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Havva Ki Betiyon Ki Dastan Dardja
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जयश्री रॉय की कृति ‘दर्दजा’ के पृष्ठों पर एक ऐसे संघर्ष की ख़ून औरतकलीफ़ में डूबी हुई गाथा दर्ज है जो अफ़्रीका के 28 देशों के साथ-साथ मध्य-पूर्व के कुछ देशों और मध्य व दक्षिण अमेरिका के कुछ जातीय समुदायों की करोड़ों स्त्रियों द्वारा फ़ीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफ़जीएम या औरतों की सुन्नत) की कुप्रथा के ख़िलाफ़ किया जा रहा है। स्त्री की सुन्नत का मतलब है उसके यौनांग के बाहरी हिस्से (भगनासा समेत उसके बाहरी ओष्ठ) को काट कर सिल देना, ताकि उसकी नैसर्गिक कामेच्छा को पूरी तरह से नियन्त्रिात करके उसे महज़ बच्चा पैदा करने वाली मशीन में बदला जा सके। धर्म, परम्परा और सेक्शुअलिटी के जटिल धरातल पर चल रही इस लड़ाई में विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनेस्को जैसी विश्व-संस्थाओं की सक्रिय हिस्सेदारी तो है ही, सत्तर के दशक में प्रकाशित होस्किन रिपोर्ट के बाद से नारीवादी आन्दोलन और उसके रैडिकल विमर्श ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है।—अभय कुमार दुबे निदेशक, भारतीय भाषा कार्यक्रम, विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस) दिल्ली
जयश्री रॉय की कृति ‘दर्दजा’ के पृष्ठों पर एक ऐसे संघर्ष की ख़ून औरतकलीफ़ में डूबी हुई गाथा दर्ज है जो अफ़्रीका के 28 देशों के साथ-साथ मध्य-पूर्व के कुछ देशों और मध्य व दक्षिण अमेरिका के कुछ जातीय समुदायों की करोड़ों स्त्रियों द्वारा फ़ीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफ़जीएम या औरतों की सुन्नत) की कुप्रथा के ख़िलाफ़ किया जा रहा है। स्त्री की सुन्नत का मतलब है उसके यौनांग के बाहरी हिस्से (भगनासा समेत उसके बाहरी ओष्ठ) को काट कर सिल देना, ताकि उसकी नैसर्गिक कामेच्छा को पूरी तरह से नियन्त्रिात करके उसे महज़ बच्चा पैदा करने वाली मशीन में बदला जा सके। धर्म, परम्परा और सेक्शुअलिटी के जटिल धरातल पर चल रही इस लड़ाई में विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनेस्को जैसी विश्व-संस्थाओं की सक्रिय हिस्सेदारी तो है ही, सत्तर के दशक में प्रकाशित होस्किन रिपोर्ट के बाद से नारीवादी आन्दोलन और उसके रैडिकल विमर्श ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है।—अभय कुमार दुबे निदेशक, भारतीय भाषा कार्यक्रम, विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस) दिल्ली
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