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The Hogwarts Library Box (Set Of 3) Paperback
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Hindi ki Shabd Sampada
Publisher:
RajKamal
| Author:
Vidyaniwas Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
RajKamal
Author:
Vidyaniwas Mishra
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹695 ₹556
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Weight | 460 g |
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Book Type |
ISBN:
SKU
9788126715930
Categories Hindi, PIRecommends
Categories: Hindi, PIRecommends
Page Extent:
292
ललित निबन्ध की शैली में लिखी गई भाषाविज्ञान की यह पुस्तक अपने आपमें अनोखी है। इस नए संशोधित-संवर्द्धित संस्करण में 12 नए अध्याय शामिल किए गए हैं और कुछ पुराने अध्यायों में भी छूटे हुए पारिभाषिक शब्दों को जोड़ दिया गया है। जजमानी, भेड़-बकरी पालन, पर्व-त्योहार और मेले, राजगीर और संगतरास आदि से लेकर वनौषधि तथा कारख़ाना शब्दावली जैसे ज़रूरी विषयों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है। अनुक्रमणिका में भी शब्दों की संख्या बढ़ा दी गई है।
बकौल लेखक : “यह साहित्यिक दृष्टि से हिन्दी की विभिन्न अर्थच्छटाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता की मनमौजी पैमाइश है : न यह पूरी है, न सर्वांगीण। यह एक दिङ्मात्र दिग्दर्शन है। इससे किसी अध्येता को हिन्दी की आंचलिक भाषाओं की शब्द-समृद्धि की वैज्ञानिक खोज की प्रेरणा मिले, किसी साहित्यकार को अपने अंचल से रस ग्रहण करके अपनी भाषा और पैनी बनाने के लिए उपालम्भ मिले, देहात के रहनेवाले पाठक को हिन्दी के भदेसी शब्दों के प्रयोग की सम्भावना से हार्दिक प्रसन्नता हो, मुझे बड़ी खुशी होगी।’’
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Description
ललित निबन्ध की शैली में लिखी गई भाषाविज्ञान की यह पुस्तक अपने आपमें अनोखी है। इस नए संशोधित-संवर्द्धित संस्करण में 12 नए अध्याय शामिल किए गए हैं और कुछ पुराने अध्यायों में भी छूटे हुए पारिभाषिक शब्दों को जोड़ दिया गया है। जजमानी, भेड़-बकरी पालन, पर्व-त्योहार और मेले, राजगीर और संगतरास आदि से लेकर वनौषधि तथा कारख़ाना शब्दावली जैसे ज़रूरी विषयों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है। अनुक्रमणिका में भी शब्दों की संख्या बढ़ा दी गई है।
बकौल लेखक : “यह साहित्यिक दृष्टि से हिन्दी की विभिन्न अर्थच्छटाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता की मनमौजी पैमाइश है : न यह पूरी है, न सर्वांगीण। यह एक दिङ्मात्र दिग्दर्शन है। इससे किसी अध्येता को हिन्दी की आंचलिक भाषाओं की शब्द-समृद्धि की वैज्ञानिक खोज की प्रेरणा मिले, किसी साहित्यकार को अपने अंचल से रस ग्रहण करके अपनी भाषा और पैनी बनाने के लिए उपालम्भ मिले, देहात के रहनेवाले पाठक को हिन्दी के भदेसी शब्दों के प्रयोग की सम्भावना से हार्दिक प्रसन्नता हो, मुझे बड़ी खुशी होगी।’’
About Author
जन्म : 28 जनवरी, 1926; गाँव—पकड़डीहा, ज़िला—गोरखपुर। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में, माध्यमिक शिक्षा गोरखपुर में, संस्कृत की पारम्परिक शिक्षा घर पर और वाराणसी में। 1945 में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए.। हिन्दी साहित्य सम्मेलन में स्वर्गीय राहुल की छाया में कोश-कार्य, फिर पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी की प्रेरणा से आकाशवाणी में कोश-कार्य, विंध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूचना विभागों में सेवा, गोरखपुर विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालयों में क्रमशः अध्यापन संस्कृत और भाषा-विज्ञान का। 1960-61 और 1967-68 में कैलिफ़ोर्निया और वाशिंगटन विश्वविद्यालयों में अतिथि अध्यापक। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के निदेशक; काशी विद्यापीठ तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति-पद से निवृत्त होने के बाद कुछ वर्षों के लिए नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली के सम्पादक भी रहे।प्रमुख कृतियाँ : ‘शेफाली झर रही है’, ‘गाँव का मन’, ‘संचारिणी’, ‘लागौ रंग हरी’, ‘भ्रमरानन्द के पत्र’, ‘अंगद की नियति’, ‘छितवन की छाँह’, ‘कदम की फूली डाल’, ‘तुम चन्दन हम पानी’, ‘आँगन का पंछी और बनजारा मन’, ‘मैंने सिल पहुँचाई’, ‘साहित्य की चेतना’, ‘बसन्त आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं’, ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’, ‘परम्परा बन्धन नहीं’, ‘कँटीले तारों के आर-पार’, ‘कौन तू फुलवा बीननि हारी’, ‘अस्मिता के लिए’, ‘देश, धर्म और साहित्य’ (निबन्ध-संग्रह); ‘दि डिस्क्रिप्टिव टेकनीक ऑफ़ पाणिनि’, ‘रीतिविज्ञान’, ‘भारतीय भाषा-दर्शन की पीठिका’, ‘हिन्दी की शब्द-सम्पदा’ (शोध); ‘पानी की पुकार’ (कविता-संग्रह); ‘रसखान रचनावली’, ‘रहीम ग्रन्थावली’, ‘देव की दीपशिखा’, ‘आलम ग्रन्थावली’, ‘नई कविता की मुक्तधारा’, ‘हिन्दी की जनपदीय कविता’ (सम्पादित)।
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