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Gadyachintamani

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
वादिभसिंह सूरी, सम्पादन और अनुवाद : पन्नालाल जैन साहित्यचार्य
| Language:
Sanskrit
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
वादिभसिंह सूरी, सम्पादन और अनुवाद : पन्नालाल जैन साहित्यचार्य
Language:
Sanskrit
Format:
Hardback

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SKU 9789326354431 Category
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Page Extent:
460

गद्यचिन्तामणि नामक कथा साहित्य में प्रतिष्ठित है, ग्रन्थ का नाम ही प्रकट करता है कि रचयिता ने इसे उत्कृष्ट गद्य शैली में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। ऐसी ही रचनाओं के आधार से संस्कृत साहित्य की यह उक्ति सार्थक सिद्ध होती है, कि गद्य ही कवियों की प्रतिभा की कसौटी है।’ इस ग्रन्थ में वर्णित जीवन्धर की कथा इतनी लोकप्रिय हुई कि पश्चात् कालीन अनेक संस्कृत, अपभ्रंश, तमिल, कन्नड़ व हिन्दी भाषा के कवियों ने उसे काव्य व चम्पू को रूप देकर अपने-अपने साहित्य को परिपुष्ट किया है। इस कथा में विजया प्रातः काल राज्य-महिषी के पद पर आरूढ थी वही राजा सत्यन्धर का पतन हो जाने पर सायंकाल श्मशान पड़ी और रात्रि के घनघोर अन्धकार में मोक्षगामी कथानायक जीवन्धर को जन्म देती है। रानी विजया की आँखों में अपने पुत्र के जन्मोत्सव को झाँकी झूल रही है। और वर्तमान की दयनीय दशा पर नेत्रों से आँसू बरस रहे हैं। उस समय का वह दृश्य कितना करुणावह और कितना वैराग्यजनक बन पड़ा है इसे प्रत्येक सहृदय व्यक्ति समझ सकता है। विजया अपने भाई विदेहाधिप गोविन्द के घर जाकर अपमान के दिन बिताना पसन्द नहीं करती है किन्तु दंडकवन के तपोवन में तापसी के वेष में रहकर अपने विपत्ति के दिन काटना उचित समझती है। यह सब विपत्ति वह भोग रही है फिर भी अपने मनमन्दिर में जिनेन्द्र भगवान् के चरण-कमलों का ध्यान करती रहती है। माता का वात्सल्य से परिपूर्ण हृदय चाहता है कि मैं अपने पुत्र को खिला-पिलाकर आनन्द का अनुभव करूँ। आगे चलकर उसी दंडकवन में जीवन्धर के सखा-साथियों से जब काष्ठांगार के द्वारा उसके प्राणदंड का अपूर्ण समाचार सुनाती है तब उसका हृदय भर आता है; आँखों से सावन की झड़ी लग जाती है और दंडकवन का तपोवन एक आकस्मिक करुण क्रन्दन से गूँजने लगता है। पुत्र के प्रति माता की ममता को मानो कवि ने उड़ेलकर रख दिया है। अन्त में पूर्ण समाचार के सुनने पर उसका हृदय सन्तोष का अनुभव करता है। सखाओं द्वारा माता के जीवित रहने का समाचार प्राप्त कर जीवन्धर का हृदय भी माता पवित्र दर्शन करने के लिए अधीर हो उठता है। वे साथियों के साथ माता के पास द्रुतगति से आते है और माता के दर्शन कर गद्गद हो जाते है। इन सबका कवि ने जितना सरस वर्णन किया है उतना हम अन्यत्र कम पाते है।

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Description

गद्यचिन्तामणि नामक कथा साहित्य में प्रतिष्ठित है, ग्रन्थ का नाम ही प्रकट करता है कि रचयिता ने इसे उत्कृष्ट गद्य शैली में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। ऐसी ही रचनाओं के आधार से संस्कृत साहित्य की यह उक्ति सार्थक सिद्ध होती है, कि गद्य ही कवियों की प्रतिभा की कसौटी है।’ इस ग्रन्थ में वर्णित जीवन्धर की कथा इतनी लोकप्रिय हुई कि पश्चात् कालीन अनेक संस्कृत, अपभ्रंश, तमिल, कन्नड़ व हिन्दी भाषा के कवियों ने उसे काव्य व चम्पू को रूप देकर अपने-अपने साहित्य को परिपुष्ट किया है। इस कथा में विजया प्रातः काल राज्य-महिषी के पद पर आरूढ थी वही राजा सत्यन्धर का पतन हो जाने पर सायंकाल श्मशान पड़ी और रात्रि के घनघोर अन्धकार में मोक्षगामी कथानायक जीवन्धर को जन्म देती है। रानी विजया की आँखों में अपने पुत्र के जन्मोत्सव को झाँकी झूल रही है। और वर्तमान की दयनीय दशा पर नेत्रों से आँसू बरस रहे हैं। उस समय का वह दृश्य कितना करुणावह और कितना वैराग्यजनक बन पड़ा है इसे प्रत्येक सहृदय व्यक्ति समझ सकता है। विजया अपने भाई विदेहाधिप गोविन्द के घर जाकर अपमान के दिन बिताना पसन्द नहीं करती है किन्तु दंडकवन के तपोवन में तापसी के वेष में रहकर अपने विपत्ति के दिन काटना उचित समझती है। यह सब विपत्ति वह भोग रही है फिर भी अपने मनमन्दिर में जिनेन्द्र भगवान् के चरण-कमलों का ध्यान करती रहती है। माता का वात्सल्य से परिपूर्ण हृदय चाहता है कि मैं अपने पुत्र को खिला-पिलाकर आनन्द का अनुभव करूँ। आगे चलकर उसी दंडकवन में जीवन्धर के सखा-साथियों से जब काष्ठांगार के द्वारा उसके प्राणदंड का अपूर्ण समाचार सुनाती है तब उसका हृदय भर आता है; आँखों से सावन की झड़ी लग जाती है और दंडकवन का तपोवन एक आकस्मिक करुण क्रन्दन से गूँजने लगता है। पुत्र के प्रति माता की ममता को मानो कवि ने उड़ेलकर रख दिया है। अन्त में पूर्ण समाचार के सुनने पर उसका हृदय सन्तोष का अनुभव करता है। सखाओं द्वारा माता के जीवित रहने का समाचार प्राप्त कर जीवन्धर का हृदय भी माता पवित्र दर्शन करने के लिए अधीर हो उठता है। वे साथियों के साथ माता के पास द्रुतगति से आते है और माता के दर्शन कर गद्गद हो जाते है। इन सबका कवि ने जितना सरस वर्णन किया है उतना हम अन्यत्र कम पाते है।

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