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Devbhoomi Developers
Publisher:
Hind Yugm
| Author:
Naveen Joshi
| Language:
English
| Format:
Paperback
Publisher:
Hind Yugm
Author:
Naveen Joshi
Language:
English
Format:
Paperback
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Book Type |
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ISBN:
Category: Historical fiction
Page Extent:
312
यह उपन्यास सन 1984 से 2016 तक के उत्तराखंड के ताज़ा इतिहास की पृष्ठभूमि में आधुनिक विकास की विसंगति, प्राकृतिक संसाधनों के असीमित दोहन, राजनीति की कुरूपता और गाँवों के उजड़ने की कहानी कहता है। यह उपन्यास ‘चिपको आंदोलन’ के बाद कुमाऊँ में छिड़े जबरदस्त ‘नशा नहीं रोजगार दो’ आंदोलन से शुरू होता है, जिसमें जनता की, विशेषकर महिलाओं की ‘चिपको’ जैसी व्यापक भागीदारी थी। उपन्यास टिहरी बांध बनने और उसके विरोध में हुए आंदोलन की कहानी के साथ बताता है कि बड़े बांध कैसे एक समूचे समाज और उसकी सभ्यता-संस्कृति को दफ़्न कर देते हैं। इसमें ‘पंचेश्वर बांध’ की प्रक्रिया शुरू होने से उपजी आशंकाओं की व्यथा-कथा भी है। ‘पृथक उत्तराखंड आंदोलन’ और तराई के भूमिहीन किसानों की लंबी लड़ाई की कहानी भी यह कहता है। उत्तराखंड राज्य बनने के संघर्ष की कहानी के साथ यह भी बताया गया है कि कैसे वह धीरे-धीरे जनता के सपनों से दूर होता गया और कैसे आधुनिक विकास और बड़ी पूँजी का गठजोड़ जनता को अपने जल-जंगल-जमीन से विस्थापित करता गया। आज भी प्राकृतिक संसाधनों का व्यापक दोहन जारी है। गाँवों से पलायन इतना अधिक हो गया है कि वहाँ ‘भूत’ रहने लगे हैं। सामाजिक-राजनैतिक संगठनों और नेताओं के बिखराव के साथ ही उत्तराखंड की जनता के संघर्ष और आशा-निराशा का वर्णन भी यहाँ है।
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Description
यह उपन्यास सन 1984 से 2016 तक के उत्तराखंड के ताज़ा इतिहास की पृष्ठभूमि में आधुनिक विकास की विसंगति, प्राकृतिक संसाधनों के असीमित दोहन, राजनीति की कुरूपता और गाँवों के उजड़ने की कहानी कहता है। यह उपन्यास ‘चिपको आंदोलन’ के बाद कुमाऊँ में छिड़े जबरदस्त ‘नशा नहीं रोजगार दो’ आंदोलन से शुरू होता है, जिसमें जनता की, विशेषकर महिलाओं की ‘चिपको’ जैसी व्यापक भागीदारी थी। उपन्यास टिहरी बांध बनने और उसके विरोध में हुए आंदोलन की कहानी के साथ बताता है कि बड़े बांध कैसे एक समूचे समाज और उसकी सभ्यता-संस्कृति को दफ़्न कर देते हैं। इसमें ‘पंचेश्वर बांध’ की प्रक्रिया शुरू होने से उपजी आशंकाओं की व्यथा-कथा भी है। ‘पृथक उत्तराखंड आंदोलन’ और तराई के भूमिहीन किसानों की लंबी लड़ाई की कहानी भी यह कहता है। उत्तराखंड राज्य बनने के संघर्ष की कहानी के साथ यह भी बताया गया है कि कैसे वह धीरे-धीरे जनता के सपनों से दूर होता गया और कैसे आधुनिक विकास और बड़ी पूँजी का गठजोड़ जनता को अपने जल-जंगल-जमीन से विस्थापित करता गया। आज भी प्राकृतिक संसाधनों का व्यापक दोहन जारी है। गाँवों से पलायन इतना अधिक हो गया है कि वहाँ ‘भूत’ रहने लगे हैं। सामाजिक-राजनैतिक संगठनों और नेताओं के बिखराव के साथ ही उत्तराखंड की जनता के संघर्ष और आशा-निराशा का वर्णन भी यहाँ है।
About Author
जन्म– सन 1955, पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) के सुदूर गाँव रैंतोली (गणाई-गंगोली) के मूल निवासी। पढ़ाई-लिखाई लखनऊ में। ‘स्वतंत्र भारत’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘दैनिक जागरण’, ‘हिंदुस्तान’ और ‘दैनिक भास्कर’ समाचार पत्रों में 38 वर्षों तक पत्रकारिता। ‘हिंदुस्तान’ के कार्यकारी संपादक पद से अवकाश ग्रहण के बाद स्वतंत्र लेखन। ‘पहाड़’ और ‘नैनीताल समाचार’ की टीम से सम्बद्ध। बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक में उत्तराखंड में हुए वन (चिपको) आंदोलन के मूल विचार, आंतरिक संघर्ष एवं विचलन, वनवासियों के बढ़ते संकट और सतत प्रवास की त्रासदी पर आधारित चर्चित उपन्यास ‘दावानल’ के अलावा ‘टिकटशुदा रुक्का’ (उपन्यास) ‘अपने मोर्चे पर’ तथा ‘राजधानी की शिकार कथा’ (दोनों कहानी-संग्रह), ‘मीडिया और मुद्दे’ (पत्रकारिता), ‘लखनऊ का उत्तराखंड’ (समाज-अध्ययन) ‘ये चिराग जल रहे है’ (संस्मरण) प्रकाशित। महाश्वेता देवी के संपादन में बांग्ला पत्रिका ‘वर्तिका’ में ‘दावानल’ के कुछ अंश धारावाहिक प्रकाशित। कुछ कहानियाँ तेलुगु, कन्नड़, बांग्ला और उर्दू में अनूदित। राजेश्वर प्रसाद सिंह कथा सम्मान, गोपाल उपाध्याय साहित्य सम्मान, गिर्दा स्मृति सम्मान, एवं आनद सागर कथाक्रम सम्मान-2020
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