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Dalit Sahitya Ka Saundarya Shastra
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
डॉ. शरण कुमार लिम्बाले, अनुवाद - रमणिका गुप्ता
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
डॉ. शरण कुमार लिम्बाले, अनुवाद - रमणिका गुप्ता
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
SKU
9789350727751
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
178
दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र –
“एक अनाम बालक पूछता है, “मैं कौन हूँ? मेरा दोष क्या है?” वही दलित चेतना में उसके सौन्दर्य-शास्त्र पर विवेचना करते हुए सत्य, शिवम्, सुन्दरम् को नये ढंग से परिभाषित करता है। क्योंकि उसने उसे अपनी दृष्टि से देखा और यह भी उसे सवर्णों के सत्य, शिवम्, सुन्दरम् से बिल्कुल भिन्न और विपरीत पाया है! ‘अक्करमाशी’ के उस बालक शरणकुमार लिंबाले से लेकर ‘दलित साहित्य’ के लेखक की यात्रा, मराठी दलित चेतना की ऊर्ध्वमुखी यात्रा रही है। यह पुस्तक मराठी दलित साहित्य का दस्तावेज़ी इतिहास तो है ही, साथ ही यह उसके अन्तर्द्वन्द्वों, विभिन्न साहित्यिक धाराओं से उसके सम्बन्ध, विभिन्न दार्शनिक, वैचारिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक प्रणालियों से उसका तुलनात्मक अध्ययन भी है। यह पुस्तक दलित साहित्य की परिभाषा, व्याख्या, परिप्रेक्ष्य और दिशा की भी पड़ताल करने का एक यथार्थपरक अन्वेषण है। डॉ. लिंबाले ने बिना पक्षपात किये सभी के यानी दलित विरोधी व दलित पक्षधर दोनों के मन्तव्य उद्धृत किये हैं जिससे स्वतः ही पाठक तार्किक निष्कर्ष पर पहुँच जाता है जो डॉ. लिंबाले के इच्छित निष्कर्ष से मेल खाता है। कई जगह वे प्रश्नों के ज़रिये ही पाठक के मन में अपेक्षित उत्तर उतार देते हैं । यह डॉ. लिंबाले की सम्प्रेषणीयता की सफलता है। -रमणिका गुप्ता “
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Description
दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र –
“एक अनाम बालक पूछता है, “मैं कौन हूँ? मेरा दोष क्या है?” वही दलित चेतना में उसके सौन्दर्य-शास्त्र पर विवेचना करते हुए सत्य, शिवम्, सुन्दरम् को नये ढंग से परिभाषित करता है। क्योंकि उसने उसे अपनी दृष्टि से देखा और यह भी उसे सवर्णों के सत्य, शिवम्, सुन्दरम् से बिल्कुल भिन्न और विपरीत पाया है! ‘अक्करमाशी’ के उस बालक शरणकुमार लिंबाले से लेकर ‘दलित साहित्य’ के लेखक की यात्रा, मराठी दलित चेतना की ऊर्ध्वमुखी यात्रा रही है। यह पुस्तक मराठी दलित साहित्य का दस्तावेज़ी इतिहास तो है ही, साथ ही यह उसके अन्तर्द्वन्द्वों, विभिन्न साहित्यिक धाराओं से उसके सम्बन्ध, विभिन्न दार्शनिक, वैचारिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक प्रणालियों से उसका तुलनात्मक अध्ययन भी है। यह पुस्तक दलित साहित्य की परिभाषा, व्याख्या, परिप्रेक्ष्य और दिशा की भी पड़ताल करने का एक यथार्थपरक अन्वेषण है। डॉ. लिंबाले ने बिना पक्षपात किये सभी के यानी दलित विरोधी व दलित पक्षधर दोनों के मन्तव्य उद्धृत किये हैं जिससे स्वतः ही पाठक तार्किक निष्कर्ष पर पहुँच जाता है जो डॉ. लिंबाले के इच्छित निष्कर्ष से मेल खाता है। कई जगह वे प्रश्नों के ज़रिये ही पाठक के मन में अपेक्षित उत्तर उतार देते हैं । यह डॉ. लिंबाले की सम्प्रेषणीयता की सफलता है। -रमणिका गुप्ता “
About Author
शरणकुमार लिंबाले -
1 जून, 1956 को जन्मे डॉ. शरणकुमार लिंबाले ने एम.ए., पीएच.डी. की शिक्षा प्राप्त की है। ‘अक्करमाशी’ (आत्मकथा) , ’छुआछूत’, ’देवता आदमी’, ’दलित ब्राह्मण’ (कहानी संग्रह), ‘दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र’ (समीक्षा) , ‘नरवानर’, ‘हिंदू’, ‘बहुजन’ (उपन्यास) आपकी हिन्दी में प्रकाशित कृतियाँ हैं। आप नासिक (महाराष्ट्र) के यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी कल्याण विभाग के प्रोफेसर और डायरेक्टर हैं।
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