SaleHardback
Ye Ram Mere
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Shri Paramanand Swami
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Shri Paramanand Swami
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹500 ₹375
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: Dharma/Religion, Hindi
Page Extent:
376
इस ग्रंथ में रामभक्त शबरी का अलौकिक प्रसंग प्रकट हुआ है। एक अबला स्त्री को आश्रय देकर मातंग ऋषि ने उनमें ईश्वरीय प्रेम की भावना जगा दी। अत्यंत बलशाली और बुद्धिमान हनुमान भी इस निष्कर्ष पर पहुँच गए कि जब उनकी सारी बुद्धि और शक्ति प्रभु राम के ईश्वरीय कार्य में लगेगी, तभी उन्हें सच्चा और पूर्ण समाधान प्राप्त होगा। ग्रंथ का उपसंहार करते हुए श्रीपरमानंद स्वामी ने नारद-लक्ष्मी संवाद द्वारा प्रश्न पूछे हैं और उनका उत्तर दिया है कि मानव रूप में अवतरित राम के संपर्क और सान्निध्य में अनेक जन आए, परंतु उनके अंतःकरण से कुछ ही एकरूप हो पाए। पर जो एकरूप नहीं हो पाए, उनके भाव में क्या कमी रह गई थी—ऐसे मूलभूत प्रश्नों और उत्तरों में ही भक्तिमार्ग का सार छिपा है। श्रीराम के प्रति मन में अटूट भक्ति और श्रद्धा ही मानव का अंतःकरण निर्मल और शुद्ध करती है। यह पुस्तक श्रीरामभक्ति की पावन धारा में हमें स्नान करने का सुअवसर देती है।.
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Description
इस ग्रंथ में रामभक्त शबरी का अलौकिक प्रसंग प्रकट हुआ है। एक अबला स्त्री को आश्रय देकर मातंग ऋषि ने उनमें ईश्वरीय प्रेम की भावना जगा दी। अत्यंत बलशाली और बुद्धिमान हनुमान भी इस निष्कर्ष पर पहुँच गए कि जब उनकी सारी बुद्धि और शक्ति प्रभु राम के ईश्वरीय कार्य में लगेगी, तभी उन्हें सच्चा और पूर्ण समाधान प्राप्त होगा। ग्रंथ का उपसंहार करते हुए श्रीपरमानंद स्वामी ने नारद-लक्ष्मी संवाद द्वारा प्रश्न पूछे हैं और उनका उत्तर दिया है कि मानव रूप में अवतरित राम के संपर्क और सान्निध्य में अनेक जन आए, परंतु उनके अंतःकरण से कुछ ही एकरूप हो पाए। पर जो एकरूप नहीं हो पाए, उनके भाव में क्या कमी रह गई थी—ऐसे मूलभूत प्रश्नों और उत्तरों में ही भक्तिमार्ग का सार छिपा है। श्रीराम के प्रति मन में अटूट भक्ति और श्रद्धा ही मानव का अंतःकरण निर्मल और शुद्ध करती है। यह पुस्तक श्रीरामभक्ति की पावन धारा में हमें स्नान करने का सुअवसर देती है।.
About Author
श्री परमानंद स्वामी अर्थात् श्री अविनाश मोरेश्वर लिमये ने बंबई विश्वविद्यालय से एम.एस-सी. (भौतिक विज्ञान) तथा आई.आई.टी. पवई, बंबई में मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग में अपनी सेवा दी। उन्होंने छह आध्यात्मिक ग्रंथ क्रमशः ‘हा राम माझा’, ‘कृष्ण सखा माझा’, ‘कृष्ण परमात्मा’, ‘दत्त हाचि अवधूम’, ‘एक शोध आनंदा चा’ एवं ‘एक प्रवास आनंदा चा’ तथा तीन सौ से अधिक भजन और कई आख्यान लिखे हैं। स्वामी समर्थ द्वारा पुनर्जीवित की गई गुरु-शिष्य परंपरा का वे अपनी उम्र के 36वें साल से अपने ही निवास स्थान दादर (पश्चिम) में रहकर निर्वाह कर रहे हैं।.
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