Halala

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
भगवानदास मोरवाल
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
भगवानदास मोरवाल
Language:
Hindi
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Hardback

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हलाला यानी तलाक़शुदा औरत किसी दूसरे मर्द से निकाह करे और फिर उससे तलाक़, या उसकी मौत के बाद ही वह पहले शौहर के लिए हलाल होती है, इसी का नाम हलाला है। सल्लाहे वलाहेअस्सलम ने क़ुरान के किस पारे (अध्याय) और सूरा (खण्ड) की किस आयत में कहा है कि पहले शौहर के पास वापस लौटने के लिए दूसरे शौहर से निकाह के बाद उससे ‘हम बिस्तर’ होना ज़रूरी है। दरअसल, हलाला धर्म की आड़ में बनाया गया एक ऐसा कानून है, जिसने स्त्री को भोग्या बनाने का काम किया है। सच तो यह है कि हलाला मर्द को तथाकथित सज़ा देने के नाम पर गढ़ा गया ऐसा पुरुषवादी षड्यन्त्र है जिसका ख़मियाजा अन्ततः औरत को ही भुगतना पड़ता है। सज़ा भी ऐसी जिसे आदिम बर्बरता के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता। अपने पहले शौहर द्वारा तलाक़ दे दी गयी नज़राना का उसके पड़ोसी व दूसरे मर्द डमरू यानी कलसंडा से हुए तथाकथित निकाह और इस निकाह के बाद फिर से, तलाक़ देने की कोशिश के बावजूद नज़राना को क्या उसका पहला शौहर नियाज़ और उसका परिवार उसे अपनाने के लिए तैयार हो जाएगा? हलाला बज़रिए नज़राना सीधे-सीधे पुरुषवादी धार्मिक सत्ता और एक पारिवारिक-सामाजिक समस्या को धार्मिकता का आवरण ओढ़ा, स्त्री के दैहिक-शोषण के खि़लाफ़ बिगुल बजाने और स्त्री-शुचिता को बचाये रखने की कोशिश का आख्यान है। अपने गहरे कथात्मक अन्वेषण, लोकविमर्श और अछूते विषय को केन्द्र में रख कर रचे गये इस उपन्यास के माध्यम से भगवानदास मोरवाल एक बार फिर उस अवधारणा को तोड़ने में सफल हुए हैं कि आज़ादी के बाद मुस्लिम परिवेश को केन्द्र में रखकर उपन्यास नहीं लिखे जा रहे हैं। नियाज़, डमरू और नज़राना के माध्यम से स्त्री-पुरुष के आदिम सम्बन्धों, लोक के गाढ़े रंग और क़िस्सागोई से पगा यह उपन्यास उस हिन्दुस्तानी गन्ध से लबरेज़ है, जो इधर हिन्दी उपन्यास से तेज़ी से गायब होता जा रहा है।

