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Champaran Mein Mahatma Gandhi
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‘चंपारन में महात्मा गांधी’ को पढ़ने से पाठकों को विदित हो जाएगा कि सत्याग्रह और असहयोग के संबंध में जो कुछ महात्मा गांधी ने सन् १९२० से १९२२ ई. तक किया, उसका आभास चंपारन में १९१७ में ही मिल चुका था। दक्षिण अफ्रीका से लौटकर महात्मा गांधी ने महत्त्व का जो पहला काम किया था, वह चंपारन में ही किया था। उस समय भारतवर्ष में ‘होमरूल’ का बड़ा शोर था। जब हम महात्माजी से कहते थे कि वे उस आंदोलन में चंपारन को भी लगा दें, तब वे यह कहा करते थे कि जो काम चंपारन में हो रहा है, वही ‘होमरूल’ स्थापित कर सकेगा। जिस प्रकार भारतवर्ष को अन्याय और दुराचार के भार से दबता हुआ देखकर महात्माजी ने असहयोग-आंदोलन आरंभ किया, उसी प्रकार चंपारन की प्रजा को भी अन्याय और अत्याचार के बोझ से दबती हुई पाकर और उसका उद्धार करना अपना कर्तव्य समझकर उन्होंने वहाँ भी पदार्पण किया था। जिस प्रकार भारतवर्ष ने सभाओं और समाचार-पत्रों और कौंसिल में प्रस्तावों तथा प्रश्नों के द्वारा आंदोलन कर कुछ सफलता प्राप्त न करने पर ही सत्याग्रह और असहयोग आरंभ किया, उसी प्रकार चंपारन में भी यह सबकुछ करके थक जाने पर ही वहाँ की जनता ने महात्मा गांधी को निमंत्रित किया था। जिस प्रकार वर्तमान आंदोलन में महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना अनन्य सिद्धांत रखकर देश को उसे स्वीकार करने की चंपारन की शिक्षा दी है, उसी प्रकार उस समय भी दरिद्र, अशिक्षित और भोली-भाली प्रजा को व्याख्यान के द्वारा नहीं, बल्कि अपने कार्यों के द्वारा शिक्षा दी थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कलम से प्रसूत वर्तमान समय में भी अत्यंत प्रासंगिक व महत्त्वपूर्ण कृति।
‘चंपारन में महात्मा गांधी’ को पढ़ने से पाठकों को विदित हो जाएगा कि सत्याग्रह और असहयोग के संबंध में जो कुछ महात्मा गांधी ने सन् १९२० से १९२२ ई. तक किया, उसका आभास चंपारन में १९१७ में ही मिल चुका था। दक्षिण अफ्रीका से लौटकर महात्मा गांधी ने महत्त्व का जो पहला काम किया था, वह चंपारन में ही किया था। उस समय भारतवर्ष में ‘होमरूल’ का बड़ा शोर था। जब हम महात्माजी से कहते थे कि वे उस आंदोलन में चंपारन को भी लगा दें, तब वे यह कहा करते थे कि जो काम चंपारन में हो रहा है, वही ‘होमरूल’ स्थापित कर सकेगा। जिस प्रकार भारतवर्ष को अन्याय और दुराचार के भार से दबता हुआ देखकर महात्माजी ने असहयोग-आंदोलन आरंभ किया, उसी प्रकार चंपारन की प्रजा को भी अन्याय और अत्याचार के बोझ से दबती हुई पाकर और उसका उद्धार करना अपना कर्तव्य समझकर उन्होंने वहाँ भी पदार्पण किया था। जिस प्रकार भारतवर्ष ने सभाओं और समाचार-पत्रों और कौंसिल में प्रस्तावों तथा प्रश्नों के द्वारा आंदोलन कर कुछ सफलता प्राप्त न करने पर ही सत्याग्रह और असहयोग आरंभ किया, उसी प्रकार चंपारन में भी यह सबकुछ करके थक जाने पर ही वहाँ की जनता ने महात्मा गांधी को निमंत्रित किया था। जिस प्रकार वर्तमान आंदोलन में महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना अनन्य सिद्धांत रखकर देश को उसे स्वीकार करने की चंपारन की शिक्षा दी है, उसी प्रकार उस समय भी दरिद्र, अशिक्षित और भोली-भाली प्रजा को व्याख्यान के द्वारा नहीं, बल्कि अपने कार्यों के द्वारा शिक्षा दी थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कलम से प्रसूत वर्तमान समय में भी अत्यंत प्रासंगिक व महत्त्वपूर्ण कृति।
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