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Fasak

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
राकेश तिवारी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
राकेश तिवारी
Language:
Hindi
Format:
Paperback

180

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1-4 Days

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SKU 9789352296798 Category
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256

फसक’ उत्तर-सत्य वाले इस दौर की एक जीती-जागती तस्वीर है जहाँ ‘अच्छे दिन’ के नाम पर अफ़वाह, अन्धविश्वास और फिरकापरस्ती के दिन फिर गये हैं; तथ्य, तर्क-विवेक और वैज्ञानिक नजरिए के प्रति आकर्षण का अल्पकालिक उभार अपने उतार पर है; उन गिरोहों की चाँदी है जिनके पास ‘भावनाएँ मथने वाली मथानियाँ’ हैं और एक नया सार्वजनिक दायरा रचते फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे द्रुत माध्यमों को भी उल्टी गंगा बहाने के अभियान में जोत दिया गया है। बचवाली नामक पहाड़ी क़स्बे की जमीन पर ऐसे दौर का साक्षात्कार करता यह उपन्यास तेजू, रेवा, पुष्पा, चन्दू पाण्डेय, भैयाजी, नन्नू महाराज, पी थ्री, लालबुझक्कड़, मोहन सिंह जैसे अलग- अलग पहचाने जा सकने वाले पात्रों के जरिये हमें हमारी दुनिया का एक नायाब ‘क्लोज-अप’ दिखाता है। यह वही दुनिया है जिसे हम अख़बारों, न्यूज चैनलों और अपने गली-मोहल्लों में रोज देखते हैं, पर इन सभी ठिकानों पर बिखरे हुए बिन्दुओं को जोड़कर जब राकेश एक मुकम्मल तस्वीर उभारते हैं तो हमें अहसास होता है कि इन बिन्दुओं की योजक- रेखाएँ अभी तक हमारी निगाहों से ओझल थीं। अचरज नहीं कि इस तस्वीर को देखने के बाद, उपन्यास के अन्त में आये लालबुझक्कड़ के ऐलान को हम अपने ही अन्दर से फूटते शब्दों की तरह सुनते हैं।

समय की नब्ज पर उँगली होते हुए भी ‘फसक’ में ज्वलन्त दस्तावेज़ रच देने का बहुप्रतिष्ठित लोभ इतना हावी नहीं है कि क़िस्सागोई पृष्ठभूमि में चली जाए। फसकियों ( गपोड़ियों) के इलाके से आनेवाले राकेश तिवारी किस्सा कहना जानते हैं। जिन लोगों ने ‘कठपुतली थक गयी’, ‘मुर्गीखाने की औरतें’, ‘मुकुटधारी चूहा’ जैसी उनकी कहानियाँ पढ़ी हैं, उन्हें पता है कि इस कथाकार की पकड़ से न समय की नब्ज छूटती है, न पाठक की। राकेश की खास बात है, इस चीज की समझ कि वाचक की बन्द मुट्ठी लाख की होती है और खुलकर भी खाक की नहीं होती बशर्ते सही समय पर खोली जाए। थोड़ा बताना, थोड़ा छुपा कर रखना, और ऐन उस वक़्त उद्घाटित करना जब आपका कुतूहल सब्र की सीमा लाँघने पर हो-यह उनकी क़िस्सागोई का गुर है। इसके साथ चुहलबाज भाषा और व्यंग्यगर्भित कथा-स्थितियाँ मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि एक बार उठाने के बाद आप उपन्यास को पूरा पढ़कर ही दम लें।

-संजीव कुमार

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Description

फसक’ उत्तर-सत्य वाले इस दौर की एक जीती-जागती तस्वीर है जहाँ ‘अच्छे दिन’ के नाम पर अफ़वाह, अन्धविश्वास और फिरकापरस्ती के दिन फिर गये हैं; तथ्य, तर्क-विवेक और वैज्ञानिक नजरिए के प्रति आकर्षण का अल्पकालिक उभार अपने उतार पर है; उन गिरोहों की चाँदी है जिनके पास ‘भावनाएँ मथने वाली मथानियाँ’ हैं और एक नया सार्वजनिक दायरा रचते फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे द्रुत माध्यमों को भी उल्टी गंगा बहाने के अभियान में जोत दिया गया है। बचवाली नामक पहाड़ी क़स्बे की जमीन पर ऐसे दौर का साक्षात्कार करता यह उपन्यास तेजू, रेवा, पुष्पा, चन्दू पाण्डेय, भैयाजी, नन्नू महाराज, पी थ्री, लालबुझक्कड़, मोहन सिंह जैसे अलग- अलग पहचाने जा सकने वाले पात्रों के जरिये हमें हमारी दुनिया का एक नायाब ‘क्लोज-अप’ दिखाता है। यह वही दुनिया है जिसे हम अख़बारों, न्यूज चैनलों और अपने गली-मोहल्लों में रोज देखते हैं, पर इन सभी ठिकानों पर बिखरे हुए बिन्दुओं को जोड़कर जब राकेश एक मुकम्मल तस्वीर उभारते हैं तो हमें अहसास होता है कि इन बिन्दुओं की योजक- रेखाएँ अभी तक हमारी निगाहों से ओझल थीं। अचरज नहीं कि इस तस्वीर को देखने के बाद, उपन्यास के अन्त में आये लालबुझक्कड़ के ऐलान को हम अपने ही अन्दर से फूटते शब्दों की तरह सुनते हैं।

