Facebukiya Love

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
विनोद भारद्वाज
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
विनोद भारद्वाज
Language:
Hindi
Format:
Hardback

169

Save: 25%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789389563474 Category
Category:
Page Extent:
94

वरिष्ठ कवि, कथाकार, उपन्यासकार, कला और फ़िल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज की ये कहानियाँ प्रेम, सेक्स और आधुनिक जीवन की काव्यात्मक महागाथा हैं। गौरतलब है कि विनोद भारद्वाज ने करीब चार दशकों में महज़ 11 कहानियाँ लिखी हैं, जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक विशेषांकों में छपकर पहले ही चर्चित हो चुकी हैं।

पहली नज़र में देखें तो ऐसा लगता है कि संग्रह की अधिकांश कहानियाँ (चितेरी, अभिनेत्री, लेखिका, एक अभिनेत्री का अधूरा पत्र, ‘दूसरी’ पत्नी, फेसबुकिया लव) नये ज़माने में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के बदलते रिश्तों पर केन्द्रित हैं। लेकिन दरअसल इन कहानियों के केन्द्र में वह ‘नयी स्त्री’ है, जिसकी प्राथमिकताएँ, सपने, आकांक्षाएँ, संघर्ष के तरीके तेज़ी से बदल रहे हैं। स्त्रीवाद, स्त्री-मुक्ति के बहुप्रचारित तुमुल कोलाहल-कलह से बहुत दूर खड़ी ये औरतें पितृसत्ता से मोल-भाव के तमाम तरीके आजमाने में माहिर हो चुकी हैं। वे अवसरों को पहचानती हैं और अपने हक़ में उनका उपयोग करना सीख चुकी हैं। नयी स्त्री के नित नये बदलते रूपों के समक्ष पुरुष किरदार कहीं भौंचक हैं, कहीं दयनीय नज़र आते हैं तो कहीं चारों खाने चित्त। इन कहानियों में एक तरफ़ लेखकीय तटस्थता का अचूक निर्वाह और औपन्यासिक विस्तार की सम्भावनाएँ दीखती हैं तो दूसरी तरफ़ हिन्दी कथा-साहित्य के बहुप्रचलित छातीपीटू ‘हाय-हाय वाद’ से मुक्ति का रास्ता भी। तमाम जटिलताओं, उलझनों और दुश्वारियों के बीच ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती और ‘सेलिब्रेशन’ का भाव यहाँ अन्तगरुंफित है। सम्भवतः इसी वजह से इन कहानियों में कुछ ऐसा आकर्षण है, जो बार-बार अपने पाठ के लिए उकसाती हैं। कथानक और भाषा, दोनों मोर्चे पर ये कहानियाँ हमें सचमुच कुछ नया देती हैं-हिन्दी गल्प का नितान्त नया लहजा। भाषा का चुस्त, चुटीला कॉमिक मिज़ाज़, जिसका रसीला आस्वाद धीरे-धीरे हमारे अन्तःलोक में उतरता है, घुलता है। कहानियों के किरदार हमारी स्मृतियों का हिस्सा बन जाते हैं।

– अभिषेक कश्यप

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Facebukiya Love”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

वरिष्ठ कवि, कथाकार, उपन्यासकार, कला और फ़िल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज की ये कहानियाँ प्रेम, सेक्स और आधुनिक जीवन की काव्यात्मक महागाथा हैं। गौरतलब है कि विनोद भारद्वाज ने करीब चार दशकों में महज़ 11 कहानियाँ लिखी हैं, जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक विशेषांकों में छपकर पहले ही चर्चित हो चुकी हैं।

