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Aur Anya Kavitayen (HB)
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विष्णु खरे की कविताएँ हिन्दी भाषा के सामर्थ्य को कई तरह के विषयों में ले जाकर विस्तृत और स्थित करती हैं। उनमें महाभारत से आज के यथार्थ का वृहत् वितान बनता है। वाक्य-विन्यास में यदि शाब्दिक लाघव है, तो शब्दों में भाषायी अर्थ-गहनता। दोनों पर अद् भुत पकड़ और चुस्त अन्तर्गतियाँ हैं : ठहरी गहराइयाँ हैं तो पाँव उखाड़ देनेवाला प्रवाह भी।
खरे की कविता के दो स्पष्ट ध्रुवान्त बनते हैं। एक तो उस प्रकार की कविताएँ हैं, जो मौजूदा
यथार्थ की भीड़ में कन्धे रगड़ती ही चलती हैं; दूसरी वे कविताएँ, जो हमें अनुभवों की अधिक अमूर्त शक्तियों का अहसास कराती हैं। दोनों के बीच फ़ासले हैं, किन्तु विरोध नहीं—यह आभास उनके काव्य-बोध को एक जटिल संगति देता है और अनुभूतियों के एक ज़्यादा बड़े क्षितिज की पहचान कराती है।
नैरेशन या वर्णन-विवरण की अनेक विधियों को विष्णु खरे ने अपनी कविताओं में कई तरह से इस्तेमाल किया है—इस बात को सही तरीक़े से लक्षित किया जाना चाहिए। एक अनोखा प्रयोग उनकी मिथकीय और ऐतिहासिक कविताओं में देखा जा सकता है। ‘महाभारत’ प्रसंग में रिपोर्ताज शैली का इस्तेमाल कविता, मिथक और मौजूदा यथार्थ को एक दुर्लभ त्रिकोणात्मक तनाव देता है।
—कुँवर नारायण
विष्णु खरे की कविताएँ हिन्दी भाषा के सामर्थ्य को कई तरह के विषयों में ले जाकर विस्तृत और स्थित करती हैं। उनमें महाभारत से आज के यथार्थ का वृहत् वितान बनता है। वाक्य-विन्यास में यदि शाब्दिक लाघव है, तो शब्दों में भाषायी अर्थ-गहनता। दोनों पर अद् भुत पकड़ और चुस्त अन्तर्गतियाँ हैं : ठहरी गहराइयाँ हैं तो पाँव उखाड़ देनेवाला प्रवाह भी।
खरे की कविता के दो स्पष्ट ध्रुवान्त बनते हैं। एक तो उस प्रकार की कविताएँ हैं, जो मौजूदा
यथार्थ की भीड़ में कन्धे रगड़ती ही चलती हैं; दूसरी वे कविताएँ, जो हमें अनुभवों की अधिक अमूर्त शक्तियों का अहसास कराती हैं। दोनों के बीच फ़ासले हैं, किन्तु विरोध नहीं—यह आभास उनके काव्य-बोध को एक जटिल संगति देता है और अनुभूतियों के एक ज़्यादा बड़े क्षितिज की पहचान कराती है।
नैरेशन या वर्णन-विवरण की अनेक विधियों को विष्णु खरे ने अपनी कविताओं में कई तरह से इस्तेमाल किया है—इस बात को सही तरीक़े से लक्षित किया जाना चाहिए। एक अनोखा प्रयोग उनकी मिथकीय और ऐतिहासिक कविताओं में देखा जा सकता है। ‘महाभारत’ प्रसंग में रिपोर्ताज शैली का इस्तेमाल कविता, मिथक और मौजूदा यथार्थ को एक दुर्लभ त्रिकोणात्मक तनाव देता है।
—कुँवर नारायण
About Author
विष्णु खरे
जन्म : 9 फ़रवरी, 1940; छिन्दवाड़ा (म.प्र.)।
