Bhagwaticharan Verma : Sampurna Natak (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Bhagwaticharan Verma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Bhagwaticharan Verma
Language:
Hindi
Format:
Hardback

520

Save: 20%

In stock

Ships within:
3-5 days

In stock

Weight 0.396 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788126709342 Category
Category:
Page Extent:

भगवतीचरण वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार थे। अपने विचारों और जीवनानुभवों को उन्होंने उपन्यास, कहानी, कविता और नाटक आदि अनेक सर्जनात्मक विधाओं में अभिव्यक्त किया।
इस पुस्तक में भगवती बाबू के सभी गद्य और पद्य नाटकों को शामिल किया गया है। उनके प्रसिद्ध नाटक ‘रुपया तुम्हें खा गया’ के अलावा रेडियो के लिए लिखे हुए पद्य नाटक ‘कर्ण’, ‘द्रौपदी’, ‘महाकाल’ और ‘तारा’ भी इस संकलन में प्रस्तुत हैं।
स्वयं भगवती बाबू के शब्दों में—‘जहाँ तक गद्य में लिखे नाटक हैं, वे सब के सब मंच पर प्रस्तुत हो चुके हैं और किए जा सकते हैं। पद्य नाटक मैंने रेडियो के लिए लिखे थे। उनमें नाटकीयता के साथ कवित्व है और रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए उनमें थोड़ा-बहुत हेर-फेर किया जा सकता है।’
इस संग्रह में शामिल गद्य नाटक जहाँ भगवती बाबू की रंगमंच की समझ और सामर्थ्य का पता देते हैं, वहीं पद्य नाटकों से हमें उनकी काव्य-प्रतिभा का नए सिरे से लोहा मान लेना पड़ता है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Bhagwaticharan Verma : Sampurna Natak (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

भगवतीचरण वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार थे। अपने विचारों और जीवनानुभवों को उन्होंने उपन्यास, कहानी, कविता और नाटक आदि अनेक सर्जनात्मक विधाओं में अभिव्यक्त किया।
इस पुस्तक में भगवती बाबू के सभी गद्य और पद्य नाटकों को शामिल किया गया है। उनके प्रसिद्ध नाटक ‘रुपया तुम्हें खा गया’ के अलावा रेडियो के लिए लिखे हुए पद्य नाटक ‘कर्ण’, ‘द्रौपदी’, ‘महाकाल’ और ‘तारा’ भी इस संकलन में प्रस्तुत हैं।
स्वयं भगवती बाबू के शब्दों में—‘जहाँ तक गद्य में लिखे नाटक हैं, वे सब के सब मंच पर प्रस्तुत हो चुके हैं और किए जा सकते हैं। पद्य नाटक मैंने रेडियो के लिए लिखे थे। उनमें नाटकीयता के साथ कवित्व है और रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए उनमें थोड़ा-बहुत हेर-फेर किया जा सकता है।’
इस संग्रह में शामिल गद्य नाटक जहाँ भगवती बाबू की रंगमंच की समझ और सामर्थ्य का पता देते हैं, वहीं पद्य नाटकों से हमें उनकी काव्य-प्रतिभा का नए सिरे से लोहा मान लेना पड़ता है।

About Author

भगवतीचरण वर्मा

जन्म : 30 अगस्त, 1903; उन्नाव ज़‍िले (उ.प्र.) का शफीपुर गाँव।

शिक्षा : इलाहाबाद से बी.ए., एल.एल.बी.।

प्रारम्भ में कविता-लेखन। फिर उपन्यासकार के नाते विख्यात। 1933 के क़रीब प्रतापगढ़ के राजा साहब भदरी के साथ रहे। 1936 के लगभग फ़‍िल्म कार्पोरेशन, कलकत्ता में कार्य। कुछ दिनों ‘विचार’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-सम्पादन। इसके बाद बम्बई में फ़‍िल्म-कथालेखन तथा दैनिक ‘नवजीवन’ का सम्पादन। फिर आकाशवाणी के कई केन्द्रों में कार्य। बाद में, 1957 से मृत्यु-पर्यन्त स्वतंत्र साहित्यकार के रूप में लेखन। ‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर दो बार फ़‍िल्म-निर्माण और ‘भूले-बिसरे चित्र’ ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित। ‘पद्मभूषण’ तथा राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त।

 

प्रकाशित पुस्तकें : ‘अपने खिलौने’, ‘पतन’, ‘तीन वर्ष’, ‘चित्रलेखा’, ‘भूले-बिसरे चित्र’, ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘सीधी सच्ची बातें’, ‘सामर्थ्य और सीमा’, ‘रेखा’, ‘वह फिर नहीं आई’, ‘सबहिं नचावत राम गोसाईं’, ‘प्रश्न और मरीचिका’, ‘चाणक्य’, ‘थके पाँव’, ‘युवराज चूण्डा’, ‘धुप्पल’ (उपन्यास); ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘मेरी कहानियाँ’, ‘मोर्चाबन्दी’ तथा ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘मेरी कविताएँ’, ‘सविनय और एक नाराज कविता’ (कविता-संग्रह); ‘मेरे नाटक’, ‘वसीयत’, ‘सम्‍पूर्ण नाटक’ (नाटक); ‘अतीत के गर्त में’, ‘कहि न जाय का कहिए’ (संस्मरण); ‘साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप’ (साहित्यालोचन); ‘भगवतीचरण वर्मा रचनावली’—14 खंड (सम्पूर्ण रचनाएँ)।

निधन : 5 अक्टूबर, 1981

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Bhagwaticharan Verma : Sampurna Natak (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED