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Urdu Ka Arambhik Yug (PB)
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उर्दू भाषा की उत्पत्ति दिल्ली के आसपास हुई, लेकिन आरम्भ में इसमें साहित्य की पैदावार गुजरात और दकन में हुई। ऐसा क्यों हुआ, इस पर इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। फिर गुजरात और दकन में सैद्धान्तिक आलोचना और काव्यशास्त्र के उदय तथा इस सिलसिले में अमीर खुसरो और संस्कृत की केन्द्रीय भूमिका को भी इसमें रेखांकित किया गया है। इसके अलावा इस पुस्तक में जिन विषयों की जाँच-पड़ताल की गई है, वे हैं : दिल्ली का साहित्यिक परिप्रेक्ष्य पर देर से प्रकट होना, दिल्ली के साहित्यिक साम्राज्यवादी स्वभाव के कारण ग़ैर दिल्ली और बाहरी साहित्यकारों का उर्दू की प्रामाणिक सूची से बाहर रहना और अठारहवीं सदी की दिल्ली में नई साहित्यिक संस्कृति और काव्यशास्त्र का उदय।
दिल्ली में भाषा की शुद्धता की मुहिम और अन्योक्ति (ईहाम) के आन्दोलनों की वास्तविकता क्या है, उस्तादी/शागिर्दी का इदारा दिल्ली के अलावा कहीं और क्यों न वजूद में आया? इन प्रश्नों के अलावा ‘दिल्ली स्कूल’ और ‘लखनऊ स्कूल’ पर भी इसमें विचार किया गया है। इसका संक्षिप्त रूप शेलडन पॉलक की सम्पादित पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। हमें उम्मीद है कि हिन्दी के पाठकों को यह पुस्तक बेहद उपयोगी और सूचनापरक लगेगी।
उर्दू भाषा की उत्पत्ति दिल्ली के आसपास हुई, लेकिन आरम्भ में इसमें साहित्य की पैदावार गुजरात और दकन में हुई। ऐसा क्यों हुआ, इस पर इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। फिर गुजरात और दकन में सैद्धान्तिक आलोचना और काव्यशास्त्र के उदय तथा इस सिलसिले में अमीर खुसरो और संस्कृत की केन्द्रीय भूमिका को भी इसमें रेखांकित किया गया है। इसके अलावा इस पुस्तक में जिन विषयों की जाँच-पड़ताल की गई है, वे हैं : दिल्ली का साहित्यिक परिप्रेक्ष्य पर देर से प्रकट होना, दिल्ली के साहित्यिक साम्राज्यवादी स्वभाव के कारण ग़ैर दिल्ली और बाहरी साहित्यकारों का उर्दू की प्रामाणिक सूची से बाहर रहना और अठारहवीं सदी की दिल्ली में नई साहित्यिक संस्कृति और काव्यशास्त्र का उदय।
दिल्ली में भाषा की शुद्धता की मुहिम और अन्योक्ति (ईहाम) के आन्दोलनों की वास्तविकता क्या है, उस्तादी/शागिर्दी का इदारा दिल्ली के अलावा कहीं और क्यों न वजूद में आया? इन प्रश्नों के अलावा ‘दिल्ली स्कूल’ और ‘लखनऊ स्कूल’ पर भी इसमें विचार किया गया है। इसका संक्षिप्त रूप शेलडन पॉलक की सम्पादित पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। हमें उम्मीद है कि हिन्दी के पाठकों को यह पुस्तक बेहद उपयोगी और सूचनापरक लगेगी।
About Author
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी
जन्म : 1935; आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : 1955 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए.। 1958 से 1994 तक भारतीय डाक सेवा में तथा अन्य पदों पर कार्य।
उर्दू तथा अंग्रेज़ी में 40 से अधिक किताबें प्रकाशित। साहित्येतिहास तथा साहित्यिक सिद्धान्त में विशेष रुचि। हिन्दी में ‘कई चाँद थे सरे आस्माँ’, ‘क़ब्ज़े-ज़माँ’ (उपन्यास); ‘सवार और दूसरी कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘उर्दू का आरम्भिक काल’, ‘अकबर इलाहाबादी पर एक और नज़र’, ‘उपन्यास का सफ़रनामा’ (आलोचना) पुस्तकें विशेष रूप से चर्चित। अनेक लेखों के अनुवाद प्रकाशित।
1966 से 2005 तक उर्दू साहित्य को आधुनिक दिशा देनेवाली पत्रिका ‘शबख़ून’ के 299 अंकों का प्रकाशन। इसके माध्यम से अन्य भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिन्दी की रचनाओं के उर्दू अनुवादों का प्रकाशन।
अनेक देशी-विदेशी विश्वविद्यालयों में व्याख्यान। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में महत्त्वपूर्ण कार्य। 1986 में ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ तथा 1996 में मीर तक़ी मीर के काव्य पर विस्तृत आलोचना-ग्रंथ ‘शेर शोर अंगेज़’ के लिए ‘सरस्वती सम्मान’।
फ़िलहाल इलाहाबाद में रहकर लेखन।
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