला रिंपोछे पर यह पहली पुस्तक है। निश्चय ही इससे जम्मू-कश्मीर को उसकी समग्रता में समझने के इच्छुक समाजशास्त्रियों को सहायता मिलेगी|
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Description
जम्मू-कश्मीर में पिछले सात दशकों से जो राजनैतिक संघर्ष हुए, उनमें सबसे बड़ा संघर्ष राज्य को संघीय सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा बनाए रखने को लेकर ही था। विदेशी ताकतों की सहायता व रणनीति से कश्मीर घाटी का एक छोटा समूह इस व्यवस्था से अलग होने के लिए हिंसक आंदोलन चलाता रहा है। उसका सामना करनेवालों में लद्दाख के कुशोक बकुला रिंपोछे का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। ये रिंपोछे ही थे, जिन्होंने 1947-48 में ही स्पष्ट कर दिया था कि तथाकथित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के वेश में जनमत संग्रह के परिणाम जो भी हों, लद्दाख उससे बँधा नहीं रहेगा। वह हर हालत में भारत का अविभाज्य अंग रहेगा। इसकी जरूरत शायद इसलिए पड़ी थी, क्योंकि भारत में ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहना शुरू कर दिया था कि राज्य का भविष्य जनमत संग्रह पर टिका है। ऐसे समय में नेहरू व शेख अब्दुल्ला के साथ रहते हुए भी देश की अंता के मामले में बकुला रिंपोछे चट्टान की तरह अडिग रहे। हिंदी में कुशोक बकुला रिंपोछे पर यह पहली पुस्तक है। निश्चय ही इससे जम्मू-कश्मीर को उसकी समग्रता में समझने के इच्छुक समाजशास्त्रियों को सहायता मिलेगी|
About Author
डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री (26 मई, 1951) मूलतः हिंदी के साहित्यकार हैं। गुरुवाणी उनके विशेष अध्ययन का विषय है। पिछले दिनों प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘मध्यकालीन दशगुरु परंपरा: भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय’, खासी चर्चित रही। आप विश्व हिंदू परिषद् के संस्थापक महासचिव दादा साहेब आपटे के प्रथम जीवनीकार हैं। इसका मराठी और गुजराती में भी अनुवाद हुआ है। जम्मू-कश्मीर पर आपकी यह तीसरी पुस्तक है। इससे पहले जम्मू में प्रजा परिषद् आंदोलन पर लिखी ‘जम्मू-कश्मीर की अनकही कहानी’ का मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। अनेक देशों की यात्रा कर चुके डॉ. अग्निहोत्री सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं। आपातकाल का विरोध करते हुए सत्याग्रह किया और जेल यात्रा की। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में आंबेडकर पीठ के आचार्य रहे। पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे। अनेक वर्षों तक हिंदुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी के निदेशक मंडल में रहे। कुछ समय दैनिक समाचार-पत्र जनसत्ता से भी जुड़े रहे। हिमाचल रिसर्च इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष डॉ. अग्निहोत्री आजकल हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति हैं|
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