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The Hogwarts Library Box (Set Of 3) Paperback
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Are Yayavar Rahega Yaad
Publisher:
RajKamal
| Author:
Agyaye
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
RajKamal
Author:
Agyaye
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹250 ₹200
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In stock
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3-5 days
In stock
Weight | 210 g |
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Book Type |
ISBN:
SKU
9788126727414
Categories Hindi, Uncategorized
Categories: Hindi, Uncategorized
Page Extent:
180
कोई भी यात्रा मात्र व्यक्ति की यात्रा नहीं होती। अगर वह जिस रास्ते पर चल रहा है वह रास्ता भी यात्रा में शामिल है तो–और रास्ते शामिल हैं तो क्या कुछ नहीं शामिल! अरे यायावर रहेगा याद? अज्ञेय का एक ऐसा ही यात्रा-संस्मरण है जिसमें रास्ते शामिल हैं। इसलिए यह पुस्तक अपने काल के भीतर और बाहर एक प्रक्रिया, एक विचार और एक विमर्श भी है।
बग़ैर उद्घोष की यात्रा प्रकृति और भूगोल से गुज़रती हुई संस्कृति, समाज और सभ्यता से भी गुज़र रही होती है। अज्ञेय की यह पुस्तक इस मायने में एक कालातीत मिसाल लगती है कि इसके बहाने द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर पूरे हिन्दुस्तान की आज़ादी तक का वह भूगोल और कालखंड सामने आते हैं जहाँ जितने अधिक सपने थे उतने ही यातनाओं के मंजर भी। यह पुस्तक एक व्यक्ति के विपरीत नहीं, बल्कि समक्ष एक नागरिक और उसके एक मनुष्य होने की भी यात्रा-पुस्तक है।
अज्ञेय अपनी यात्रा में लाहौर, कश्मीर, पंजाब, औरंगाबाद, बंगाल, असम आदि प्रदेशों की प्रकृति और भूमि से गुज़रते हुए अपनी कथात्मक शैली और भाषा की ताज़गी से सिर्फ़ सौन्दर्य को ही नहीं रचते बल्कि सदियों हम जिनके ग़ुलाम रहे, उनके इतिहास के पन्ने भी पलटते हैं। वैज्ञानिकता और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में उनके विकास, विस्तार और विध्वंस के गणित को हल करने का द्वन्द्व और अथक उद्यम इस पुस्तक को विरल कृति बनाते हैं।
पुस्तक में एलुरा, एलिफांटा, कन्याकुमारी, हिमालय आदि की यात्रा करते मिथकों, प्रतीकों और मूर्तियों की रचना को अपने यथार्थ और अयथार्थ के केन्द्र में देखा-परखा गया है जहाँ लेखक को पुराणों और इतिहास की वह सच्चाई नज़र आती है जो युगों तक गाढ़े रंगों के पीछे रही। अनदेखे और अछूते को यात्रा की अभिव्यक्ति और उसकी कला में मूर्त करना कोई सीखे तो अज्ञेय से सीखे।
अज्ञेय की यह दृष्टि ही थी कि यात्रा, भ्रमण के बजाय एक ऐसी घटना बन सकी जिसकी क्रिया-प्रतिक्रिया में अपना कुछ अगर खो जाता है तो बहुत कुछ मिल भी जाता है। अपना बहुत कुछ खोने, पाने और सृजन करने का नाम है–अरे यायावर रहेगा याद ?
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Description
कोई भी यात्रा मात्र व्यक्ति की यात्रा नहीं होती। अगर वह जिस रास्ते पर चल रहा है वह रास्ता भी यात्रा में शामिल है तो–और रास्ते शामिल हैं तो क्या कुछ नहीं शामिल! अरे यायावर रहेगा याद? अज्ञेय का एक ऐसा ही यात्रा-संस्मरण है जिसमें रास्ते शामिल हैं। इसलिए यह पुस्तक अपने काल के भीतर और बाहर एक प्रक्रिया, एक विचार और एक विमर्श भी है।
बग़ैर उद्घोष की यात्रा प्रकृति और भूगोल से गुज़रती हुई संस्कृति, समाज और सभ्यता से भी गुज़र रही होती है। अज्ञेय की यह पुस्तक इस मायने में एक कालातीत मिसाल लगती है कि इसके बहाने द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर पूरे हिन्दुस्तान की आज़ादी तक का वह भूगोल और कालखंड सामने आते हैं जहाँ जितने अधिक सपने थे उतने ही यातनाओं के मंजर भी। यह पुस्तक एक व्यक्ति के विपरीत नहीं, बल्कि समक्ष एक नागरिक और उसके एक मनुष्य होने की भी यात्रा-पुस्तक है।
अज्ञेय अपनी यात्रा में लाहौर, कश्मीर, पंजाब, औरंगाबाद, बंगाल, असम आदि प्रदेशों की प्रकृति और भूमि से गुज़रते हुए अपनी कथात्मक शैली और भाषा की ताज़गी से सिर्फ़ सौन्दर्य को ही नहीं रचते बल्कि सदियों हम जिनके ग़ुलाम रहे, उनके इतिहास के पन्ने भी पलटते हैं। वैज्ञानिकता और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में उनके विकास, विस्तार और विध्वंस के गणित को हल करने का द्वन्द्व और अथक उद्यम इस पुस्तक को विरल कृति बनाते हैं।
पुस्तक में एलुरा, एलिफांटा, कन्याकुमारी, हिमालय आदि की यात्रा करते मिथकों, प्रतीकों और मूर्तियों की रचना को अपने यथार्थ और अयथार्थ के केन्द्र में देखा-परखा गया है जहाँ लेखक को पुराणों और इतिहास की वह सच्चाई नज़र आती है जो युगों तक गाढ़े रंगों के पीछे रही। अनदेखे और अछूते को यात्रा की अभिव्यक्ति और उसकी कला में मूर्त करना कोई सीखे तो अज्ञेय से सीखे।
अज्ञेय की यह दृष्टि ही थी कि यात्रा, भ्रमण के बजाय एक ऐसी घटना बन सकी जिसकी क्रिया-प्रतिक्रिया में अपना कुछ अगर खो जाता है तो बहुत कुछ मिल भी जाता है। अपना बहुत कुछ खोने, पाने और सृजन करने का नाम है–अरे यायावर रहेगा याद ?
About Author
जन्म : 7 मार्च, 1911 को उत्तर प्रदेश के देवरिया ज़िले के कुशीनगर नामक ऐतिहासिक स्थान में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता।शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देखरेख में घर पर ही संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और बांग्ला भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ। 1929 में बी.एससी. करने के बाद एम.ए. में उन्होंने अंग्रेज़ी विषय रखा; पर क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी।1930 से 1936 तक विभिन्न जेलों में कटे। 1936-37 में ‘सैनिक’ और ‘विशाल भारत’ नामक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से ‘प्रतीक’ नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएँ कीं। दिल्ली लौटे और ‘दिनमान साप्ताहिक’, ‘नवभारत टाइम्स’, अंग्रेज़ी पत्र ‘वाक्’ और ‘एवरीमैंस’ जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1980 में ‘वत्सल निधि’ की स्थापना की।प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘भग्नदूत’, ‘चिन्ता’, ‘इत्यलम्’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘इन्द्रधनु रौंदे हुए ये’, ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘क्योंकि मैं उसे जानता हूँ’, ‘सागर मुद्रा’, ‘पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ’, ‘महावृक्ष के नीचे’, ‘नदी की बाँक पर छाया’, ‘प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स’ (अंग्रेज़ी में); कहानी-संग्रह—‘विपथगा’, ‘परम्परा’, ‘कोठरी की बात’, ‘शरणार्थी’, ‘जयदोल’; उपन्यास—‘शेखर : एक जीवनी’ (प्रथम भाग और द्वितीय भाग), ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’; यात्रा वृत्तान्त—‘अरे यायावर रहेगा याद?’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबन्ध-संग्रह—‘सबरंग’, ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘हिन्दी साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य’, ‘आलवाल’; आलोचना—‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘भवन्ती’, ‘अद्यतन’; संस्मरण—‘स्मृति लेखा’; डायरियाँ—‘भवन्ती’, ‘अन्तरा’ और ‘शाश्वती’; विचार-गद्य—‘संवत्सर’; नाटक—‘उत्तरप्रियदर्शी’; सम्पादित ग्रन्थ—‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’ (कविता-संग्रह) के साथ कई अन्य पुस्तकों का सम्पादन।सम्मान : 1964 में ‘आँगन के पार द्वार’ पर उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और 1979 में ‘कितनी नावों में कितनी बार’ पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’।निधन : 4 अप्रैल, 1987
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