Meer 450

Save: 25%

Back to products
Subhash Chandra Bose 194

Save: 1%

Swami Vivekanand

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
प्रेमचन्द
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
प्रेमचन्द
Language:
Hindi
Format:
Hardback

194

Save: 1%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789326354806 Category
Category:
Page Extent:
64

स्वामी विवेकानन्द –

मानव जीवन परिवर्तनशीलता, सम्भावनाओं और विभूतियों का अक्षय भंडार है। उसमें कब कौन-सा परिवर्तन आ जाए इसको कोई नहीं बता सकता। बचपन का नटखट और उपद्रवी बालक नरेन्द्र युवा अवस्था का तार्किक नरेन्द्र स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रभाव से इतना धीर, गम्भीर, वेदान्त में पारंगत दृढ़वृत संन्यासी बन जाएगा। यह कोई नहीं जानता था। जिनकी जीवनी गहन अन्तर्दृष्टि और वेदान्त वैचारिकी का अनुपम पाठ है। विवेकानन्द कहते हैं-“मानव का हृदय ईश्वर का सबसे बड़ा मन्दिर है

और इस मन्दिर में उसकी आराधना करनी होगी।” उन्होंने वही किया और गुरु से प्राप्त शिक्षा को विद्यालयों की जगह मनुष्य के हृदय में रोपते हुए, मनुष्य बनाने के लिए देश-विदेश में घूम-घूमकर प्रवचन देते-देते ही ब्रह्मलीन हुए। हिन्दी साहित्य के कथा सम्राट और जन-जीवन के चितेरे मुंशी प्रेमचन्द ने सरल और सिद्धहस्त लेखनी से भारत के महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जीवन चरित्र प्रस्तुत किया।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Swami Vivekanand”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

स्वामी विवेकानन्द –

मानव जीवन परिवर्तनशीलता, सम्भावनाओं और विभूतियों का अक्षय भंडार है। उसमें कब कौन-सा परिवर्तन आ जाए इसको कोई नहीं बता सकता। बचपन का नटखट और उपद्रवी बालक नरेन्द्र युवा अवस्था का तार्किक नरेन्द्र स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रभाव से इतना धीर, गम्भीर, वेदान्त में पारंगत दृढ़वृत संन्यासी बन जाएगा। यह कोई नहीं जानता था। जिनकी जीवनी गहन अन्तर्दृष्टि और वेदान्त वैचारिकी का अनुपम पाठ है। विवेकानन्द कहते हैं-“मानव का हृदय ईश्वर का सबसे बड़ा मन्दिर है

और इस मन्दिर में उसकी आराधना करनी होगी।” उन्होंने वही किया और गुरु से प्राप्त शिक्षा को विद्यालयों की जगह मनुष्य के हृदय में रोपते हुए, मनुष्य बनाने के लिए देश-विदेश में घूम-घूमकर प्रवचन देते-देते ही ब्रह्मलीन हुए। हिन्दी साहित्य के कथा सम्राट और जन-जीवन के चितेरे मुंशी प्रेमचन्द ने सरल और सिद्धहस्त लेखनी से भारत के महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जीवन चरित्र प्रस्तुत किया।

About Author

प्रेमचन्द [1880-1936 ई.] - मुंशी प्रेमचन्द एक व्यक्ति तो थे ही, एक समाज भी थे, एक देश भी थे। व्यक्ति, समाज और देश-तीनों उनके हृदय में थे। उन्होंने बड़ी गहराई के साथ तीनों की समस्याओं का अध्ययन किया था। प्रेमचन्द हर व्यक्ति की, पूरे समाज की और देश की समस्याओं को सुलझाना चाहते थे, पर हिंसा से नहीं, विद्रोह से नहीं, अशान्ति से नहीं और अनेकता से भी नहीं। वे समस्या को सुलझाना चाहते थे प्रेम से, अहिंसा से, शान्ति से, सौहार्द से, एकता से और बन्धुता से। प्रेमचन्द आदर्श का झंडा हाथ में लेकर प्रेम एकता, बन्धुता, सौहार्द और अहिंसा के प्रचार में जीवन- पर्यन्त लगे रहे। उनकी रचनाओं में ये ही विशेषताएँ तो हैं। प्रेमचन्द जनता के कथाकार थे। उनकी कृतियों में समाज के सुख-दुख, आशा-आकांक्षा, उत्थान- पतन इत्यादि के सजीव चित्र हमारे हृदयों को हमेशा छूते रहेंगे।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Swami Vivekanand”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED