Yog Ka Jadu (Hindi)

Publisher:
Manjul
| Author:
Pawan & Mamta Guru
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Manjul
Author:
Pawan & Mamta Guru
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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216

योग का आरंभ तब हुआ जब सृष्टि का आरंभ हुआ I भगवान शिव द्वारा इस योग की रचना की गई जिससे मनुष्य जाति मन और शरीर से निरोग रह सके I इस योग का अर्थ है भौतिक, निराकार व साकार का मिलन I वास्तव में, परमपिता परमेश्वर से सीधा संपर्क करने की विधि को योग कहते हैं I योग के विभिन्न रूप हैं – भक्ति योग, कर्म योग, ज्ञान योग व ध्यान योग I
योग शुद्ध वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव का अंतरंग व बहिरंग दोनों ही शुद्ध हो जाते हैं I अष्टांग योग के द्वारा हम ध्यान में प्रविष्ट होने के लिए आरंभिक प्रयास करते हैं I अष्टांग योग के द्वारा हम ध्यान में प्रविष्ट होने के लिए आरंभिक प्रयास करते हैं I अष्टांग योग का अर्थ यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि के माध्यम से अपने शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि करना है I
आज के युग में सामान्य मनुष्य के लिए योग को अपनाना अत्यंत कठिन कार्य है क्योंकि आज मनुष्य का जीवन एक मशीन की भांति बन कर रह गया है I योग मानवता का वह संग्रहित अमूल्य खज़ाना है, जो तीन वस्तुओं से बना है – शरीर, मन व आत्मा I इन अवस्थाओं का संतुलन ही योग का मार्ग दिखाता है I
पाठकों को एक ऐसी पुस्तक उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है जिसमें योग के समस्त भागों, प्रभावों व बीमारियों की जानकारी एवं उपायों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई हो I पुस्तक के हर पहलू को कई बार विचार करने के बाद ही शामिल किया गया है जिसमें लगभग 6 वर्षों का समय लगा I पुस्तक में जनमानस द्वारा दिये गये सुझावों को समाहित किया गया है जिससे सभी इसका सम्पूर्ण लाभ ले सकें I

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योग का आरंभ तब हुआ जब सृष्टि का आरंभ हुआ I भगवान शिव द्वारा इस योग की रचना की गई जिससे मनुष्य जाति मन और शरीर से निरोग रह सके I इस योग का अर्थ है भौतिक, निराकार व साकार का मिलन I वास्तव में, परमपिता परमेश्वर से सीधा संपर्क करने की विधि को योग कहते हैं I योग के विभिन्न रूप हैं – भक्ति योग, कर्म योग, ज्ञान योग व ध्यान योग I
योग शुद्ध वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव का अंतरंग व बहिरंग दोनों ही शुद्ध हो जाते हैं I अष्टांग योग के द्वारा हम ध्यान में प्रविष्ट होने के लिए आरंभिक प्रयास करते हैं I अष्टांग योग के द्वारा हम ध्यान में प्रविष्ट होने के लिए आरंभिक प्रयास करते हैं I अष्टांग योग का अर्थ यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि के माध्यम से अपने शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि करना है I
आज के युग में सामान्य मनुष्य के लिए योग को अपनाना अत्यंत कठिन कार्य है क्योंकि आज मनुष्य का जीवन एक मशीन की भांति बन कर रह गया है I योग मानवता का वह संग्रहित अमूल्य खज़ाना है, जो तीन वस्तुओं से बना है – शरीर, मन व आत्मा I इन अवस्थाओं का संतुलन ही योग का मार्ग दिखाता है I
पाठकों को एक ऐसी पुस्तक उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है जिसमें योग के समस्त भागों, प्रभावों व बीमारियों की जानकारी एवं उपायों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई हो I पुस्तक के हर पहलू को कई बार विचार करने के बाद ही शामिल किया गया है जिसमें लगभग 6 वर्षों का समय लगा I पुस्तक में जनमानस द्वारा दिये गये सुझावों को समाहित किया गया है जिससे सभी इसका सम्पूर्ण लाभ ले सकें I

About Author

पवन गुरु योगाचार्य पवन गुरु योग एवं नैचुरोपैथी में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त कर चुके हैं I अपने गुरु स्व. डॉ, के. एम. गांगुली के निर्देशन में उन्होंने योग क्लास का संचालन किया और बाद में उनके समस्त कार्यों के संचालन की बागडोर भी थाम ली I वे 40 वर्षों से योग के माध्यम से पीड़ित मानवता हेतु समर्पित हैं I ममता गुरु योगाचार्य ममता गुरु योग, डायटिशियन एवं नैचुरोपैथी से उपाधि प्राप्त हैं I पति पवन गुरु की लगातार प्रेरणा और योग के प्रति समर्पण भाव से समय-समय पर प्रोत्साहन व सहायता प्राप्त होने से ममता गुरु योग और मानवता की सेवा के लिए निरन्तर सक्रिय हैं I पिछले 25 वर्षों से निःस्वार्थ भाव से योग व आहार विशेषज्ञ के रूप में सेवा कर रही हैं I वे योग साधना एवं अनुसंधान केंद्र का संचालन समर्पित भाव से कर रही हैं I

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