विष्णु खरे की प्रारम्भिक रचनाएँ ग.मा. मुक्तिबोध द्वारा नागपुर के साप्ताहिक ‘सारथी’ (1956-57) में प्रकाशित। फिर वह ‘वसुधा’, ‘कृति’, ‘कहानी’, ‘नई कविता’, ‘धर्मयुग’ आदि में प्रकाशित हुए। ‘आलोचना’ में 1969-70 में छपी कविता ‘टेबिल’ के बाद से उनकी अपनी कविता और शेष हिन्दी पद्य में कुँवर-केदार-रघुवीर त्रयी के बाद अब तक एक दूरगामी मौलिक परिवर्तन माना जाता है। 1960 में टी.एस. एलिअट की कविताओं का अनुवाद ‘मरु-प्रदेश और अन्य कविताएँ’। क्रिस्टियन कॉलेज इन्दौर में पढ़ते हुए (1961-63) दैनिक ‘इन्दौर समाचार’ तथा फ़िल्म-साप्ताहिक ‘सिनेमा एक्सप्रेस’ में पत्रकारिता। अंग्रेज़ी में मेरिट में एम.ए. के बाद 1963-75 के बीच मध्य प्रदेश और दिल्ली में स्नातकोत्तर और ऑनर्स कक्षाएँ पढ़ाईं। अशोक वाजपेयी द्वारा ‘पहचान’ सीरीज़ (1970) की शुरुआत ‘विष्णु खरे की बीस कविताएँ’ से। 1978 में पहला संग्रह ‘ख़ुद अपनी आँख से’ आया जिसे रघुवीर सहाय ने ‘अद्वितीय’ कहा। 1975-84 के बीच केन्द्रीय साहित्य अकादेमी में प्रकाशन, अकादेमी पुरस्कार तथा साहित्यिक गतिविधियों के प्रभारी उप-सचिव, फिर 1994 तक तत्कालीन शीर्षस्थ दैनिक ‘नवभारत टाइम्स’ के लखनऊ-जयपुर संस्करणों के सम्पादक तथा मुख्य दिल्ली-संस्करण के विचार प्रमुख-सम्पादक। सैकड़ों सम्पादकीय और लेख। अंग्रेज़ी में भी प्रचुर लेखन। अकादेमी तथा ‘नवभारत टाइम्स’ विचारधारागत मतभेदों के कारण छोड़े—तब से ‘स्वतंत्र लेखन।’ चालीस से भी अधिक प्रकाशन जिनमें संकलन ‘पिछला बाक़ी’, ‘सबकी आवाज़ के पर्दे में’, ‘काल और अवधि के दरमियान’, ‘लालटेन जलाना’, ‘कवि ने कहा’, ‘पाठान्तर’, ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ और ‘और अन्य कविताएँ’ शामिल हैं। आलोचना, पत्रकारिता, सिने-लेखन, तथा अंग्रे़ज़ी, जर्मन, मराठी में मुकम्मल अनुवाद, देशी-विदेशी भाषाओं से कविता, गल्प तथा गद्य के अनुवाद, राजेन्द्र माथुर संचयन-सम्पादन। पाब्लो नेरुदा, शमशेर बहादुर सिंह, सुदीप बनर्जी पर सम्पादित विशेषांक, विश्व-कवि गोएठे का कालजयी काव्य-नाटक ‘फ़ाउस्ट’, ‘फ़िनी’, महाकाव्य ‘कलेवाला’, एस्टोनियाई महाकाव्य ‘कलेवीपोएग’, डच उपन्यासकार-द्वय सेस नोटेबोम तथ हरी मूलिश की कृतियाँ अनूदित। निजी रचनाओं के अनुवाद कई राष्ट्रीय और विदेशी भाषाओं में। शीर्ष फ़िल्म-समीक्षक की हैसियत से कान, ला रोशेल तथा रोत्तर्दम के प्रतिष्ठित सिने-समारोहों में आमंत्रित। चालीस से अधिक साहित्यिक-शैक्षणिक विदेश-यात्राएँ। 1986 में पत्रकर की हैसियत से प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शिष्टमंडल में राष्ट्र-संघ, अमेरिका की यात्रा। फ़िनलैंड, एस्तोनिया, हंगरी तथा पोलैंड के राष्ट्रीय सम्मानों सहित अनेक स्वदेशी-विदेशी पुरस्कार। हिन्दी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष भी रहे।
निधन : 19 सितम्बर, 2018
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