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संस्कृति के चार अध्याय I Sanskriti Ke Char Adhyaya (Hindi)
Publisher:
RajKamal
| Author:
Ramdhari Singh Dinkar
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹699 ₹559
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3-5 days
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Weight | 690 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
Categories: Hindi, Uncategorized
Page Extent:
728
…यह संभव है कि संसार में जो बड़ी-बड़ी ताकतें काम कर रही हैं, उन्हें हम पूरी तरह न समझ सकें, लेकिन इतना तो हमें समझना ही चाहिए कि भारत क्या है और कैसे इस राष्ट्र ने अपने सामाजिक व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू कौन से हैं और उसकी सुदृढ़ एकता कहाँ छिपी हुई है ! भारत में बसने वाली कोई भी जाति यह दावा नहीं कर सकती कि भारत के समस्त मन और विचारों पर उसी का एकाधिकार है ! भारत आज जो कुछ है, उसकी रचना में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान है ! यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम भारत को भी समझने में असमर्थ रहेंगे ! और यदि भारत को हम नहीं समझ सके तो हमारे भाव, विचार और काम सब-के-सब अधूरे रह जायंगे और हम देश की ऐसी कोई सेवा नहीं कर सकेंगे, जो ठोस और प्रभावपूर्ण हो ! मेरा विचार है कि ‘दिनकर’ की पुस्तक इस बातों को समझने में, एक हद तक, सहायक होगी ! इसलिए, मैं इसकी सराहना करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसे पढ़कर अनेक लोग लाभाविंत होंगे !
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Description
…यह संभव है कि संसार में जो बड़ी-बड़ी ताकतें काम कर रही हैं, उन्हें हम पूरी तरह न समझ सकें, लेकिन इतना तो हमें समझना ही चाहिए कि भारत क्या है और कैसे इस राष्ट्र ने अपने सामाजिक व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू कौन से हैं और उसकी सुदृढ़ एकता कहाँ छिपी हुई है ! भारत में बसने वाली कोई भी जाति यह दावा नहीं कर सकती कि भारत के समस्त मन और विचारों पर उसी का एकाधिकार है ! भारत आज जो कुछ है, उसकी रचना में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान है ! यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम भारत को भी समझने में असमर्थ रहेंगे ! और यदि भारत को हम नहीं समझ सके तो हमारे भाव, विचार और काम सब-के-सब अधूरे रह जायंगे और हम देश की ऐसी कोई सेवा नहीं कर सकेंगे, जो ठोस और प्रभावपूर्ण हो ! मेरा विचार है कि ‘दिनकर’ की पुस्तक इस बातों को समझने में, एक हद तक, सहायक होगी ! इसलिए, मैं इसकी सराहना करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसे पढ़कर अनेक लोग लाभाविंत होंगे !
About Author
रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया।
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