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Muktibodh : Ek Vyaktitwa Sahi Ki Talash Main (HB)
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Apni Khabar (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Pandey Bechan Sharma 'Ugra'
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Pandey Bechan Sharma 'Ugra'
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9788126710874
Category Hindi
Category: Hindi
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अपनी ख़बर लेना और अपनी ख़बर देना—जीवनी साहित्य की दो बुनियादी विशेषताएँ हैं। और फिर उग्र जैसे लेखक की ‘अपनी ख़बर’। उनके जैसी बेबाकी, साफ़गोई और जीवन्त भाषा-शैली हिन्दी में आज भी दुर्लभ है। उग्र—पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’—हिन्दी के प्रारम्भिक इतिहास के एक स्तम्भ रहे हैं और यह कृति उनके जीवन के प्रारम्भिक इक्कीस वर्षों के विविधता-भरे क्रिया-व्यापारों का उद्घाटन करती है। हिन्दी के आत्मकथा-साहित्य में ‘अपनी ख़बर’ को मील का पत्थर माना जाता है। अपने निजी जीवनानुभवों, उद्वेगों और घटनाओं को इन पृष्ठों में उग्र ने जिस खुलेपन से चित्रित किया है, उनसे हमारे सामने मानव-स्वभाव की अनेकानेक सच्चाइयाँ उजागर हो उठती हैं। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि मनुष्य का विकास उसकी निजी अच्छाइयों-बुराइयों के बावजूद अपने युग-परिवेश से भी प्रभावित होता है। यही कारण है कि आत्मकथा-साहित्य व्यक्तिगत होकर भी सार्वजनीन और सार्वकालिक महत्त्व रखता है।
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Description
अपनी ख़बर लेना और अपनी ख़बर देना—जीवनी साहित्य की दो बुनियादी विशेषताएँ हैं। और फिर उग्र जैसे लेखक की ‘अपनी ख़बर’। उनके जैसी बेबाकी, साफ़गोई और जीवन्त भाषा-शैली हिन्दी में आज भी दुर्लभ है। उग्र—पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’—हिन्दी के प्रारम्भिक इतिहास के एक स्तम्भ रहे हैं और यह कृति उनके जीवन के प्रारम्भिक इक्कीस वर्षों के विविधता-भरे क्रिया-व्यापारों का उद्घाटन करती है। हिन्दी के आत्मकथा-साहित्य में ‘अपनी ख़बर’ को मील का पत्थर माना जाता है। अपने निजी जीवनानुभवों, उद्वेगों और घटनाओं को इन पृष्ठों में उग्र ने जिस खुलेपन से चित्रित किया है, उनसे हमारे सामने मानव-स्वभाव की अनेकानेक सच्चाइयाँ उजागर हो उठती हैं। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि मनुष्य का विकास उसकी निजी अच्छाइयों-बुराइयों के बावजूद अपने युग-परिवेश से भी प्रभावित होता है। यही कारण है कि आत्मकथा-साहित्य व्यक्तिगत होकर भी सार्वजनीन और सार्वकालिक महत्त्व रखता है।
About Author
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’
जन्म : 1900 ई.; चुनार, ज़िला—मिर्ज़ापुर। 14 वर्ष की आयु तक स्कूल के बजाय गलियों-सड़कों पर। 1915 से पढ़ाई की शुरुआत तो 1920 में जेल जाने से शिक्षावरोध। 1921 में रिहाई।
1921 से 1924 तक दैनिक ‘आज’ (बनारस) में कहानियाँ, कविताएँ, व्यंग्यादि का लेखन। तत्पश्चात् कलकत्ता में ‘मतवाला’ के सम्पादकीय सहयोगी। 1926-27 में पुनः जेल-यात्रा। 1930-38 में बम्बई जाकर फ़िल्म-लेखन। 1939-45 के दौरान मध्य प्रदेश से प्रकाशित ‘स्वराज्य’, ‘वीणा’, ‘विक्रम’ आदि पत्रों में लेखन-सम्पादन। 1947 में मिर्ज़ापुर से ‘मतवाला’ का पुनर्प्रकाशन। लेकिन 1950-52 में पुनः कलकत्ता और फिर 1953 से मृत्युपर्यन्त—23 मार्च, 1967 तक—दिल्ली में।
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें : ‘चाकलेट’, ‘चन्द हसीनों के ख़तूत’, ‘फागुन के दिन चार’, ‘सरकार तुम्हारी आँखों में’, ‘घंटा’, ‘दिल्ली का दलाल’, ‘शराबी’, ‘यह कंचन-सी काया’, ‘पीली इमारत’, ‘चित्र-विचित्र’, ‘कालकोठरी’, ‘कंचनघट’, ‘सनकी अमीर’, ‘जब सारा आलम सोता है’, ‘कला का पुरस्कार’, ‘मुक्ता’, ‘ग़ालिब और उग्र’ तथा ‘अपनी ख़बर’।
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