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Aise Hua Hool

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
R Carstairs
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
R Carstairs
Language:
Hindi
Format:
Hardback

563

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In stock

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1-4 Days

In stock

Book Type

ISBN:
SKU 9789350481646 Categories ,
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Page Extent:
352

ऐसे हुआ हूल—आर.कार्सटेयर्स/शिशिर टुडे रॉबर्ट कार्सटेयर्स, आइसीएस लिखित उपन्यास ‘हाड़माज विलेज’ का प्रकाशन 1935 में हुआ था। वर्तमान झारखंड के संताल परगना प्रमंडल अंतर्गत आमड़ापाड़ा और लिटिपाड़ा प्रखंडों के वास्तविक गाँवों के वास्तविक पात्रों को लेकर रचा गया यह उपन्यास 1855 में हुए ‘हूल’ का आँखों देखा हाल वर्णन करता प्रतीत होता है। उपन्यास में वर्णित गाँव आज भी अस्तित्व में हैं और समुदाय के उन नायकों को अब भी श्रद्धा से याद किया जाता है, जिन्होंने स्वाधीनता के लिए प्राण न्योछावर कर दिए। कार्सटेयर्स 1885 से 1898 तक संताल परगना जिला के डिप्टी कमिश्‍नर के रूप में लगभग 13 वर्षों तक दुमका में पदस्थापित रहे। आर.आर.के. किस्कू रापाज द्वारा रोमन लिपि संताली में अनूदित इस महत्त्वपूर्ण दस्तावेजी उपन्यास का प्रकाशन 1946 में ‘हाड़मावाक् आतो’ नाम से हुआ था। इसी संताली संस्करण का हिंदी अनुवाद है—’ऐसे हुआ हूल’ । वस्तुत: कार्सटेयर्स ने यह उपन्यास लिखा ही इसलिए होगा, ताकि वह अपने कार्य-स्थल की वास्तविक स्थितियों से अपने देशवासियों तथा अंग्रेजी के वैसे भारतीय पाठकों को परिचित करा सके, जो आदिवासियों, विशेषकर संताल आदिवासियों की जीवन-शैली, उनके आचार-व्यवहार, रीति-रिवाज और स्वाधीनता प्रेमी चरित्र के प्रति अनभिज्ञ थे।

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Description

ऐसे हुआ हूल—आर.कार्सटेयर्स/शिशिर टुडे रॉबर्ट कार्सटेयर्स, आइसीएस लिखित उपन्यास ‘हाड़माज विलेज’ का प्रकाशन 1935 में हुआ था। वर्तमान झारखंड के संताल परगना प्रमंडल अंतर्गत आमड़ापाड़ा और लिटिपाड़ा प्रखंडों के वास्तविक गाँवों के वास्तविक पात्रों को लेकर रचा गया यह उपन्यास 1855 में हुए ‘हूल’ का आँखों देखा हाल वर्णन करता प्रतीत होता है। उपन्यास में वर्णित गाँव आज भी अस्तित्व में हैं और समुदाय के उन नायकों को अब भी श्रद्धा से याद किया जाता है, जिन्होंने स्वाधीनता के लिए प्राण न्योछावर कर दिए। कार्सटेयर्स 1885 से 1898 तक संताल परगना जिला के डिप्टी कमिश्‍नर के रूप में लगभग 13 वर्षों तक दुमका में पदस्थापित रहे। आर.आर.के. किस्कू रापाज द्वारा रोमन लिपि संताली में अनूदित इस महत्त्वपूर्ण दस्तावेजी उपन्यास का प्रकाशन 1946 में ‘हाड़मावाक् आतो’ नाम से हुआ था। इसी संताली संस्करण का हिंदी अनुवाद है—’ऐसे हुआ हूल’ । वस्तुत: कार्सटेयर्स ने यह उपन्यास लिखा ही इसलिए होगा, ताकि वह अपने कार्य-स्थल की वास्तविक स्थितियों से अपने देशवासियों तथा अंग्रेजी के वैसे भारतीय पाठकों को परिचित करा सके, जो आदिवासियों, विशेषकर संताल आदिवासियों की जीवन-शैली, उनके आचार-व्यवहार, रीति-रिवाज और स्वाधीनता प्रेमी चरित्र के प्रति अनभिज्ञ थे।

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