MANUSHYA KA AVKASH
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मनुष्य का अवकाश’ मुख्यतः श्रम, धर्म और प्रतिरोध की आंतरिक एकसूत्रता से निर्मित है। इन निबंधों के अतिरिक्त पुस्तक में एक कहानी भी है। यह कहानी विषय के आंतरिक साम्य के कारण यहाँ है। वास्तव में श्रम और प्रतिरोध ही वे मानवीय संदर्भ हैं, जिनसे मानव जाति निरंतर विकसित होते हुए, विकास की विभिन्न मंजिलों को पार करते हुए, यहाँ तक पहुँची है। ये निबंध इन प्रसंगों में मनुष्यता की निरंतरता में, उसके इन सकारात्मक पक्षों को तो प्रस्तावित करते ही हैं, साथ ही वे आज मनुष्य की प्रतिगामी शक्तियों के संदर्भ भी उद्घाटित करते हैं। इस संदर्भ में भी वे प्रतिरोध और श्रम की भूमिका प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में रेखांकित करते चलते हैं। ‘मनुष्य का अवकाश’ कवि कुमार अंबुज का वैचारिक संसार है। कविताओं का वैचारिक संसार प्रच्छन्न होता है, पर कवि जब खुद वैचारिक साहित्य रचता है, तो पाठक उसमें सिर्फ वैचारिक सामग्री नहीं पाते, अपितु वह उसके रचनात्मक संसार को भी प्रोद्भासित करता है। मनुष्य का अवकाश’ कुमार अंबुज के वैचारिक मानस के साथ उनके कवि व्यक्तित्व की समझ का भी एक कोण उभारता है। इन निबंधों में विचार की सहधर्मी है उनकी काव्यात्मक भाषा। अगर गद्य कवियों की कसौटी है, तो उस गद्य को निखारने में कवियों की काव्यात्मक भाषा की मुख्य भूमिका होती है। कुमार अंबुज का गद्य सार्थक है तथा इसकी सफलता का आधार भाषा की काव्यात्मकता भी है।
मनुष्य का अवकाश’ मुख्यतः श्रम, धर्म और प्रतिरोध की आंतरिक एकसूत्रता से निर्मित है। इन निबंधों के अतिरिक्त पुस्तक में एक कहानी भी है। यह कहानी विषय के आंतरिक साम्य के कारण यहाँ है। वास्तव में श्रम और प्रतिरोध ही वे मानवीय संदर्भ हैं, जिनसे मानव जाति निरंतर विकसित होते हुए, विकास की विभिन्न मंजिलों को पार करते हुए, यहाँ तक पहुँची है। ये निबंध इन प्रसंगों में मनुष्यता की निरंतरता में, उसके इन सकारात्मक पक्षों को तो प्रस्तावित करते ही हैं, साथ ही वे आज मनुष्य की प्रतिगामी शक्तियों के संदर्भ भी उद्घाटित करते हैं। इस संदर्भ में भी वे प्रतिरोध और श्रम की भूमिका प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में रेखांकित करते चलते हैं। ‘मनुष्य का अवकाश’ कवि कुमार अंबुज का वैचारिक संसार है। कविताओं का वैचारिक संसार प्रच्छन्न होता है, पर कवि जब खुद वैचारिक साहित्य रचता है, तो पाठक उसमें सिर्फ वैचारिक सामग्री नहीं पाते, अपितु वह उसके रचनात्मक संसार को भी प्रोद्भासित करता है। मनुष्य का अवकाश’ कुमार अंबुज के वैचारिक मानस के साथ उनके कवि व्यक्तित्व की समझ का भी एक कोण उभारता है। इन निबंधों में विचार की सहधर्मी है उनकी काव्यात्मक भाषा। अगर गद्य कवियों की कसौटी है, तो उस गद्य को निखारने में कवियों की काव्यात्मक भाषा की मुख्य भूमिका होती है। कुमार अंबुज का गद्य सार्थक है तथा इसकी सफलता का आधार भाषा की काव्यात्मकता भी है।
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