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Ghazal Jharna
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹295 ₹236
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ISBN:
SKU
9789387330863
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
208
“इस किताब में ऐसे ढंग से क़ाफ़िये और रदीफ़ पिरोए गये हैं उसकी तारीफ़ के लिए लफ़्ज़ कहाँ से जुटाए जायें?
दरअस्ल मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब जैसे क़द्दावर शायर के नाम से हिन्दी के पाठक अधिक परिचित नहीं हैं। उर्दू भाषा में 90 से अधिक विभिन्न विषयों पर लिखी किताबों के इस लेखक की सिर्फ़ एक किताब (मुज़फ़्फ़र की ग़ज़लें) देवनागरी में उपलब्ध हैं। मात्र 14 साल की उम्र से अब तक लगातार ग़ज़लें कहने वाले मुज़फ़्फ़र साहब ने अब तक 1700 से अधिक ग़ज़लें कह डाली हैं। मुज़फ़्फ़र हनफ़ी की शायरी (ग़ज़ल) की पहली किताब ‘पानी की ज़बान’ जो 1967 में प्रकाशित हुई थी, हिन्दुस्तान में आधुनिक शायरी की पहली किताब मानी जाती है।
मुज़फ़्फ़र साहब की शायरी फ़लक से गुनगुनाती हुई गिरती बरसात की बूँदों की याद दिलाती है जिसमें लगातार भीगते रहने का मन करता है। भाषा की ऐसी मिठास, ऐसी रवानी और कहीं मिलना दुर्लभ है ये खासियत उनकी एक आध नहीं, सभी ग़ज़लों में दिखाई देती है। एक बात पक्की है कि मुज़फ़्फ़र साहब की बुलन्द शख़्सियत और बेजोड़ शायरी पर ऐसी कई पोस्ट्स भी अगर लिखें तो कामयाबी हासिल नहीं होगी, मैंने तो सिर्फ़ टिप ऑफ़ दि आइस-बर्ग ही दिखाने की कोशिश की है।
इस किताब के पन्नों को पलटते हुए आप जिस अनुभव से गुज़रेंगे उसे लफ़्ज़ों में बयान नहीं किया जा सकता।”
-नीरज गोस्वामी
܀܀܀
“हर शायर ग़ज़ल की तलाश करता है लेकिन हनफ़ी साहब इकलौते शायर हैं जिनकी तलाश ग़ज़ल खुद करती है। आज के दौर में मंच के बड़े-बड़े नाम-किसकी ग़ज़लों की नकल करते हैं, सब जानते हैं- ग़ज़लों के नक़्क़ाल बहुत हैं और मुज़फ़्फ़र एक । हनफ़ी साहब से कई शायरों को बहुत रश्क है और उन पर ऐसे शायरों ने ज़बर्दस्त तंज़बारी की है लेकिन मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब को न कोई पा सका है और न पा सकेगा।”
-मयंक अवस्थी
܀܀܀
“मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब ग़ज़ल के दरबार के वो अमीर हैं कि उनसे दरबार ही धन्य नहीं है बल्कि उनकी किसी भी महफ़िल में मौजूदगी उस महफ़िल के सारे लोगों को बाशऊर बना देती है। मैंने उनकी सदारत में मुशायरे पढ़े हैं। बड़े-बड़े वाचाल शायर हाथ बाँधे उनसे इजाज़त लेते देखे हैं।”
– तुफैल चतुर्वेदी
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Description
“इस किताब में ऐसे ढंग से क़ाफ़िये और रदीफ़ पिरोए गये हैं उसकी तारीफ़ के लिए लफ़्ज़ कहाँ से जुटाए जायें?
