Main To Thahra Hamaal
Publisher:
| Author:
| Language:
| Format:
Publisher:
Author:
Language:
Format:
₹85 ₹84
Save: 1%
In stock
Ships within:
In stock
ISBN:
Page Extent:
मैं तो ठहरा हमाल –
मराठी में प्रतिष्ठित और बहुचर्चित इस औपन्यासिक आत्मकथा का अपना एक अलग रंग और प्रभाव है। दरअसल, ‘मैं तो ठहरा हमाल’ सही अर्थों में वाचिक परम्परा की गद्य-कृति है। इसमें लेखक—या कहें वाचक—ने अपने अनगढ़ जीवन के सुख-दुःख और बेबसी-बेचारगी के साथ ही समकालीन समय और ग्रामीण समाज के संघर्ष, भोग और बेगानेपन को भी सीधे-सादे तरीक़े से कहने-बताने की कोशिश की है। जीवन जीने के ढंग, उसकी आपाधापी और छटपटाहट, सम्बन्धों को लेकर असमंजस, उल्लास और उत्कण्ठाएँ तथा भयावह नंगी सच्चाइयाँ—इन सब का ताप इस कृति में है। इसमें हर चरित्र, घटना और परिवेश गति में रूपाकार लेती झाँकियों की तरह है—शुष्क, तरल, निर्मल और पारदर्शी! ‘मैं तो ठहरा हमाल’ में एक ऐसे भावलोक का सृजन है, जहाँ स्वरों के हर चढ़ाव-उतार में ज़िन्दगी के छन्द की अनुगूँज है ….
मैं तो ठहरा हमाल –
मराठी में प्रतिष्ठित और बहुचर्चित इस औपन्यासिक आत्मकथा का अपना एक अलग रंग और प्रभाव है। दरअसल, ‘मैं तो ठहरा हमाल’ सही अर्थों में वाचिक परम्परा की गद्य-कृति है। इसमें लेखक—या कहें वाचक—ने अपने अनगढ़ जीवन के सुख-दुःख और बेबसी-बेचारगी के साथ ही समकालीन समय और ग्रामीण समाज के संघर्ष, भोग और बेगानेपन को भी सीधे-सादे तरीक़े से कहने-बताने की कोशिश की है। जीवन जीने के ढंग, उसकी आपाधापी और छटपटाहट, सम्बन्धों को लेकर असमंजस, उल्लास और उत्कण्ठाएँ तथा भयावह नंगी सच्चाइयाँ—इन सब का ताप इस कृति में है। इसमें हर चरित्र, घटना और परिवेश गति में रूपाकार लेती झाँकियों की तरह है—शुष्क, तरल, निर्मल और पारदर्शी! ‘मैं तो ठहरा हमाल’ में एक ऐसे भावलोक का सृजन है, जहाँ स्वरों के हर चढ़ाव-उतार में ज़िन्दगी के छन्द की अनुगूँज है ….
About Author
Reviews
There are no reviews yet.
Reviews
There are no reviews yet.