Gausevak (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Anil Yadav
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Anil Yadav
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नक्सल प्रभावित एक आदिवासी इलाक़े में विकास का मिथ, नक्सलियों और पुलिस-प्रशासन के बीच पिसते आदिवासी, लगातार मौत को अपने सामने देखते नाउम्मीद जीवन का अवसरवाद जो गौरक्षा की राजनीति करनेवाली एक पार्टी के लिए बहुत उर्वर ज़मीन तैयार करता है, और इन सबके बीच गाय की तस्करी करनेवाले एक गौसेवक आदिवासी नेता के टिकट पाने का जुगाड़…आदिवासी जीवन के संकटों का बयान करनेवाली मुद्रा से अनछुई यह कहानी संकटों के गतिविज्ञान में आपको गहरे ले जाती है, और मज़ा यह कि जाते हुए आपको लेखक के शोध/तजुर्बे से आतंकित/प्रभावित होने की याद भी नहीं रहती! आपको याद बस इतना रहता है कि आप ‘धामा चेरो’ नामक एक गौसेवक आदिवासी नेता की कहानी सुन रहे हैं जिसने कई और गोरखधंधों के साथ-साथ गौतस्करी से अच्छी कमाई की है और जो पिछली बार विफल रहने के बाद इस बार टिकट पाने के लिए कृतसंकल्प है। अनिल यादव की बारीक निगाह और कथाभाषा उनकी ख़ास पहचान है। वे चीज़ों को जिस तरह देखते हैं, उसमें निगाहें हर अवगुंठन को पार कर जाती हैं और ‘दृश्य’ के भीतर का ‘अदृश्य’ दिखने लगता है। इसी देखने से इस कहानीकार की ख़ास अपनी कथाभाषा जन्मी है। हिन्दी के युवा/लगभग-युवा कथाकारों में सम्भवतः अनिल यादव ही हैं जिन्हें, अब, कथाभाषा से पहचाना जा सकता है। यह उन्होंने क्रमशः अर्जित की है और ‘गौसेवक’ में यह अपनी पकी हुई पहचान के साथ है।    
—संजीव कुमार

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नक्सल प्रभावित एक आदिवासी इलाक़े में विकास का मिथ, नक्सलियों और पुलिस-प्रशासन के बीच पिसते आदिवासी, लगातार मौत को अपने सामने देखते नाउम्मीद जीवन का अवसरवाद जो गौरक्षा की राजनीति करनेवाली एक पार्टी के लिए बहुत उर्वर ज़मीन तैयार करता है, और इन सबके बीच गाय की तस्करी करनेवाले एक गौसेवक आदिवासी नेता के टिकट पाने का जुगाड़…आदिवासी जीवन के संकटों का बयान करनेवाली मुद्रा से अनछुई यह कहानी संकटों के गतिविज्ञान में आपको गहरे ले जाती है, और मज़ा यह कि जाते हुए आपको लेखक के शोध/तजुर्बे से आतंकित/प्रभावित होने की याद भी नहीं रहती! आपको याद बस इतना रहता है कि आप ‘धामा चेरो’ नामक एक गौसेवक आदिवासी नेता की कहानी सुन रहे हैं जिसने कई और गोरखधंधों के साथ-साथ गौतस्करी से अच्छी कमाई की है और जो पिछली बार विफल रहने के बाद इस बार टिकट पाने के लिए कृतसंकल्प है। अनिल यादव की बारीक निगाह और कथाभाषा उनकी ख़ास पहचान है। वे चीज़ों को जिस तरह देखते हैं, उसमें निगाहें हर अवगुंठन को पार कर जाती हैं और ‘दृश्य’ के भीतर का ‘अदृश्य’ दिखने लगता है। इसी देखने से इस कहानीकार की ख़ास अपनी कथाभाषा जन्मी है। हिन्दी के युवा/लगभग-युवा कथाकारों में सम्भवतः अनिल यादव ही हैं जिन्हें, अब, कथाभाषा से पहचाना जा सकता है। यह उन्होंने क्रमशः अर्जित की है और ‘गौसेवक’ में यह अपनी पकी हुई पहचान के साथ है।    
—संजीव कुमार

About Author

अब्दुल बिस्मिल्लाह

जन्म : 5 जुलाई, 1949 को इलाहाबाद ज़िले के बलापुर गाँव में।

शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. तथा डी.फिल.।

1993-95 के दौरान वार्सा यूनिवर्सिटी, वार्सा (पोलैंड) में तथा 2003-05 के दौरान भारतीय दूतावास, मॉस्को (रूस) के जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र में विजि़टिंग प्रोफ़ेसर रहे।

1988 में सोवियत संघ की यात्रा। उसी वर्ष ट्यूनीशिया में सम्पन्न एफ्रो-एशियाई लेखक सम्मेलन में शिरकत। पोलैंड में रहते हुए हंगरी, जर्मनी, प्राग और पेरिस की यात्राएँ। 2002 में म्यूनिख (जर्मनी) में आयोजित 'इंटरनेशनल बुक वीक' कार्यक्रम में हिस्सेदारी। 2012 में जोहांसबर्ग में आयोजित विश्व-हिन्दी सम्मेलन में शिरकत।

कृतियाँ : ‘कुठाँव’, ‘अपवित्र आख्यान’, ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’, ‘मुखड़ा क्या देखे’, ‘समर शेष है’, ‘ज़हरबाद’, ‘दंतकथा’, ‘रावी लिखता है’ (उपन्यास); ‘अतिथि देवो भव’, ‘रैन बसेरा’, ‘रफ़ रफ़ मेल’, ‘शादी का जोकर’, ‘ताकि सनद रहे’ (कहानी-संग्रह); ‘वली मुहम्मद और करीमन बी की कविताएँ’, ‘छोटे बुतों का बयान’ (कविता-संग्रह); ‘दो पैसे की जन्नत’ (नाटक); ‘अल्पविराम’, ‘कजरी’, ‘विमर्श के आयाम’ (आलोचना); ‘दस्तंबू’ (अनुवाद) आदि।

‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ के उर्दू तथा अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित। अनेक कहानियाँ मराठी, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू, बांग्ला, उर्दू, जापानी, स्पैनिश, रूसी तथा अंग्रेज़ी में अनूदित।

‘रावी लिखता है’ उपन्यास पंजाबी में पुस्तकाकार प्रकाशित।

‘रफ़ रफ़ मेल’ की 12 कहानियाँ ‘रफ़ रफ़ एक्सप्रेस’ शीर्षक से फ़्रेंच में अनूदित एवं पेरिस से प्रकाशित।

सम्मान : ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, दिल्ली हिन्दी अकादमी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान और म.प्र. साहित्य परिषद के ‘देव पुरस्कार’ से सम्मानित।

सम्प्रति : जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष और प्रोफ़ेसर के पद से सेवानिवृत्त।



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