दरअस्ल मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब जैसे क़द्दावर शायर के नाम से हिन्दी के पाठक अधिक परिचित नहीं हैं। उर्दू भाषा में 90 से अधिक विभिन्न विषयों पर लिखी किताबों के इस लेखक की सिर्फ़ एक किताब (मुज़फ़्फ़र की ग़ज़लें) देवनागरी में उपलब्ध हैं। मात्र 14 साल की उम्र से अब तक लगातार ग़ज़लें कहने वाले मुज़फ़्फ़र साहब ने अब तक 1700 से अधिक ग़ज़लें कह डाली हैं। मुज़फ़्फ़र हनफ़ी की शायरी (ग़ज़ल) की पहली किताब ‘पानी की ज़बान’ जो 1967 में प्रकाशित हुई थी, हिन्दुस्तान में आधुनिक शायरी की पहली किताब मानी जाती है।
मुज़फ़्फ़र साहब की शायरी फ़लक से गुनगुनाती हुई गिरती बरसात की बूँदों की याद दिलाती है जिसमें लगातार भीगते रहने का मन करता है। भाषा की ऐसी मिठास, ऐसी रवानी और कहीं मिलना दुर्लभ है ये खासियत उनकी एक आध नहीं, सभी ग़ज़लों में दिखाई देती है। एक बात पक्की है कि मुज़फ़्फ़र साहब की बुलन्द शख़्सियत और बेजोड़ शायरी पर ऐसी कई पोस्ट्स भी अगर लिखें तो कामयाबी हासिल नहीं होगी, मैंने तो सिर्फ़ टिप ऑफ़ दि आइस-बर्ग ही दिखाने की कोशिश की है।
इस किताब के पन्नों को पलटते हुए आप जिस अनुभव से गुज़रेंगे उसे लफ़्ज़ों में बयान नहीं किया जा सकता।”
-नीरज गोस्वामी
܀܀܀
“हर शायर ग़ज़ल की तलाश करता है लेकिन हनफ़ी साहब इकलौते शायर हैं जिनकी तलाश ग़ज़ल खुद करती है। आज के दौर में मंच के बड़े-बड़े नाम-किसकी ग़ज़लों की नकल करते हैं, सब जानते हैं- ग़ज़लों के नक़्क़ाल बहुत हैं और मुज़फ़्फ़र एक । हनफ़ी साहब से कई शायरों को बहुत रश्क है और उन पर ऐसे शायरों ने ज़बर्दस्त तंज़बारी की है लेकिन मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब को न कोई पा सका है और न पा सकेगा।”
-मयंक अवस्थी
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“मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब ग़ज़ल के दरबार के वो अमीर हैं कि उनसे दरबार ही धन्य नहीं है बल्कि उनकी किसी भी महफ़िल में मौजूदगी उस महफ़िल के सारे लोगों को बाशऊर बना देती है। मैंने उनकी सदारत में मुशायरे पढ़े हैं। बड़े-बड़े वाचाल शायर हाथ बाँधे उनसे इजाज़त लेते देखे हैं।”
– तुफैल चतुर्वेदी
About Author
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी -
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी का जन्म 1 अप्रैल 1936 को खण्डवा (मध्य प्रदेश) में हुआ । आपने उर्दू में एम.ए. और पीएच. डी. की उपाधियाँ प्राप्त करने के अतिरिक्त एलएल.बी. भी किया। आपने मुलाज़मानी जीवन का प्रारम्भ मध्य प्रदेश सरकार के वन विभाग में नियुक्ति से किया। दो वर्ष एनसीईआरटी दिल्ली के प्रकाशन विभाग में प्रोडक्शन ऑफ़िसर (उर्दू) रहे । सन् 1976 से सन् 1989 तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उर्दू विभाग में रीडर की हैसियत से पढ़ाया। सन् 1989 में आप कलकत्ता विश्वविद्यालय में इक़बाल चेयर के प्राध्यापक और उर्दू के विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए । सन् 2001 में इस पद से सेवा-मुक्ति के बाद आप दिल्ली में साहित्य-रचना में रत हैं।
अस्सी से ज़्यादा किताबों के लेखक/सम्पादक मुज़फ़्फ़र हनफ़ी ने उर्दू साहित्य की भिन्न-भिन्न शैलियों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी किताबों में 'तिलिस्मे-हर्फ़', 'पर्दा सुख़न का', 'परचम-ए-गर्दबाद', 'हाथ ऊपर किये', 'या अख़ी', 'कमान', 'तेज़ाब में तैरते फूल' (शायरी), वज़ाहती-किताबियात (22 खण्ड) 'शाद आरफ़ी : शख़्सियत और फ़न' (आलोचना) जैसी पुस्तकें शामिल हैं। आपको मुख्तलिफ़ रियासती अकादमियों और राष्ट्रीय संस्थाओं से 45 से ज़्यादा पुरस्कार मिले हैं जिनमें इफ्तिख़ारे-मीर सम्मान (लखनऊ), परवेज़ शाहिदी अवार्ड (कोलकाता), पं. दत्तात्रेय कैफ़ी राष्ट्रीय अवार्ड, ग़ालिब अवार्ड (दिल्ली), सिराज मीर ख़ाँ सहर अवार्ड (भोपाल), भारतीय भाषा परिषद (कोलकाता) के रजत जयन्ती सम्मान के अतिरिक्त देश की कई संस्थाओं के पुरस्कार शामिल हैं।
सम्पर्क : डी-40, बटला हाउस, नयी दिल्ली-110025
मोबाइल : 9911067200
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