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Hindi Aalochana : Drishti Aur Pravritiyan (HB)
Publisher:
Lokbharti
| Author:
MANOJ PANDYA
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
MANOJ PANDYA
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹500 ₹400
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In stock
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789386863324
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी आलोचना : दृष्टि और प्रवृत्तियाँ’ के अन्तर्गत समूची हिन्दी आलोचना की परख-पड़ताल आलोचकों की रचना-दृष्टि के साक्ष्य पर करने का प्रयास किया गया है। दरअसल, आलोचकों के कृतित्व को केन्द्र में रखते हुए रचना-आलोचना के गतिमान तत्त्वों की पहचान ही लेखक का ध्येय रहा है। इसलिए आलोचना के इतिहास को रेखांकित करने के बजाय यहाँ आलोचकों की गवाही पर उसको प्रभावित करनेवाले कारकों को उद्घाटित करने का प्रयास हुआ है।
हिन्दी आलोचना के शलाका-पुरुष आचार्य शुक्ल से लेकर रचनाकार-आलोचक रमेशचन्द्र शाह तक की आलोचना-दृष्टि की विवेचना करते हुए उन पक्षों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है, जो आलोचना के विकास को चिन्हित करते हैं। साथ ही, आलोचना की उन प्रवृत्तियों पर भी यहाँ विचार किया गया है, जिनका सन्दर्भ भारतीय हो या पाश्चात्य, जिन्होंने हिन्दी आलोचना को गहरे तक प्रभावित किया है। शास्त्रीय परम्परावादी, तुलनात्मक, समाजशास्त्रीय पद्धति से लेकर उत्तर-आधुनिक विमर्शों तक पर विचार करना पुस्तक का उद्देश्य है।
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Description
प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी आलोचना : दृष्टि और प्रवृत्तियाँ’ के अन्तर्गत समूची हिन्दी आलोचना की परख-पड़ताल आलोचकों की रचना-दृष्टि के साक्ष्य पर करने का प्रयास किया गया है। दरअसल, आलोचकों के कृतित्व को केन्द्र में रखते हुए रचना-आलोचना के गतिमान तत्त्वों की पहचान ही लेखक का ध्येय रहा है। इसलिए आलोचना के इतिहास को रेखांकित करने के बजाय यहाँ आलोचकों की गवाही पर उसको प्रभावित करनेवाले कारकों को उद्घाटित करने का प्रयास हुआ है।
हिन्दी आलोचना के शलाका-पुरुष आचार्य शुक्ल से लेकर रचनाकार-आलोचक रमेशचन्द्र शाह तक की आलोचना-दृष्टि की विवेचना करते हुए उन पक्षों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है, जो आलोचना के विकास को चिन्हित करते हैं। साथ ही, आलोचना की उन प्रवृत्तियों पर भी यहाँ विचार किया गया है, जिनका सन्दर्भ भारतीय हो या पाश्चात्य, जिन्होंने हिन्दी आलोचना को गहरे तक प्रभावित किया है। शास्त्रीय परम्परावादी, तुलनात्मक, समाजशास्त्रीय पद्धति से लेकर उत्तर-आधुनिक विमर्शों तक पर विचार करना पुस्तक का उद्देश्य है।
About Author
मनोज पाण्डेय
सन् 1974 में इलाहाबाद में जन्मे मनोज पाण्डेय हिन्दी आलोचना, प्रयोजनमूलक हिन्दी और मीडिया के अध्ययन-अध्यापन में विशेष अभिरुचि रखते हैं।
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में कुछ वर्ष अध्यापन। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल की ‘स्वतंत्र भारत की पत्रकारिता’ विषयक शोध परियोजना से सम्बद्ध रहे। बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से जुड़कर यूनिसेफ़ द्वारा वित्तपोषित एक परियोजना में भी कुछ समय कार्य किया।
साहित्य से जुड़े नए प्रसंगों, नए विमर्शों पर सतत चिन्तन-लेखन। इन अनुशासनों पर 8 पुस्तकें तथा कई शोध लेख एवं आलेख प्रकाशित।
सम्प्रति : राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में अध्यापन।
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