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Advaita Vedanta Mein Gyan Evam Bhakti: Darshnik Vimarsha [Knowledge and Devotion in Advaita Vedanta: Philosophical Discourse]
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भारतीय दर्शन में बदान्त दर्शन के अद्वैतवाद सिद्धान्त का स्थान अत्यन्त महत्त्वपू है। वस्तुतः अद्वैतवाद समातन दर्शन वेदान्त के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक है। औपनिषद् अद्वैतवाद, शक्त्यहुँवाद, शैवागम के अद्वैतवाद, बौद्ध अद्वैतवाद, भाहिरि-प्रतिपादित शब्दाद्वैतवाद, गौड़पादीय औत्वाद, मायावादपुष्ट शंकर अदतवाद, रामानुज के विशिष्टाद्वैतवाद, वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वैतवाय एवं निम्बाकोचार्य के द्वैताद्वैतवाद आदि सभी सिद्धान्तों ने अद्वैत शब्द की न केवल अपने मतानुसार विवेचना की, अपितु इन सभी आचार्यों ने अपने मत की तार्किक सम्पुष्टता के साथ अद्वैतवादी विचारधारा के दार्शनिक मत का प्रतिपादन भी किया है। लेकिन इन समस्त अद्वैतवादी सिद्धान्तों में शंकर अद्वैतवाद के अन्तर्गत अद्वैतवाद का जो पूर्णतः सैद्धान्तिक, सुव्यस्थित एवं सामंजस्यपूर्ण प्रतिपादत मिलता है, उसका उपर्युक्त अन्य सिद्धान्तों में कहीं अल्प और कहीं अत्यल्प रूप ही उपलब्ध होता है। इसीलिए साधारणतया वेदान्त दर्शन की चर्चा होती है तो इसका आशय शांकर दर्शन के अद्वैत दर्शन से किया जाता है।
भारतीय दर्शन में बदान्त दर्शन के अद्वैतवाद सिद्धान्त का स्थान अत्यन्त महत्त्वपू है। वस्तुतः अद्वैतवाद समातन दर्शन वेदान्त के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक है। औपनिषद् अद्वैतवाद, शक्त्यहुँवाद, शैवागम के अद्वैतवाद, बौद्ध अद्वैतवाद, भाहिरि-प्रतिपादित शब्दाद्वैतवाद, गौड़पादीय औत्वाद, मायावादपुष्ट शंकर अदतवाद, रामानुज के विशिष्टाद्वैतवाद, वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वैतवाय एवं निम्बाकोचार्य के द्वैताद्वैतवाद आदि सभी सिद्धान्तों ने अद्वैत शब्द की न केवल अपने मतानुसार विवेचना की, अपितु इन सभी आचार्यों ने अपने मत की तार्किक सम्पुष्टता के साथ अद्वैतवादी विचारधारा के दार्शनिक मत का प्रतिपादन भी किया है। लेकिन इन समस्त अद्वैतवादी सिद्धान्तों में शंकर अद्वैतवाद के अन्तर्गत अद्वैतवाद का जो पूर्णतः सैद्धान्तिक, सुव्यस्थित एवं सामंजस्यपूर्ण प्रतिपादत मिलता है, उसका उपर्युक्त अन्य सिद्धान्तों में कहीं अल्प और कहीं अत्यल्प रूप ही उपलब्ध होता है। इसीलिए साधारणतया वेदान्त दर्शन की चर्चा होती है तो इसका आशय शांकर दर्शन के अद्वैत दर्शन से किया जाता है।
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