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Bhasha, Sahitya Aur Desh

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
आचार्य हजारीप्रसाद दिवेदी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
आचार्य हजारीप्रसाद दिवेदी
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9788126317943 Category
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192

भाषा, साहित्य और देश –
कालजयी साहित्यकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की इस पुस्तक का भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशन आधुनिक हिन्दी लेखन प्रकाशन जगत की निश्चित रूप से सही अर्थों में एक अद्वितीय घटना है, एक प्रीतिकर और रोमांचक उपलब्धि भी। भाषा, साहित्य और देश में संकलित आचार्य द्विवेदी के ये सारे निबन्ध पहली बार पुस्तकाकार प्रस्तुत हैं।
भारतीय संस्कृति और साहित्य की लोकोन्मुख क्रान्तिकारी परम्परा के प्रतीक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के इन निबन्धों में भाषा, साहित्य, संस्कृति, समाज और जीवन से जुड़ी एक बहुआयामी खनक और जीवन्त वैचारिक लय है। इनमें अतीत एवं वर्तमान के बीच प्रवहमान एक ऐसा सघन आत्मीय संवाद और लालित्य से भरपूर ऐसी गतिशील चिन्तनधारा है जो साहित्य के समकालीन परिदृश्य में भी सर्वथा प्रासंगिक है। कहना न होगा कि विशेष अर्थों में इतिहास से निरन्तर मुक्ति हमारी भारतीय परम्परा का सबसे बड़ा अवदान है।—और निस्सन्देह ध्यान से देखने पर स्पष्ट लगेगा कि आचार्य द्विवेदी के ये निबन्ध सजग एवं मर्मज्ञ पाठकों को ‘इतिहास’ से सहज ही मुक्त भी करते हैं।

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Description

भाषा, साहित्य और देश –
कालजयी साहित्यकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की इस पुस्तक का भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशन आधुनिक हिन्दी लेखन प्रकाशन जगत की निश्चित रूप से सही अर्थों में एक अद्वितीय घटना है, एक प्रीतिकर और रोमांचक उपलब्धि भी। भाषा, साहित्य और देश में संकलित आचार्य द्विवेदी के ये सारे निबन्ध पहली बार पुस्तकाकार प्रस्तुत हैं।
भारतीय संस्कृति और साहित्य की लोकोन्मुख क्रान्तिकारी परम्परा के प्रतीक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के इन निबन्धों में भाषा, साहित्य, संस्कृति, समाज और जीवन से जुड़ी एक बहुआयामी खनक और जीवन्त वैचारिक लय है। इनमें अतीत एवं वर्तमान के बीच प्रवहमान एक ऐसा सघन आत्मीय संवाद और लालित्य से भरपूर ऐसी गतिशील चिन्तनधारा है जो साहित्य के समकालीन परिदृश्य में भी सर्वथा प्रासंगिक है। कहना न होगा कि विशेष अर्थों में इतिहास से निरन्तर मुक्ति हमारी भारतीय परम्परा का सबसे बड़ा अवदान है।—और निस्सन्देह ध्यान से देखने पर स्पष्ट लगेगा कि आचार्य द्विवेदी के ये निबन्ध सजग एवं मर्मज्ञ पाठकों को ‘इतिहास’ से सहज ही मुक्त भी करते हैं।

About Author

हजारीप्रसाद द्विवेदी - श्रावण, शुक्ल, एकादशी। सम्वत् 1964 (19 अगस्त, 1907) को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के गाँव ओझवलिया में जन्म। श्री अनमोल द्विवेदी एवं श्रीमती ज्योतिर्मयी के ज्येष्ठ पुत्र। सन् 1930 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से आचार्य की उपाधि प्राप्त की। 8 नवम्बर, 1930 को हिन्दी-शिक्षक के रूप में शान्ति निकेतन में कार्यारम्भ। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के सम्पर्क में आये। 'विश्वभारती' पत्रिका का सम्पादन सन् 1942 से 1948 तक। हिन्दी भवन के संचालक सन् 1945 से 1950 तक। सन् 1949 में लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट्. की उपाधि। सन् 1950 से 1960 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफ़ेसर एवं अध्यापक। सन् 1957 में राष्ट्रपति द्वारा 'पद्मभूषण' से अलंकृत। सन् 1960-67 के दौरान पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष, डी.यू.आई. एवं टैगोर प्रोफ़ेसर। सन् 1967-69 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रेक्टर। सन् 1973 में साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत। सन् 1967 से मृत्युपर्यन्त 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' के उपाध्यक्ष। 19 मई, 1979 को दिल्ली में देहावसान।

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