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Vidyapati (HB)
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विद्यापति सौन्दर्य और प्रेम के कवि थे। सौन्दर्य के बारे में उनकी क्या धारणा थी,अथवा उनके सौन्दर्यबोध का क्या स्तर था—आदि प्रश्नों पर काफ़ी विस्तार से विचार किया गया है।गीत-काव्य के बारे में, उसके रूप और आत्मा को दृष्टि में रखकर बिलकुल नए ढंग से विचार कियागया है। अन्त में विद्यापति के अवहट्ट-काव्य का भी संक्षिप्त मूल्यांकन दे दिया गया है। क्योंकियह उनके कृतित्व का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है।
विद्यापति सौन्दर्य और प्रेम के कवि थे। सौन्दर्य के बारे में उनकी क्या धारणा थी,अथवा उनके सौन्दर्यबोध का क्या स्तर था—आदि प्रश्नों पर काफ़ी विस्तार से विचार किया गया है।गीत-काव्य के बारे में, उसके रूप और आत्मा को दृष्टि में रखकर बिलकुल नए ढंग से विचार कियागया है। अन्त में विद्यापति के अवहट्ट-काव्य का भी संक्षिप्त मूल्यांकन दे दिया गया है। क्योंकियह उनके कृतित्व का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है।
About Author
शिवप्रसाद सिंह
19 अगस्त, 1928 को जलालपुर, जमानिया बनारस में पैदा हुए शिवप्रसाद सिंह ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1953 में हिन्दी में एम.ए. किया। 1957 में पीएच.डी. करने के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक नियुक्त हुए।
शिवप्रसाद सिंह प्रख्यात शिक्षाविद् तो थे ही, साहित्य के भी शिखर पुरुष रहे हैं। ‘नयी कहानी’ आन्दोलन के स्तम्भ शिवप्रसाद जी प्राचीन और समकालीन साहित्य से गहरे संपर्क में रहे हैं। कुछ समालोचक उनकी कथा-रचना ‘दादी माँ’ को पहली ‘नयी कहानी’ मानते हैं।
प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास—‘अलग-अलग वैतरणी’, ‘नीला चाँद’, ‘मंजुशिमा’, ‘शैलूष’; कहानी-संग्रह—‘अंधकूप’ (सम्पूर्ण कहानियाँ, भाग-1), ‘एक यात्रा सतह के नीचे’ (सम्पूर्ण कहानियाँ, भाग-2); आलोचना—‘कीर्तिलता और अवहट्ठ भाषा’, ‘आधुनिक परिवेश और नवलेखन’, ‘आधुनिक परिवेश और अस्तित्ववाद’; निबन्ध-संग्रह—‘मानसी गंगा’, ‘किस-किसको नमन करूँ’, ‘क्या कहूँ कुछ कहा न जाए’; जीवनी—‘उत्तरयोगी’ (महर्षि अरविन्द)।
निधन : 28 सितम्बर, 1998
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