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Bharatiya Jeevan Drishti
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Braj Kishore Kuthiala
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
₹400 ₹300
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In stock
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1-4 Days
In stock
Weight | 381 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
Categories: Hindi, Social/Cultural
Page Extent:
194
भारतीय जीवन दृष्टि प्रो. बृज किशोर कुठियाला का जीवन और दर्शन उनके लेखों में व्यापक रूप से दृश्यमान है, जो भारतीय संस्कृति का प्रतिमान है। जीवन पंचतत्त्व से उत्पन्न और पंचतत्त्व में समा जाने की यात्रा का वृत्तांत है। तत्त्वों के प्र उपयुक्त साहचर्य ही संतुलन कारक हैं। आत्मा और परमात्मा का संबंध देह से देहावसान तक और फिर मुक्ति की बैकुंठी भारतीय पुराणों में पढ़ने को मिलती है। जीवन एक सतत प्रवाह है, हमारे बाद भी चलेगा। ‘ब्रह्मसत्यम जगद् मिथ्या’ या ‘अहम् ब्रह्मास्मि तत्त्वमसि’ सूत्र वाक्य बहुत कुछ कह जाते हैं। संवाद जोड़ने का काम करता है, विवाद तोड़ने का। भारतीय संस्कृति समग्रता की दृष्टि से अस्तित्व में है। प्रो. कुठियाला के लेख वेदांत दर्शन अथवा एकात्म मानवदर्शन की भावना को व्यक्त करते हैं। भारतीय चिंतन में देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण से मुक्ति की बातें हैं। व्यक्ति पर समाज का ऋण भी है। मनुष्य राष्ट्रकल्याण, समाज-कल्याण, और लोक-कल्याण से इस ऋण से मुक्त हो सकता है। इसके लिए आवश्यक है हम लोक के साथ संवाद बनाए रखें। वादे वादे जायते तत्त्व बोधः। बात करते रहने से तत्त्व मिलता है। नारद और ब्रह्माजी, शौनकादि ऋषि और सूतजी, कृष्ण और अर्जुन, काकभुशुण्डि और गरुड़जी, आचार्य मंडन मिश्र और आदि-शंकराचार्य से जो ज्ञान मिला वह केवल मानव कल्याण के लिए नहीं है, बल्कि समस्त ब्रह्मांड के लिए है। प्रो. कुठियाला के लेखों में यह मंतव्य पढ़ने के बाद एहसास होगा। सभी लेख चिंतन, मनन और ज्ञानवर्धन के लिए उपयोगी हैं।.
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Description
भारतीय जीवन दृष्टि प्रो. बृज किशोर कुठियाला का जीवन और दर्शन उनके लेखों में व्यापक रूप से दृश्यमान है, जो भारतीय संस्कृति का प्रतिमान है। जीवन पंचतत्त्व से उत्पन्न और पंचतत्त्व में समा जाने की यात्रा का वृत्तांत है। तत्त्वों के प्र उपयुक्त साहचर्य ही संतुलन कारक हैं। आत्मा और परमात्मा का संबंध देह से देहावसान तक और फिर मुक्ति की बैकुंठी भारतीय पुराणों में पढ़ने को मिलती है। जीवन एक सतत प्रवाह है, हमारे बाद भी चलेगा। ‘ब्रह्मसत्यम जगद् मिथ्या’ या ‘अहम् ब्रह्मास्मि तत्त्वमसि’ सूत्र वाक्य बहुत कुछ कह जाते हैं। संवाद जोड़ने का काम करता है, विवाद तोड़ने का। भारतीय संस्कृति समग्रता की दृष्टि से अस्तित्व में है। प्रो. कुठियाला के लेख वेदांत दर्शन अथवा एकात्म मानवदर्शन की भावना को व्यक्त करते हैं। भारतीय चिंतन में देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण से मुक्ति की बातें हैं। व्यक्ति पर समाज का ऋण भी है। मनुष्य राष्ट्रकल्याण, समाज-कल्याण, और लोक-कल्याण से इस ऋण से मुक्त हो सकता है। इसके लिए आवश्यक है हम लोक के साथ संवाद बनाए रखें। वादे वादे जायते तत्त्व बोधः। बात करते रहने से तत्त्व मिलता है। नारद और ब्रह्माजी, शौनकादि ऋषि और सूतजी, कृष्ण और अर्जुन, काकभुशुण्डि और गरुड़जी, आचार्य मंडन मिश्र और आदि-शंकराचार्य से जो ज्ञान मिला वह केवल मानव कल्याण के लिए नहीं है, बल्कि समस्त ब्रह्मांड के लिए है। प्रो. कुठियाला के लेखों में यह मंतव्य पढ़ने के बाद एहसास होगा। सभी लेख चिंतन, मनन और ज्ञानवर्धन के लिए उपयोगी हैं।.
About Author
प्रो. बृज किशोर कुठियाला जन्म : 25 मार्च, 1948
जन्म, पालन-पोषण एवं स्नातक तक की शिक्षा शिमला में। पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़, भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान, पुणे एवं भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली से शिक्षित एवं प्रशिक्षित।
शोध, शैक्षणिक प्रबंधन, पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में प्रदीर्घ योगदान एवं जनजागरण में सक्रियता। विभागाध्यक्ष, अधिष्ठाता, प्रौक्टर, समन्वयक— विदेशी विद्यार्थी, निदेशक एवं कुलपति के रूप में नवाचार के लिए प्रतिष्ठित हस्ताक्षर। शोध रिपोर्ट मूल्यांकन, शोध पत्र, पुस्तकों, पुस्तिकाओं आदि में लेखन। दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं का संपादन। अंतररष्ट्रीय स्तर पर 21 देशों में भारत की बात शिक्षा, मीडिया, संस्कृति व सभ्यता के विषयों पर रखने का अनुभव।
विगत 50 वर्षों से शिक्षा, संस्कृति व सभ्यता पर विशिष्ट कार्यों हेतु सम्मानित। अंतररष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध एवं मानव अधिकार परिषद् के महासचिव, भारतीय चित्र साधना के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पंचनद शोध संस्थान के निदेशक।
संप्रति : अध्यक्ष, हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद्। पंचकुला में निवास।
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