SaleHardback
Ishwar-Allah
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
असग़र वजाहत
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
असग़र वजाहत
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹299 ₹224
Save: 25%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789355180070
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
88
ईश्वर – अल्लाह असग़र वजाहत द्वारा लिखित नाटक है जो मनुष्य होना सर्वोपरि है’ के शाश्वत विचार को लेकर चलता है। नाटक द्वारा वे इस बात की पड़ताल करते हैं कि समाज का एक छोटा-सा अंग भी असहिष्णुता का बीज किसी के मन में बो सकता है। लेकिन मुद्दा यह है कि हमारा समाज ऐसे बीजों को विचार का खाद-पानी डाल उसे पोषित ही क्यों करता है? उन ताक़तों की पहचान ज़रूरी है जो ऐसी विद्रूप भंगिमाओं को समाज में अपने अस्तित्व को स्थापित करने में मदद करती हैं। यह नाटक ऐसी घातक प्रविधियों और उनकी तात्कालिक प्रतिक्रियाओं की पड़ताल करता है ताकि मनुष्य को हिंसक बनाये रखने के इस सतत षड्यन्त्र को समझा जा सके ।
यह नाटक ऐसे समाज को भी प्रश्नांकित करता है जो उज्जड़ है, जो इन्सान का इन्सान से भेद करता | मनुष्यता पर प्रश्न खड़े करता है कि जब मनुष्य को मनुष्य होने का अर्थ ही न मालूम हो तो वे अध्यात्म की पवित्रता और उसके मौलिक स्वरूप की संरचना को किस तरह समझ सकता है?
जाति और धर्म के आधार पर मनुष्य को मनुष्य ‘से अलग करना, ऊँच-नीच का भेद करना न ही कोई ईश्वर सिखाता है और न ही कोई अल्लाह । बौद्धिकता और ऐतिहासिक चेतना से विहीन लोगों का कोई छोटा और धूर्त समूह अपने निजी और तात्कालिक लाभों के लिए धर्म की मनमानी और उसकी आक्रामक व्याख्या करता है। चूँकि शेष समाज अपने विकासक्रम में है तो वह इस तरह की व्याख्याओं को सच मानकर अन्धानुकरण में राजनीति का शिकार हो जाता है और यही सोचता रहता है कि वह एक धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य कर रहा है।
Be the first to review “Ishwar-Allah” Cancel reply
Description
ईश्वर – अल्लाह असग़र वजाहत द्वारा लिखित नाटक है जो मनुष्य होना सर्वोपरि है’ के शाश्वत विचार को लेकर चलता है। नाटक द्वारा वे इस बात की पड़ताल करते हैं कि समाज का एक छोटा-सा अंग भी असहिष्णुता का बीज किसी के मन में बो सकता है। लेकिन मुद्दा यह है कि हमारा समाज ऐसे बीजों को विचार का खाद-पानी डाल उसे पोषित ही क्यों करता है? उन ताक़तों की पहचान ज़रूरी है जो ऐसी विद्रूप भंगिमाओं को समाज में अपने अस्तित्व को स्थापित करने में मदद करती हैं। यह नाटक ऐसी घातक प्रविधियों और उनकी तात्कालिक प्रतिक्रियाओं की पड़ताल करता है ताकि मनुष्य को हिंसक बनाये रखने के इस सतत षड्यन्त्र को समझा जा सके ।
यह नाटक ऐसे समाज को भी प्रश्नांकित करता है जो उज्जड़ है, जो इन्सान का इन्सान से भेद करता | मनुष्यता पर प्रश्न खड़े करता है कि जब मनुष्य को मनुष्य होने का अर्थ ही न मालूम हो तो वे अध्यात्म की पवित्रता और उसके मौलिक स्वरूप की संरचना को किस तरह समझ सकता है?
जाति और धर्म के आधार पर मनुष्य को मनुष्य ‘से अलग करना, ऊँच-नीच का भेद करना न ही कोई ईश्वर सिखाता है और न ही कोई अल्लाह । बौद्धिकता और ऐतिहासिक चेतना से विहीन लोगों का कोई छोटा और धूर्त समूह अपने निजी और तात्कालिक लाभों के लिए धर्म की मनमानी और उसकी आक्रामक व्याख्या करता है। चूँकि शेष समाज अपने विकासक्रम में है तो वह इस तरह की व्याख्याओं को सच मानकर अन्धानुकरण में राजनीति का शिकार हो जाता है और यही सोचता रहता है कि वह एक धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य कर रहा है।
About Author
असग़र वजाहत
हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक असगर वजाहत के अब तक सात उपन्यास, छह नाटक, पाँच कथा संग्रह, एक नुक्कड़ नाटक संग्रह और एक आलोचनात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। उपन्यासों तथा नाटकों के अतिरिक्त उन्होंने महत्त्वपूर्ण यात्रा संस्मरण भी लिखे हैं। ईरान और अज़रबाइजान की यात्रा पर आधारित उनका यात्रा संस्मरण चलते तो अच्छा था चर्चा में रहा है।
वर्ष 2007 में हिन्दी पत्रिका आउटलुक के एक सर्वेक्षण के अनुसार उन्हें हिन्दी के दस श्रेष्ठ लेखकों में शुमार किया गया था। उनकी कृतियों के अनुवाद अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, इतालवी, रूसी, हंगेरियन, फ़ारसी आदि भाषाओं में हो चुके हैं।
उन्होंने वी. वी. हिन्दी डॉट कॉम तथा 'हंस' जैसी पत्रिकाओं के लिए अतिथि सम्पादन किया है। उनके लेख हिन्दी के महत्त्वपूर्ण समाचारपत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।
श्रेष्ठ लेखन के अतिरिक्त उनकी गहरी रुचि चित्रकला तथा फ़ोटोग्राफ़ी में भी है। उनकी दो एकल प्रदर्शनियाँ वुदापैश्त, हंगरी और दिल्ली में हो चुकी हैं। उनके चित्र पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं।
असगर वजाहत लम्बे समय से फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ लिख रहे हैं। उन्होंने 1976 में मुज़फ्फर अली की फ़िल्म 'गमन', उसके बाद 'आगमन' तथा अन्य फ़िल्में लिखी हैं। आजकल वे विख्यात निर्देशक राजकुमार संतोषी के लिए पटकथा लिख रहे हैं जो उनके नाटक जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ पर आधारित है। वे पटकथा लेखन कार्यशालाएँ भी आयोजित करते रहते हैं।
अन्य सम्मानों के अतिरिक्त असगर वजाहत को उनके उपन्यास कैसी आगी लगाई के लिए कथा यू.के. द्वारा हाउस ऑफ़ लाईस लन्दन में सम्मानित किया जा चुका है। असगर वजाहत, जामिया मिल्लिया इस्लामिया (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) नयी दिल्ली के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त वे बुदापश्त, हंगरी में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। उन्होंने ए. जे. मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर के कार्यकारी निदेशक के रूप में भी काम किया है।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Ishwar-Allah” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Reviews
There are no reviews yet.