Thalua Club and Phir Nirasha Kyon?

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Babu Gulab Rai
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Babu Gulab Rai
Language:
Hindi
Format:
Hardback

225

Save: 25%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Categories: ,
Page Extent:
152

साहित्यकारों के विचार ‘‘पहली ही भेंट में उनके प्रति मेरे मन में जो आदर उत्पन्न हुआ था, वह निरंतर बढ़ता ही गया। उनमें दार्शनिकता की गंभीरता थी, परंतु वे शुष्क नहीं थे। उनमें हास्य-विनोद पर्याप्त मात्रा में था, किंतु यह बड़ी बात थी कि वे औरों पर नहीं, अपने ऊपर हँस लेते थे।’’ —राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ‘‘बाबूजी ने हिंदी के क्षेत्र में जो बहुमुखी कार्य किया, वह स्वयं अपना प्रमाण है। प्रशंसा नहीं, वस्तुस्थिति है कि उनके चिंतन, मनन और गंभीर अध्ययन के रक्त-निर्मित गारे से हिंदी-भारती के मंदिर का बहुत सा भाग प्रस्तुत हो सका है।’’ —पं. उदयशंकर भट्ट ‘‘आदरणीय भाई बाबू गुलाब रायजी हिंदी के उन साधक पुत्रों में से थे, जिनके जीवन और साहित्य में कोई अंतर नहीं रहा। तप उनका संबल और सत्य स्वभाव बन गया था। उन जैसे निष्ठावान, सरल और जागरूक साहित्यकार बिरले ही मिलेंगे। उन्होंने अपने जीवन की सारी अग्नि परीक्षाएँ हँसते-हँसते पार की थीं। उनका साहित्य सदैव नई पीढ़ी के लिए प्रेरक बना रहेगा।’’ —महादेवी वर्मा ‘‘गुलाब रायजी आदर्श और मर्यादावादी पद्धति के दृढ समालोचक थे। भारतीय कवि-कर्म का उन्हें भलीभाँति बोध था। विवेचना का जो दीपक वे जला गए, उसमें उनके अन्य सहकर्मी बराबर तेल देते चले जा रहे हैं और उसकी लौ और प्रखर होती जा रही है। हम जो अनुभव करते हैं—जो आस्वादन करते हैं, वही हमारा जीवन है।’’ —पं. लक्ष्मीनारायण मिश्र ‘‘अपने में खोए हुए, दुनिया को अधखुली आँखों से देखते हुए, प्रकाशकों को साहित्यिक आलंबन, साहित्यकारों को हास्यरस के आलंबन, ललित-निबंधकार, बड़ों के बंधु और छोटों के सखा बाबू गुलाब राय को शेयर-संस्कृत प्रणाम!’’ —डॉ. रामविलास शर्मा.

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Thalua Club and Phir Nirasha Kyon?”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

साहित्यकारों के विचार ‘‘पहली ही भेंट में उनके प्रति मेरे मन में जो आदर उत्पन्न हुआ था, वह निरंतर बढ़ता ही गया। उनमें दार्शनिकता की गंभीरता थी, परंतु वे शुष्क नहीं थे। उनमें हास्य-विनोद पर्याप्त मात्रा में था, किंतु यह बड़ी बात थी कि वे औरों पर नहीं, अपने ऊपर हँस लेते थे।’’ —राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ‘‘बाबूजी ने हिंदी के क्षेत्र में जो बहुमुखी कार्य किया, वह स्वयं अपना प्रमाण है। प्रशंसा नहीं, वस्तुस्थिति है कि उनके चिंतन, मनन और गंभीर अध्ययन के रक्त-निर्मित गारे से हिंदी-भारती के मंदिर का बहुत सा भाग प्रस्तुत हो सका है।’’ —पं. उदयशंकर भट्ट ‘‘आदरणीय भाई बाबू गुलाब रायजी हिंदी के उन साधक पुत्रों में से थे, जिनके जीवन और साहित्य में कोई अंतर नहीं रहा। तप उनका संबल और सत्य स्वभाव बन गया था। उन जैसे निष्ठावान, सरल और जागरूक साहित्यकार बिरले ही मिलेंगे। उन्होंने अपने जीवन की सारी अग्नि परीक्षाएँ हँसते-हँसते पार की थीं। उनका साहित्य सदैव नई पीढ़ी के लिए प्रेरक बना रहेगा।’’ —महादेवी वर्मा ‘‘गुलाब रायजी आदर्श और मर्यादावादी पद्धति के दृढ समालोचक थे। भारतीय कवि-कर्म का उन्हें भलीभाँति बोध था। विवेचना का जो दीपक वे जला गए, उसमें उनके अन्य सहकर्मी बराबर तेल देते चले जा रहे हैं और उसकी लौ और प्रखर होती जा रही है। हम जो अनुभव करते हैं—जो आस्वादन करते हैं, वही हमारा जीवन है।’’ —पं. लक्ष्मीनारायण मिश्र ‘‘अपने में खोए हुए, दुनिया को अधखुली आँखों से देखते हुए, प्रकाशकों को साहित्यिक आलंबन, साहित्यकारों को हास्यरस के आलंबन, ललित-निबंधकार, बड़ों के बंधु और छोटों के सखा बाबू गुलाब राय को शेयर-संस्कृत प्रणाम!’’ —डॉ. रामविलास शर्मा.

About Author

जन्म: उत्तर प्रदेश के इटावा नगर में माघ शुक्ल चतुर्थी संवत् 1944 (तदनुसार 17 जनवरी, 1888 ई.) शिक्षा: एम.ए. दर्शनशास्त्र सन् 1913, एल.एल.बी. सन् 1917 एवं डी.लिट्. सम्मानार्थ सन् 1957। अवदान: छतरपुर (म.प्र.) राज्य के महाराजा के दार्शनिक सलाहकार, दीवान तथा मुख्य न्यायाधीश आदि पदों पर लगभग 20 वर्ष तक कार्य किया। ‘साहित्य-संदेश’ नामक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका तथा अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का संपादन किया। सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा में अवैतनिक प्राध्यापक के रूप में स्नातकोत्तर कक्षाओं में हिंदी का अध्यापन किया। नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा में साहित्य-रत्न तथा विशारद की कक्षाओं में अध्यापन कार्य किया। सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं एवं समितियों के संचालन में सहयोग दिया। साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की विभिन्न परिषदों, नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा, बृज साहित्य मंडल तथा अन्य संस्थाओं का सभापतित्व किया। वर्ष 1913 में ‘शांतिधर्म’ पुस्तक से प्रारंभ कर महत्त्वपूर्ण दर्शन ग्रंथों, आलोचना ग्रंथों का सृजन, शताधिक विविध प्रकार के निबंधों की रचना, आत्मचरित एवं जीवनीपरक विविध कृतियों का प्रणयन किया। आखिरी पुस्तक ‘जीवन रश्मियाँ’ वर्ष 1962 में प्रकाशित हुई। सम्मान: साहित्यकार संसद् (प्रयाग), प्रांतीय तथा केंद्रीय सरकारों द्वारा पुरस्कृत। आगरा विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट्. की उपाधि से सम्मानित। बाबूजी पर 5 रुपए का डाक टिकट 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लोकार्पित।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Thalua Club and Phir Nirasha Kyon?”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED