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Asahmati Mein Utha Ek Hath : Raghuvir Sahay Ki Jeewani-(HB)
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Asahmati Mein Utha Ek Hath : Raghuvir Sahay Ki Jeewani-(PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Vishnu Nagar
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Vishnu Nagar
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹499 ₹399
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9789388753739
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Category: Hindi
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रघुवीर सहाय का जीवन-भर का काम प्रभूत और बहुमुखी है, जैसा कि इस जीवनी से एक बार और स्पष्ट होगा। इतना बहुमुखी और इतना मौलिक है कि सब कुछ पर यहाँ लिखा भी नहीं जा सका लेकिन उनके सोच के दायरे में आनेवाली कुछ चीज़ों का संकेत और सार यहाँ है, जिन पर अभी तक दुर्भाग्य से हमारा ध्यान नहीं गया है। मेरे ख़याल से उन बातों को भी जीवनी का अंग बनाना चाहिए, जो किसी लेखक के यहाँ अलग से दिखाई देती हैं और साहसिक ढंग से दिखाई देती हैं। उनकी कविताओं-कहानियों का कोई मूल्यांकन यहाँ करने से यथासम्भव बचा गया है, क्योंकि मेरे मत में यह जीवनी का काम नहीं है और रघुवीर जी के मूल्यांकन की बहुत-सी अच्छी कोशिशें हुई भी हैं। यहाँ प्रयत्न यह है कि उन्होंने ख़ुद अपने काम के बारे में क्या कहा है, क्या बताया है, यह अधिकाधिक सामने लाया जाए।
एक आपत्ति यह हो सकती है कि किताब रघुवीर जी के बारे में कुछ अधिक प्रशंसात्मक हो गई है। अगर यह सही है तो इसका ‘दोष’ कुछ हद तक रघुवीर जी के व्यक्तित्व में है, कुछ उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें करनेवालों में और अन्त में सबसे अधिक मेरा है।
—विष्णु नागर (प्रस्तावना से)
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Description
रघुवीर सहाय का जीवन-भर का काम प्रभूत और बहुमुखी है, जैसा कि इस जीवनी से एक बार और स्पष्ट होगा। इतना बहुमुखी और इतना मौलिक है कि सब कुछ पर यहाँ लिखा भी नहीं जा सका लेकिन उनके सोच के दायरे में आनेवाली कुछ चीज़ों का संकेत और सार यहाँ है, जिन पर अभी तक दुर्भाग्य से हमारा ध्यान नहीं गया है। मेरे ख़याल से उन बातों को भी जीवनी का अंग बनाना चाहिए, जो किसी लेखक के यहाँ अलग से दिखाई देती हैं और साहसिक ढंग से दिखाई देती हैं। उनकी कविताओं-कहानियों का कोई मूल्यांकन यहाँ करने से यथासम्भव बचा गया है, क्योंकि मेरे मत में यह जीवनी का काम नहीं है और रघुवीर जी के मूल्यांकन की बहुत-सी अच्छी कोशिशें हुई भी हैं। यहाँ प्रयत्न यह है कि उन्होंने ख़ुद अपने काम के बारे में क्या कहा है, क्या बताया है, यह अधिकाधिक सामने लाया जाए।
एक आपत्ति यह हो सकती है कि किताब रघुवीर जी के बारे में कुछ अधिक प्रशंसात्मक हो गई है। अगर यह सही है तो इसका ‘दोष’ कुछ हद तक रघुवीर जी के व्यक्तित्व में है, कुछ उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें करनेवालों में और अन्त में सबसे अधिक मेरा है।
—विष्णु नागर (प्रस्तावना से)
About Author
विष्णु नागर
विष्णु नागर का जन्म 14 जून, 1950 को हुआ। उनका बचपन और छात्र जीवन शाजापुर, मध्य प्रदेश में बीता। 1971 से दिल्ली में पत्रकारिता शुरु की और तभी से दिल्ली में हैं।
‘नवभारत टाइम्स’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘कादंबिनी’, ‘नई दुनिया’, ‘शुक्रवार’ आदि पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। भारतीय प्रेस परिषद एवं महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। फिलहाल स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हैं।
उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘मैं फिर कहता हूँ चिड़िया’, ‘तालाब में डूबी छह लड़कियाँ’, ‘संसार बदल जाएगा’, ‘बच्चे, पिता और माँ’, ‘कुछ चीज़ें कभी खोई नहीं’, ‘हँसने की तरह रोना’, ‘घर के बाहर घर’, ‘जीवन भी कविता हो सकता है’ तथा ‘कवि ने कहा’ (कविता-संग्रह); ‘आज का दिन’, ‘आदमी की मुश्किल’, ‘कुछ दूर’, ‘ईश्वर की कहानियाँ’, ‘आख्यान’, ‘रात दिन’, ‘बच्चा और गेंद’, ‘पापा मैं ग़रीब बनूँगा’ (कहानी-संग्रह); ‘जीव-जन्तु पुराण’, ‘घोड़ा और घास’, ‘राष्ट्रीय नाक’, ‘देशसेवा का धन्धा’, ‘नई जनता आ चुकी है’, ‘भारत एक बाज़ार है’, ‘ईश्वर भी परेशान है’, ‘छोटा सा ब्रेक’ तथा ‘सदी का सबसे बड़ा ड्रामेबाज’ (व्यंग्य-संग्रह); ‘आदमी स्वर्ग में’ (उपन्यास); ‘कविता के साथ-साथ’ (आलोचना); ‘असहमति में उठा एक हाथ’ (रघुवीर सहाय की जीवनी);
‘हमें देखतीं आँखें’, ‘आज और अभी’, ‘यथार्थ की माया’, ‘आदमी और उसका समाज’, ‘अपने समय के सवाल’, ‘ग़रीब की भाषा’, ‘यथार्थ के सामने’, ‘एक नास्तिक का धार्मिक रोजनामचा’ (लेख और निबन्ध-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार : विष्णु नागर’ (साक्षात्कार)।
‘सहमत’ संस्था के लिए तीन संकलनों तथा रघुवीर सहाय पर एक पुस्तक का संपादन। परसाई की चुनी हुई रचनाओं का संपादन। नवसाक्षरों एवं किशोरों के लिए भी पुस्तक लेखन।
उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान’, हिन्दी अकादमी, दिल्ली के ‘साहित्य सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘राही मासूम रज़ा साहित्य सम्मान’, ‘व्यंग्य श्री सम्मान’ आदि से सम्मानित किया जा चुका है।
सम्पर्क : vishnunagar1950@gmail.com
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