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Mera Desh Mera Jeevan
Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
| Author:
Lal Krishna Advani
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Author:
Lal Krishna Advani
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9788173156977
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
794
मेरा देश मेरा जीवन अहर्निश राष्ट्र सेवा को समर्पित शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा है। वर्तमान भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में आडवाणी अपनी प्रतिबद्धता; प्रखर चिंतन; स्पष्ट विचार और दूरगामी सोच के लिए जाने जाते हैं। वे ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ को जीवन का मूलमंत्र मानकर पिछले छह दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं।
1947 में सांप्रदायिक दुर्भाव से उपजे द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के आधार पर हुए भारत विभाजन के समय आडवाणी को अपने प्रियतम स्थान सिंध (अब पाकिस्तान का हिस्सा) को हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा। इस त्रासदी की पीड़ा और खुद भोगे हुए कष्टों को अपनी आत्मकथा में आडवाणी ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में प्रस्तुत किया है। राष्ट्रसेवा की अपनी लंबी और गौरवपूर्ण यात्रा में आडवाणी ने स्वतंत्र भारत में घट रही प्राय: सभी राजनीतिक एवं सामाजिक घटनाओं पर सूक्ष्म दृष्टि रखी है; और इनमें सक्रिय भागीदारी की है। इस पुस्तक में आडवाणी ने इन्हीं घटनाओं और राष्ट्र-समाज के विभिन्न सरोकारों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है।
अपने अग्रज एवं अभिन्न सहयोगी श्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कंधे-से-कंधा मिलाते हुए; सरकार बनाने के कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व को तोड़ते हुए; भारतीय जनता पार्टी को सशक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने में आडवाणी ने विशेष भूमिका निभाई; जिसका वर्णन पुस्तक में विस्तार से किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक आडवाणी द्वारा बड़े ही सशक्त व भावपूर्ण शब्दों में आपातकाल के समय लोकतंत्र के लिए किए गए उनके संघर्ष और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु की गई ‘राम रथयात्रा’—जो स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा जन-आंदोलन थी और जिसने पंथनिरपेक्षता के सही अर्थ और मायनों को लेकर एक राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ी—का भी बड़ा ही सटीक विवेचन करती है। साथ ही वर्ष 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में गृहमंत्री; एवं फिर; उपप्रधानमंत्री पद पर आडवाणी द्वारा अपने दायित्व के सफल निर्वहन पर भी प्रकाश डालती है।
इस पुस्तक ने आडवाणी की राजनीतिक सूझ-बूझ; विचारों की स्पष्टता और अद्भुत जिजीविषा को और संपुष्ट कर दिया है; जिसे उनके प्रशंसक एवं आलोचक—सभी मानते हैं।
किसी भी राजनीतिज्ञ के लिए सक्रिय राजनीति में अपने उत्तरदायित्वों को निभाते हुए अपनी आत्मकथा लिखना एक अदम्य साहस एवं जोखिम भरा कार्य है; जिसे आडवाणी ने न केवल कर दिखाया है; बल्कि उसके साथ पूरा न्याय भी किया है।
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Description
मेरा देश मेरा जीवन अहर्निश राष्ट्र सेवा को समर्पित शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा है। वर्तमान भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में आडवाणी अपनी प्रतिबद्धता; प्रखर चिंतन; स्पष्ट विचार और दूरगामी सोच के लिए जाने जाते हैं। वे ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ को जीवन का मूलमंत्र मानकर पिछले छह दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं।
1947 में सांप्रदायिक दुर्भाव से उपजे द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के आधार पर हुए भारत विभाजन के समय आडवाणी को अपने प्रियतम स्थान सिंध (अब पाकिस्तान का हिस्सा) को हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा। इस त्रासदी की पीड़ा और खुद भोगे हुए कष्टों को अपनी आत्मकथा में आडवाणी ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में प्रस्तुत किया है। राष्ट्रसेवा की अपनी लंबी और गौरवपूर्ण यात्रा में आडवाणी ने स्वतंत्र भारत में घट रही प्राय: सभी राजनीतिक एवं सामाजिक घटनाओं पर सूक्ष्म दृष्टि रखी है; और इनमें सक्रिय भागीदारी की है। इस पुस्तक में आडवाणी ने इन्हीं घटनाओं और राष्ट्र-समाज के विभिन्न सरोकारों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है।
अपने अग्रज एवं अभिन्न सहयोगी श्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कंधे-से-कंधा मिलाते हुए; सरकार बनाने के कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व को तोड़ते हुए; भारतीय जनता पार्टी को सशक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने में आडवाणी ने विशेष भूमिका निभाई; जिसका वर्णन पुस्तक में विस्तार से किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक आडवाणी द्वारा बड़े ही सशक्त व भावपूर्ण शब्दों में आपातकाल के समय लोकतंत्र के लिए किए गए उनके संघर्ष और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु की गई ‘राम रथयात्रा’—जो स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा जन-आंदोलन थी और जिसने पंथनिरपेक्षता के सही अर्थ और मायनों को लेकर एक राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ी—का भी बड़ा ही सटीक विवेचन करती है। साथ ही वर्ष 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में गृहमंत्री; एवं फिर; उपप्रधानमंत्री पद पर आडवाणी द्वारा अपने दायित्व के सफल निर्वहन पर भी प्रकाश डालती है।
इस पुस्तक ने आडवाणी की राजनीतिक सूझ-बूझ; विचारों की स्पष्टता और अद्भुत जिजीविषा को और संपुष्ट कर दिया है; जिसे उनके प्रशंसक एवं आलोचक—सभी मानते हैं।
किसी भी राजनीतिज्ञ के लिए सक्रिय राजनीति में अपने उत्तरदायित्वों को निभाते हुए अपनी आत्मकथा लिखना एक अदम्य साहस एवं जोखिम भरा कार्य है; जिसे आडवाणी ने न केवल कर दिखाया है; बल्कि उसके साथ पूरा न्याय भी किया है।
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