पहली नज़र में देखें तो ऐसा लगता है कि संग्रह की अधिकांश कहानियाँ (चितेरी, अभिनेत्री, लेखिका, एक अभिनेत्री का अधूरा पत्र, ‘दूसरी’ पत्नी, फेसबुकिया लव) नये ज़माने में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के बदलते रिश्तों पर केन्द्रित हैं। लेकिन दरअसल इन कहानियों के केन्द्र में वह ‘नयी स्त्री’ है, जिसकी प्राथमिकताएँ, सपने, आकांक्षाएँ, संघर्ष के तरीके तेज़ी से बदल रहे हैं। स्त्रीवाद, स्त्री-मुक्ति के बहुप्रचारित तुमुल कोलाहल-कलह से बहुत दूर खड़ी ये औरतें पितृसत्ता से मोल-भाव के तमाम तरीके आजमाने में माहिर हो चुकी हैं। वे अवसरों को पहचानती हैं और अपने हक़ में उनका उपयोग करना सीख चुकी हैं। नयी स्त्री के नित नये बदलते रूपों के समक्ष पुरुष किरदार कहीं भौंचक हैं, कहीं दयनीय नज़र आते हैं तो कहीं चारों खाने चित्त। इन कहानियों में एक तरफ़ लेखकीय तटस्थता का अचूक निर्वाह और औपन्यासिक विस्तार की सम्भावनाएँ दीखती हैं तो दूसरी तरफ़ हिन्दी कथा-साहित्य के बहुप्रचलित छातीपीटू ‘हाय-हाय वाद’ से मुक्ति का रास्ता भी। तमाम जटिलताओं, उलझनों और दुश्वारियों के बीच ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती और ‘सेलिब्रेशन’ का भाव यहाँ अन्तगरुंफित है। सम्भवतः इसी वजह से इन कहानियों में कुछ ऐसा आकर्षण है, जो बार-बार अपने पाठ के लिए उकसाती हैं। कथानक और भाषा, दोनों मोर्चे पर ये कहानियाँ हमें सचमुच कुछ नया देती हैं-हिन्दी गल्प का नितान्त नया लहजा। भाषा का चुस्त, चुटीला कॉमिक मिज़ाज़, जिसका रसीला आस्वाद धीरे-धीरे हमारे अन्तःलोक में उतरता है, घुलता है। कहानियों के किरदार हमारी स्मृतियों का हिस्सा बन जाते हैं।

– अभिषेक कश्यप

About Author

1948 में लखनऊ में जन्मे विनोद भारद्वाज ने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1971 में मनोविज्ञान में एम.ए. किया। 1967-69 में वह अपने समय की बहुचर्चित पत्रिका ‘आरम्भ’ के एक सम्पादक थे। 1973 से 1998 तक वह टाइम्स ऑफ़ इंडिया के हिन्दी प्रकाशनों से पत्रकार के रूप में जुड़े रहे। धर्मवीर भारती के ‘धर्मयुग’ में प्रारम्भिक प्रशिक्षण के बाद वह लम्बे समय तक ‘दिनमान’ से जुड़े रहे जहाँ रघुवीर सहाय ने उनसे आधुनिक जीवन, विचार, फ़िल्म और कला पर नियमित लिखवाया। नब्बे के दशक में तीन साल तक वह नवभारत टाइम्स के फीचर सम्पादक रहे। अब वह स्वतन्त्र पत्रकारिता, फ़िल्म निर्माण और आर्ट क्यूरेटर का काम करते हैं। 1989 में उन्हें लेनिनग्राद (रूस) के पहले ग़ैर कथाफ़िल्म अन्तरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव की अन्तरराष्ट्रीय ज्यूरी का एक सदस्य बनाया गया था। अभी तक हिन्दी के वह एक एकमात्र फ़िल्म समीक्षक हैं जिन्हें अन्तरराष्ट्रीय ज्यूरी के सदस्य बनाये जाने का यह दुर्लभ सम्मान मिला। 1981 में वर्ष की श्रेष्ठ कविता के लिए उन्हें भारतभूषण अग्रवाल सम्मान (उस साल के निर्णायक विष्णु खरे) मिला और 1982 में नामवर सिंह की अध्यक्षता में ज्यूरी ने उन्हें श्रेष्ठ सर्जनात्मक लेखन के लिए संस्कृति पुरस्कार दिया। उनके तीन कविता संग्रह (जलता मकान, होशियारपुर, होशियारपुर और अन्य कविताएँ), एक कहानी संग्रह (चितेरी) और दो उपन्यास (सेप्पुकु, सच्चा झूठ) छप चुके हैं। कला और सिनेमा पर उनकी अनेक चर्चित पुस्तकें हैं। उनका लिखा ‘वृहद् आधुनिक कला कोश’ वाणी प्रकाशन की एक बहुचर्चित पुस्तक है। ‘सेप्पुकु’ का ब्रज शर्मा द्वारा किया गया अंग्रेज़ी अनुवाद हार्पर कॉलिंस से छपा है जहाँ से इस साल के अन्त में ‘सच्चा झूठ’ का अंग्रेज़ी अनुवाद भी आ रहा है। विनोद भारद्वाज ने कला सम्बन्धी कुछ प्रयोगधर्मी फ़िल्मों का निर्देशन भी किया है। ये फ़िल्में अमेरिका की प्रसिद्ध एलेक्जेंडर स्ट्रीट प्रेस द्वारा ऑनलाइन वितरण के लिए अनुबन्धित हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Facebukiya Love”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED