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Vibhajit Savera
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Manu Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Manu Sharma
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹450 ₹338
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In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
280
विभाजित सवेरा मनु शर्मा के तीन उपन्यासों की शृंखला की यह तीसरी और अंतिम कड़ी है। इसका कालखंड आजादी के बाद का है। गुलामी की जंजीरें कटने के बाद देश ने आजादी का सवेरा देखा, पर यह सवेरा विभाजित था। देश दो भागों में बँट गया था—भारत और पाकिस्तान। अंग्रेज चाहते थे कि दोनों देश हमेशा एक-दूसरे के विरोधी बने रहें। एक ओर वे जिन्ना की पीठ ठोंकते। दूसरी ओर ‘अमनसभाइयों’ को भी उत्साहित करते। अमनसभाई तो थे ही सुराजियों के विरोधी। फिरंगियों ने इनका संगठन बनाया ही इसीलिए था। अमनसभाई अंग्रेज अफसरों के यहाँ ‘डालियाँ’ भिजवाते रहे और सुराजियों की गुप्त सूचनाएँ भी उन्हें देते रहे। इसी उलझन में भारतीय राजनीति आगे बढ़ रही थी कि एक सिरफिरे हिंदू ने गांधीजी को गोली मार दी। अहिंसा का पुजारी हिंसा के घाट उतार दिया गया। इसके कारणों पर भी उपन्यास में विचार हुआ है। ‘टु नेशन थ्योरी’ के आधार पर सांप्रदायिक हिंसा का जो नंगा नाच हुआ, उसका भी चश्मदीद गवाह है यह उपन्यास। ‘विभाजित सवेरा’ खंडित भारत का सार्थक, संवेदनापूर्ण और यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है इसमें लेखक की अनुभूति की सघनता, आत्मीयता और भावुकता है। कथा अंत तक विभाजित सवेरे का दंश भोगती रहती है। आजादी की मरीचिका और देश के सामने मुझेहाँह बाक खड़ी ज्वंलत समस्याओं से अवगत कराता है—‘विभाजित सवेरा’।.
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Description
विभाजित सवेरा मनु शर्मा के तीन उपन्यासों की शृंखला की यह तीसरी और अंतिम कड़ी है। इसका कालखंड आजादी के बाद का है। गुलामी की जंजीरें कटने के बाद देश ने आजादी का सवेरा देखा, पर यह सवेरा विभाजित था। देश दो भागों में बँट गया था—भारत और पाकिस्तान। अंग्रेज चाहते थे कि दोनों देश हमेशा एक-दूसरे के विरोधी बने रहें। एक ओर वे जिन्ना की पीठ ठोंकते। दूसरी ओर ‘अमनसभाइयों’ को भी उत्साहित करते। अमनसभाई तो थे ही सुराजियों के विरोधी। फिरंगियों ने इनका संगठन बनाया ही इसीलिए था। अमनसभाई अंग्रेज अफसरों के यहाँ ‘डालियाँ’ भिजवाते रहे और सुराजियों की गुप्त सूचनाएँ भी उन्हें देते रहे। इसी उलझन में भारतीय राजनीति आगे बढ़ रही थी कि एक सिरफिरे हिंदू ने गांधीजी को गोली मार दी। अहिंसा का पुजारी हिंसा के घाट उतार दिया गया। इसके कारणों पर भी उपन्यास में विचार हुआ है। ‘टु नेशन थ्योरी’ के आधार पर सांप्रदायिक हिंसा का जो नंगा नाच हुआ, उसका भी चश्मदीद गवाह है यह उपन्यास। ‘विभाजित सवेरा’ खंडित भारत का सार्थक, संवेदनापूर्ण और यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है इसमें लेखक की अनुभूति की सघनता, आत्मीयता और भावुकता है। कथा अंत तक विभाजित सवेरे का दंश भोगती रहती है। आजादी की मरीचिका और देश के सामने मुझेहाँह बाक खड़ी ज्वंलत समस्याओं से अवगत कराता है—‘विभाजित सवेरा’।.
About Author
आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो बरसों बाद मैं डायनासोर के जीवाश्म की तरह पढ़ा जाऊँगा।’ इसी विश्वास के साथ मनु शर्मा की रचना-यात्रा खुद की बनाई पगडंडी पर जारी है। हिंदी की खेमेबंदी से दूर मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं। जन्म: सन् 1928 की शरत् पूर्णिमा को अकबरपुर, फैजाबाद में। मूल नाम: हनुमान प्रसाद शर्मा। अब तक: ‘छत्रपति’, ‘तीन प्रश्न’, ‘राणा साँगा’, ‘एकलिंग का दीवान’ ऐतिहासिक; ‘मरीचिका’, ‘गांधी लौटे’, ‘विवशता’, ‘लक्ष्मणरेखा’ सामाजिक तथा ‘द्रौपदी की आत्मकथा’, ‘द्रोण की आत्मकथा’, ‘कर्ण की आत्मकथा’, ‘कृष्ण की आत्मकथा’, ‘गांधारी की आत्मकथा’ और ‘अभिशप्त कथा’ पौराणिक उपन्यास हैं। ‘पोस्टर उखड़ गया’, ‘मुंशी नवनीत लाल’, ‘महात्मा’, ‘दीक्षा’ कहानी-संग्रह हैं एवं ‘खूँटी पर टँगा वसंत’ कविता-संग्रह है। सम्मान-अलंकरण: गोरखपुर वि.वि. से डी.लिट. की मानद उपाधि। उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘लोहिया साहित्य सम्मान’, केंद्रीय हिंदी संस्थान के ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार’, मध्य प्रदेश सरकार का शिखर सम्मान ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’ तथा उ.प्र. सरकार के प्रतिष्ठित ‘यश भारती सम्मान’ से सम्मानित। संपर्क: 382-सी, बड़ी पियरी, वाराणसी।.
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