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Aapatkal Ke Senani: Narendra Modi
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आपातकाल के उन काले दिनों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। 1975 से 1977 के दौर में हमारे देश ने देखा कि किस तरह से संस्थाओं का विध्वंस किया गया। आइए, हम संकल्प लेते हैं कि भारत की लोकतांत्रिक भावना को मजबूत बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और संविधान में तय किए गए मूल्यों के अनुसार रहेंगे। —नरेंद्र मोदी
25 जून, 2021 का ट्वीट
25जून, 1975 को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के एक काले दिन के रूप में याद किया जाएगा। इसी दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर आपातकाल थोपा गया था। 21 महीने के आपातकाल के स्याहखंड के दौरान इसके विरुद्ध चले संघर्षों ने भारत के लोकतंत्र को और मजबूत बनाने का कार्य किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के युवा कार्यकर्ता के रूप में नरेंद्र मोदी ने इसमें अहम् भूमिका निभाई थी।
यह पुस्तक आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में नरेंद्र मोदी के प्रयासों पर संक्षेप में प्रकाश डालने का एक प्रयास है।
आपातकाल के उन काले दिनों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। 1975 से 1977 के दौर में हमारे देश ने देखा कि किस तरह से संस्थाओं का विध्वंस किया गया। आइए, हम संकल्प लेते हैं कि भारत की लोकतांत्रिक भावना को मजबूत बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और संविधान में तय किए गए मूल्यों के अनुसार रहेंगे। —नरेंद्र मोदी
25 जून, 2021 का ट्वीट
25जून, 1975 को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के एक काले दिन के रूप में याद किया जाएगा। इसी दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर आपातकाल थोपा गया था। 21 महीने के आपातकाल के स्याहखंड के दौरान इसके विरुद्ध चले संघर्षों ने भारत के लोकतंत्र को और मजबूत बनाने का कार्य किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के युवा कार्यकर्ता के रूप में नरेंद्र मोदी ने इसमें अहम् भूमिका निभाई थी।
यह पुस्तक आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में नरेंद्र मोदी के प्रयासों पर संक्षेप में प्रकाश डालने का एक प्रयास है।
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