Media Aur Hamara Samay
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मीडिया और हमारा समय –
मीडिया के आकार लेने से अब तक की यात्रा में उसने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। अगर मीडिया की आज़ादी के बाद की यात्रा देखें तो उसे तीन हिस्सों में बाँट कर हम देख सकते हैं। एक आज़ादी के आन्दोलन के बोझ और उसे प्राप्त करने के बाद उपजे सपनों से दबी पत्रकारिता और दूसरी आज़ादी के मोहभंग के बाद की। और तीसरी मिशन के अन्त और पूँजी के हस्तक्षेप की पत्रकारिता। चर्चित युवा मीडिया विश्लेषक प्रांजल धर की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ तीसरी तरह की आधुनिक पत्रकारिता की प्रवृत्तियों और उसके विचलन पर केन्द्रित एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में मीडिया में दरकते मूल्यों, नयी तकनीक, ऑनलाइन पत्रकारिता, टीवी, रंगमंच, एफ़एम रेडियो, प्रेम और बेवफ़ाई से सम्बन्धित कई लेख संकलित हैं। आधुनिक पत्रकारिता को समझने के लिए यह पुस्तक एक बेहतरीन हथियार है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक के कुछ निबन्ध मीडिया में पूँजी के हस्तक्षेप के नफ़े-नुक़सान को बताते हैं और मीडिया की आज़ादी के सवाल को भी सामने लाने की कोशिश करते हैं। मौजूदा समय में मीडिया की आज़ादी को लेकर एक ख़ास बहस चल रही है कि मीडिया जनपक्षीय हो या बाज़ारोन्मुखी। बाज़ार के दबाव में मीडिया अपने सरोकारों को लगभग त्याग चुका है। गम्भीर सवालों के लिए उसके पास जगह नहीं हैं। जीभ और जाँघ भूगोल में उसे बाज़ार ने फँसा लिया है। इन सवालों को भी इस पुस्तक के कई निबन्ध पूरी शिद्दत से उठाते हैं। बाज़ार से नियन्त्रित होने वाले मीडिया को इसीलिए अब नियम और क़ानून में बाँधने के लिए भी आवाज़ें उठने लगी हैं। इस सन्दर्भ में ‘मीडिया : नियमन की लकीरें’ और ‘मीडिया के नियमन की जटिलताएँ’ लेख काफ़ी महत्त्वपूर्ण सवालों को उठाते हैं। उत्तर आधुनिक मीडिया को जानने और समझने के लिए प्रांजल की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ एक ज़रूरी किताब है।
मीडिया और हमारा समय –
मीडिया के आकार लेने से अब तक की यात्रा में उसने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। अगर मीडिया की आज़ादी के बाद की यात्रा देखें तो उसे तीन हिस्सों में बाँट कर हम देख सकते हैं। एक आज़ादी के आन्दोलन के बोझ और उसे प्राप्त करने के बाद उपजे सपनों से दबी पत्रकारिता और दूसरी आज़ादी के मोहभंग के बाद की। और तीसरी मिशन के अन्त और पूँजी के हस्तक्षेप की पत्रकारिता। चर्चित युवा मीडिया विश्लेषक प्रांजल धर की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ तीसरी तरह की आधुनिक पत्रकारिता की प्रवृत्तियों और उसके विचलन पर केन्द्रित एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में मीडिया में दरकते मूल्यों, नयी तकनीक, ऑनलाइन पत्रकारिता, टीवी, रंगमंच, एफ़एम रेडियो, प्रेम और बेवफ़ाई से सम्बन्धित कई लेख संकलित हैं। आधुनिक पत्रकारिता को समझने के लिए यह पुस्तक एक बेहतरीन हथियार है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक के कुछ निबन्ध मीडिया में पूँजी के हस्तक्षेप के नफ़े-नुक़सान को बताते हैं और मीडिया की आज़ादी के सवाल को भी सामने लाने की कोशिश करते हैं। मौजूदा समय में मीडिया की आज़ादी को लेकर एक ख़ास बहस चल रही है कि मीडिया जनपक्षीय हो या बाज़ारोन्मुखी। बाज़ार के दबाव में मीडिया अपने सरोकारों को लगभग त्याग चुका है। गम्भीर सवालों के लिए उसके पास जगह नहीं हैं। जीभ और जाँघ भूगोल में उसे बाज़ार ने फँसा लिया है। इन सवालों को भी इस पुस्तक के कई निबन्ध पूरी शिद्दत से उठाते हैं। बाज़ार से नियन्त्रित होने वाले मीडिया को इसीलिए अब नियम और क़ानून में बाँधने के लिए भी आवाज़ें उठने लगी हैं। इस सन्दर्भ में ‘मीडिया : नियमन की लकीरें’ और ‘मीडिया के नियमन की जटिलताएँ’ लेख काफ़ी महत्त्वपूर्ण सवालों को उठाते हैं। उत्तर आधुनिक मीडिया को जानने और समझने के लिए प्रांजल की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ एक ज़रूरी किताब है।
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