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Lokpriya Shayar Aur Unki Shayari - Firaq Gorakhpuri
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लेकिन I Lekin (Hindi)
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
जॉन एलिया
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
जॉन एलिया
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹299 ₹239
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In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9789390678587
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
222
“सबसे पुरअम्न वाक़या ये है
आदमी आदमी को भूल गयायानी तुम वो हो? वाक़ई? हद है!मैं तो सचमुच सभी को भूल गया”ये जो “सभी को भूल गया” है, इसमें जॉन ख़ुद भी शामिल हैं। उम्मीद है कि आपको ‘लेकिन’ पसंद आएगी। इस पुस्तक में जॉन एलिया नामक आदमी बहुत कम है, हाँ जॉन नामक औलिया शायर भरपूर नुमायाँ है! यूँ मानिए जैसे इस संग्रह ‘लेकिन’ के बारे में जॉन ख़ुद ये कह रहे हों-“अब तो मुझको पसंद आ जाओमैंने ख़ुद में बहुत कमी कर ली”-डॉ. कुमार विश्वास-भूमिका से
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Description
“सबसे पुरअम्न वाक़या ये है
आदमी आदमी को भूल गयायानी तुम वो हो? वाक़ई? हद है!मैं तो सचमुच सभी को भूल गया”ये जो “सभी को भूल गया” है, इसमें जॉन ख़ुद भी शामिल हैं। उम्मीद है कि आपको ‘लेकिन’ पसंद आएगी। इस पुस्तक में जॉन एलिया नामक आदमी बहुत कम है, हाँ जॉन नामक औलिया शायर भरपूर नुमायाँ है! यूँ मानिए जैसे इस संग्रह ‘लेकिन’ के बारे में जॉन ख़ुद ये कह रहे हों-“अब तो मुझको पसंद आ जाओमैंने ख़ुद में बहुत कमी कर ली”-डॉ. कुमार विश्वास-भूमिका से
About Author
जॉन एलिया
पाकिस्तान के मशहूर कवि, शायर और दार्शनिक ।जन्म : 14 दिसम्बर 1931, अमरोहा, उत्तर प्रदेश ।पाकिस्तान के स्वतन्त्र राष्ट्र बन जाने के बाद जॉन एलिया 1957 में स्थायी रूप से कराची में बस गये । रजब के तेरहवें दिन (जो कि इमाम अली का भी जन्मदिन है) जन्म लेने के कारण वे ख़ुद को पैग़म्बर मुहम्मद की वंश-परम्परा से सम्बद्ध सैयदों का वंशज कहा करते थे। उन्होंने इस्लामी न्यायशास्त्र के 'देवबन्द स्कूल' में अध्ययन किया था। इस एक तथ्य के अलावा उन्होंने कभी भी अपने आप को धर्म या सम्प्रदाय से नहीं जोड़ा। हालाँकि शुरुआती नापसन्दगी के बावजूद भी वे मार्क्सवाद के राजनीतिक दर्शन से गहरे जुड़े थे लेकिन उन्होंने बराबर अपने आपको एक प्रवासी और अराजक ही समझा।जॉन एलिया को उर्दू के साथ-साथ अरबी, अंग्रेज़ी, फ़ारसी, संस्कृत और हिब्रू भाषा की अच्छी जानकारी थी। उनके बारे में शायर पीरजादा कासिम का कहना है, "भाषा को लेकर जॉन बहुत ख़ास रुख अख्तियार करते थे। उनकी भाषा की जड़ें क्लासिकल परम्परा में हैं लेकिन वे अपनी कविता और शायरी के लिए हमेशा नये विषयों को अपनाने से भी नहीं चूके। जॉन ताउम्र एक आदर्श की खोज में लगे रहे लेकिन दुर्भाग्यवश उसे पा न सके जिसके कारण उनके भीतर एक अजीब असन्तोष और खिन्नता घर कर गयी। उन्हें लगता रहा कि उन्होंने अपना हुनर और प्रतिभा यूँ ही जाया कर दिया है।"जॉन एलिया की कविता और शायरी की प्रमुख कृतियों में शुमार हैं- 'शायद' (1991), 'यानी' (2003), 'गुमान' (2006) और 'गोया' (2008)। उन्होंने अरबी और फ़ारसी भाषा से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अनुवाद भी किये हैं। यह उनके अनुवाद की मौलिकता ही कही जायेगी कि अरबी-फ़ारसी की मूल कृतियों का अनुवाद करते हुए उन्होंने उर्दू भाषा के कई नये शब्दों का आविष्कार किया है। उनकी प्रमुख अनूदित कृतियाँ हैं : 'मसीह-ए-बगदाद हल्लाज', 'ज्योमेट्रिया','तवासिन', 'इसागोजी', 'रहीश-ओ-कुशैश' और 'रसल अख़्वान-उस-सफ़ा' । 'फरनूद' (2012) जॉन एलिया के विचारप्रधान लेखों का संकलन है जिसमें 1958 और 2002 के बीच लिखे गये निबन्ध और लेख शामिल हैं। इन लेखों में जॉन ने राजनीति, संस्कृति, इतिहास, भाषाशास्त्र जैसे विविध विषयों पर अपने विचार व्यक्त किये हैं। 'फरनूद' में अदबी जर्नल 'इंशा' (जिसका सम्पादन वे खुद करते थे), 'आलमी डाइजेस्ट' और ज़िन्दगी के आख़िरी दौर में 'सस्पेंस डाइजेस्ट' के लिए लिखे गये निबन्धों का संकलन किया गया है।निधन : 8 नवम्बर 2002
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