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हलाला यानी तलाक़शुदा औरत किसी दूसरे मर्द से निकाह करे और फिर उससे तलाक़, या उसकी मौत के बाद ही वह पहले शौहर के लिए हलाल होती है, इसी का नाम हलाला है। सल्लाहे वलाहेअस्सलम ने क़ुरान के किस पारे (अध्याय) और सूरा (खण्ड) की किस आयत में कहा है कि पहले शौहर के पास वापस लौटने के लिए दूसरे शौहर से निकाह के बाद उससे ‘हम बिस्तर’ होना ज़रूरी है। दरअसल, हलाला धर्म की आड़ में बनाया गया एक ऐसा कानून है, जिसने स्त्री को भोग्या बनाने का काम किया है। सच तो यह है कि हलाला मर्द को तथाकथित सज़ा देने के नाम पर गढ़ा गया ऐसा पुरुषवादी षड्यन्त्र है जिसका ख़मियाजा अन्ततः औरत को ही भुगतना पड़ता है। सज़ा भी ऐसी जिसे आदिम बर्बरता के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता। अपने पहले शौहर द्वारा तलाक़ दे दी गयी नज़राना का उसके पड़ोसी व दूसरे मर्द डमरू यानी कलसंडा से हुए तथाकथित निकाह और इस निकाह के बाद फिर से, तलाक़ देने की कोशिश के बावजूद नज़राना को क्या उसका पहला शौहर नियाज़ और उसका परिवार उसे अपनाने के लिए तैयार हो जाएगा? हलाला बज़रिए नज़राना सीधे-सीधे पुरुषवादी धार्मिक सत्ता और एक पारिवारिक-सामाजिक समस्या को धार्मिकता का आवरण ओढ़ा, स्त्री के दैहिक-शोषण के खि़लाफ़ बिगुल बजाने और स्त्री-शुचिता को बचाये रखने की कोशिश का आख्यान है। अपने गहरे कथात्मक अन्वेषण, लोकविमर्श और अछूते विषय को केन्द्र में रख कर रचे गये इस उपन्यास के माध्यम से भगवानदास मोरवाल एक बार फिर उस अवधारणा को तोड़ने में सफल हुए हैं कि आज़ादी के बाद मुस्लिम परिवेश को केन्द्र में रखकर उपन्यास नहीं लिखे जा रहे हैं। नियाज़, डमरू और नज़राना के माध्यम से स्त्री-पुरुष के आदिम सम्बन्धों, लोक के गाढ़े रंग और क़िस्सागोई से पगा यह उपन्यास उस हिन्दुस्तानी गन्ध से लबरेज़ है, जो इधर हिन्दी उपन्यास से तेज़ी से गायब होता जा रहा है।

About Author

जन्म : 23 जनवरी, 1960, नगीना, जिला मेवात (हरियाणा)। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा। कृतियाँ : उपन्यास : काला पहाड़ (1999), बाबल तेरा देस में (2004), रेत (2008 तथा 2010 में उर्दू में अनुवाद), नरक मसीहा (2014)। कहानी संग्रह : सिला हुआ आदमी (1986), सूर्यास्त से पहले (1990), अस्सी मॉडल उ$र्फ सूबेदार (1994), सीढ़ियाँ, माँ और उसका देवता (2008), लक्ष्मण-रेखा (2010), दस प्रतिनिधि कहानियाँ (2014)। कविता संग्रह : दोपहरी चुप है (1990)। अन्य : कलयुगी पंचायत (बच्चों के लिए -1997), हिन्दी की श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, सम्पादन (1987), इक्कीस श्रेष्ठ कहानियाँ, सम्पादन (1988)। सम्मान/पुरस्कार : 'श्रवण सहाय एवार्ड’ (2012); 'जनकवि मेहरसिंह सम्मान’ (2010), हरियाणा साहित्य अकादमी; 'अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ (2009) कथा (यूके) लन्दन; 'शब्द साधक ज्यूरी सम्मान’ (2009); 'कथाक्रम सम्मान’ (2006) लखनऊ; 'साहित्यकार सम्मान’ (2004) हिन्दी अकादमी, दिल्ली; 'साहित्यिक कृति सम्मान’ (1999) हिन्दी अकादमी, दिल्ली; 'साहित्यिक कृति सम्मान’ (1994) हिन्दी अकादमी, दिल्ली; पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण द्वारा मद्रास का 'राजाजी सम्मान’ (1995); 'डॉ. अम्बेडकर सम्मान’ (1985) भारतीय दलित साहित्य अकादमी; पत्रकारिता के लिए 'प्रभादत्त मेमोरियल एवार्ड’ (1985); पत्रकारिता के लिए 'शोभना एवार्ड’ (1984)। जनवरी 2008 में ट्यूरिन (इटली) में आयोजित भारतीय लेखक सम्मेलन में शिरकत। पूर्व सदस्य, हिन्दी अकादमी (दिल्ली) एवं हरियाणा साहित्य अकादमी। सम्प्रति : उपनिदेशक, केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली। सम्पर्क : WZ-745G, दादा देव रोड, नज़दीक बाटा चौक, पालम, नई दिल्ली-110045 Email : bdmorval@gmail.com

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