समय की नब्ज पर उँगली होते हुए भी ‘फसक’ में ज्वलन्त दस्तावेज़ रच देने का बहुप्रतिष्ठित लोभ इतना हावी नहीं है कि क़िस्सागोई पृष्ठभूमि में चली जाए। फसकियों ( गपोड़ियों) के इलाके से आनेवाले राकेश तिवारी किस्सा कहना जानते हैं। जिन लोगों ने ‘कठपुतली थक गयी’, ‘मुर्गीखाने की औरतें’, ‘मुकुटधारी चूहा’ जैसी उनकी कहानियाँ पढ़ी हैं, उन्हें पता है कि इस कथाकार की पकड़ से न समय की नब्ज छूटती है, न पाठक की। राकेश की खास बात है, इस चीज की समझ कि वाचक की बन्द मुट्ठी लाख की होती है और खुलकर भी खाक की नहीं होती बशर्ते सही समय पर खोली जाए। थोड़ा बताना, थोड़ा छुपा कर रखना, और ऐन उस वक़्त उद्घाटित करना जब आपका कुतूहल सब्र की सीमा लाँघने पर हो-यह उनकी क़िस्सागोई का गुर है। इसके साथ चुहलबाज भाषा और व्यंग्यगर्भित कथा-स्थितियाँ मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि एक बार उठाने के बाद आप उपन्यास को पूरा पढ़कर ही दम लें।

-संजीव कुमार

About Author

राकेश तिवारी उत्तराखंड के गरमपानी (नैनीताल) में जन्म। कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल से शिक्षा । उपन्यास 'फसक' के अलावा दो कहानी संग्रह 'उसने भी देखा' और 'मुकुटधारी चूहा,' एक बाल उपन्यास 'तोता उड़' और पत्रकारिता पर एक पुस्तक 'पत्रकारिता की खुरदरी जमीन' प्रकाशित। एक दौर में सारिका, धर्मयुग, रविवार, साप्ताहिक हिन्दुस्तान से लेकर हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों के प्रकाशन के साथ चर्चित । बीच की लम्बी खामोशी के बाद पिछले कई वर्षों से सक्रिय कथा-लेखन । कुछेक शुरुआती कहानियों का पंजाबी, तेलुगु आदि भारतीय भाषाओं में अनुवाद। एक कहानी (तीसरा रास्ता ) पर फ़िल्म बनी है और एक कहानी (दरोग्गा जी से ना कव्यो) के नाट्य रूपान्तरण के बाद दिल्ली सहित कई शहरों में नाट्य प्रस्तुतियाँ | व्यंग्य और बाल साहित्य लेखन भी। पत्रकार के रूप में अख़बारों और पत्रिकाओं के लिए राजनीति, खेल, साहित्य, कला, फ़िल्म, पर्यावरण, जनान्दोलन और अन्य समसामयिक विषयों पर लेखन। इंडियन एक्सप्रेस समूह के राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक 'जनसत्ता' में उप-सम्पादक, वरिष्ठ उपसम्पादक, वरिष्ठ संवाददाता, प्रमुख संवाददाता और विशेष संवाददाता के रूप में पत्रकारिता की लम्बी पारी। इस दौरान राजनीतिक और अन्य क्षेत्रों के अलावा साहित्यिक-सांस्कृतिक रिपोर्टिंग में एक अलग पहचान बनाई। शुरुआती दौर में रंगकर्म और पटकथा लेखन से थोड़ा-बहुत नाता । छिटपुट तौर पर पत्रकारिता का अध्यापन और अनुवाद कार्य। दिल्ली में निवास । सम्पर्क : rtiwari.express@gmail.com फोन : 09811807279

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