Ghogho Rani Kitta Paani

Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
| Author:
Shaligram
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Author:
Shaligram
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9789393111340 Category
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136

घोघो रानी कित्ता पान
प्रस्तुत रचना रिपोर्ताजीय शैली की कलात्मक कृति है, जो अपनी कथा तथा उपकथाओं के छोटे-छोटे द्वीप बनाती आधुनिक तथा पौराणिक बिंबों का आदर्शोन्मुख वृत्त-चित्र उपस्थित करती है। रचना के अंतिम भाग में लोककथाओं के नायक अपने-अपने सुकर्मों की ध्वजा उठाए समाज के सिरमौर बने हुए हैं, जिसमें लोकनायक, लोरिक तथा लोकदेवता विशुराउत, कारूखिरहरि एवं दीनाभदरी के नाम शुमार में आते हैं, जिन्हें लेखक ने अपनी भाषिक पकड़ से बेहद रोचक बना दिया है। प्रस्तुत रचना में किस्सागोई तो है ही, लोकजीवन के विविध रंगों के साथ-साथ रागात्मक संवेदना भी उपस्थित है।
रचना के प्रथम भाग में कोसी नदी के उद्गम, जल-ग्रहण क्षेत्र, प्रवाह मार्ग, इसकी विध्वंसक परिवर्तनशीलता, विभिन्न धाराएँ, गंगा में संगमन इत्यादि भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्थितियों के रेखांकन के साथ-साथ इसकी विनाशलीला का भी विस्तार से वर्णन है।
कोसी क्षेत्र संगीत-कला का भी गढ़ रहा है, जो सहरसा के अंतर्गत पंचगछिया घराने के नाम से जाना जाता है। मांगन कामति पंचगछिया राजदरबार के बेजोड़ ठुमरी गायक थे। उनकी प्रसिद्धि बिहार से बाहर तक फैली हुई थी। पं. ओंकारनाथ ठाकुर, विनायकराव पटवर्द्धन, पं. जशराज, फैयाज खाँ जैसे दिग्गज संगीतज्ञों ने उनकी प्रशंसा की है। कहा जाता है कि एक महफिल में सुप्रसिद्ध गायिका अखतरीबाई फैजाबादी (बेगम अख्तर) ने जब मांगन के बोल सुने तो बोल पड़ीं—‘‘अरे भाई, जिंदा रहने दोगे या नहीं!’’ क्या मधुर एवं जादुई आवाज थी उनकी। तभी तो वे पंचगछिया राजदरबार के तानसेन कहलाते थे।

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घोघो रानी कित्ता पान
प्रस्तुत रचना रिपोर्ताजीय शैली की कलात्मक कृति है, जो अपनी कथा तथा उपकथाओं के छोटे-छोटे द्वीप बनाती आधुनिक तथा पौराणिक बिंबों का आदर्शोन्मुख वृत्त-चित्र उपस्थित करती है। रचना के अंतिम भाग में लोककथाओं के नायक अपने-अपने सुकर्मों की ध्वजा उठाए समाज के सिरमौर बने हुए हैं, जिसमें लोकनायक, लोरिक तथा लोकदेवता विशुराउत, कारूखिरहरि एवं दीनाभदरी के नाम शुमार में आते हैं, जिन्हें लेखक ने अपनी भाषिक पकड़ से बेहद रोचक बना दिया है। प्रस्तुत रचना में किस्सागोई तो है ही, लोकजीवन के विविध रंगों के साथ-साथ रागात्मक संवेदना भी उपस्थित है।
रचना के प्रथम भाग में कोसी नदी के उद्गम, जल-ग्रहण क्षेत्र, प्रवाह मार्ग, इसकी विध्वंसक परिवर्तनशीलता, विभिन्न धाराएँ, गंगा में संगमन इत्यादि भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्थितियों के रेखांकन के साथ-साथ इसकी विनाशलीला का भी विस्तार से वर्णन है।
कोसी क्षेत्र संगीत-कला का भी गढ़ रहा है, जो सहरसा के अंतर्गत पंचगछिया घराने के नाम से जाना जाता है। मांगन कामति पंचगछिया राजदरबार के बेजोड़ ठुमरी गायक थे। उनकी प्रसिद्धि बिहार से बाहर तक फैली हुई थी। पं. ओंकारनाथ ठाकुर, विनायकराव पटवर्द्धन, पं. जशराज, फैयाज खाँ जैसे दिग्गज संगीतज्ञों ने उनकी प्रशंसा की है। कहा जाता है कि एक महफिल में सुप्रसिद्ध गायिका अखतरीबाई फैजाबादी (बेगम अख्तर) ने जब मांगन के बोल सुने तो बोल पड़ीं—‘‘अरे भाई, जिंदा रहने दोगे या नहीं!’’ क्या मधुर एवं जादुई आवाज थी उनकी। तभी तो वे पंचगछिया राजदरबार के तानसेन कहलाते थे।

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